बुधवार, 29 दिसंबर 2010

ममता के पांच काल्पनिक मिथ और यथार्थ

          ममता बनर्जी को मिथ बनाने की आदत है वह उनमें जीती हैं। ममता बनर्जी निर्मित पहला मिथ है माकपा शैतान है। दूसरा मिथ है मैं तारणहार हूँ। तीसरा मिथ है माओवादी हमारे बंधु हैं। चौथा मिथ है हिंसा का जवाब प्रतिहिंसा है और पांचवां मिथ है ‘हरमदवाहिनी’। इन पांचों मिथों का वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है। छद्म मिथों को बनाना फिर उन्हें सच मानने लगना यही ममता की आयरनी है। यहीं पर उसके पराभव के बीज भी छिपे हैं। ममता बनर्जी अधिनायकवादी भाषा का प्रयोग करती हैं उनकी आदर्श भाषा का नमूना है ‘हरमदवाहिनी’ के नाम से गढ़ा गया मिथ। ‘हरमदवाहिनी’ काल्पनिक सृष्टि है। यह मिथ लालगढ़ में पिट गया है। वहां के साधारण किसान और आदिवासी समझ गए हैं कि इस नाम से पश्चिम बंगाल में कोई संगठन नहीं है। यह थोथा प्रचार है। लालगढ़ में ‘हरमदवाहिनी’ के कैंपों की एक सूची तृणमूल कांग्रेस और माओवादी बांट रहे हैं। इस सूची में 86 कैंपों के नाम हैं और इनमें कितने लोग हैं उनकी संख्या भी बतायी गयी है। उनके अनुसार ये माकपा के गुण्डाशिविर हैं और माकपा के अनुसार ये माओवादी हिंसाचार से पीड़ितों के शरणार्थी शिविर हैं। सच क्या है इसके बारे में सिर्फ अनुमान ही लगा सकते हैं। किस कैंप में कितने गुण्डे या शरणार्थी हैं यह आधिकारिक तौर पर कोई नहीं जानता।
    विगत दो साल में माओवादियों ने लालगढ़ में आतंक की सृष्टि की है । 200 से ज्यादा माकपा के निर्दोष सदस्यों और हमदर्दों की हत्याएं की हैं। सैंकड़ों को बेदखल किया है। इनमें से अनेक लोग बड़ी मुश्किल से पुलिसबलों की मदद से अपने घर लौटे हैं। लालगढ़ के विभिन्न इलाके स्वाभाविक छंद में लौट रहे हैं। यह बात ममता एंड कंपनी के गले नहीं उतर रही है। ममता एंड कंपनी ने माकपा के ऊपर लालगढ़ में हमले, लूटपाट, हत्या, औरतों के साथ बलात्कार आदि के जितने भी आरोप लगाए गए हैं वे सब बेबुनियाद हैं। लालगढ़ में एक साल में एक भी ऐसी घटना नहीं घटी है जिसमें माकपा के लोगों ने किसी पर हमला किया हो ,इसके विपरीत माओवादी हिंसाचार ,हत्याकांड,जबरिया चौथ वसूली और स्त्री उत्पीडन की असंख्य घटनाएं मीडिया में सामने आई हैं।
          असल में ममता बनर्जी और माओवादी ‘हरमदवाहिनी’ के मिथ के प्रचार की ओट में लालगढ़ के सच को छिपाना चाहते हैं। उनके पास माकपा या अर्द्ध सैन्यबलों के लालगढ़ ऑपरेशन के दौरान किसी भी किस्म के अत्याचार,उत्पीड़न आदि की जानकारी है तो उसे मीडिया ,केन्द्रीय गृहमंत्री और राज्यपाल को बताना चाहिए। उन्हें उत्पीडि़तों के ठोस प्रमाण देने चाहिए।  उल्लेखनीय है माकपा ने यह कभी नहीं कहा कि उनके लालगढ़ में शिविर नहीं हैं। वे कह रहे हैं उनके शिविर हैं और इनमें माओवादी हिंसा से पीडित शरणार्थी रह रहे हैं। ममता बनर्जी जिन्हें गुण्डाशिविर कह रही हैं वे असल में शरणार्थी शिविर हैं । सवाल उठता है माकपा और वामदलों को लालगढ़ में राजनीति करने हक है या नहीं ? ममता और माओवादी चाहते हैं कि उन्हें लालगढ़ से निकाल बाहर किया जाए। इसके लिए ममता बनर्जी ने माओवादी और पुलिस संत्रास विरोधी कमेटी के हिंसाचार तक का खुला समर्थन किया है।
माकपा के लोग लालगढ़ में हमले कर रहे होते,बलात्कार कर रहे होते.उत्पीड़न कर रहे होते तो कहीं से तो खबर बाहर आती। लालगढ़ से साधारण लोग बाहर के इलाकों की यात्रा कर रहे हैं। प्रतिदिन सैंकड़ों-हजारों लोग इस इलाके से बाहर आ जा रहे हैं। इसके बाबजूद माकपा के द्वारा लालगढ़ में अत्याचार किए जाने की कोई खबर बाहर प्रकाशित नहीं हुई है। कुछ अर्सा पहले ममता बनर्जी की लालगढ़ रैली में लाखों लोग आए थे। माओवादी भी आए थे। ममता बनर्जी ने माकपा के द्वारा  लालगढ़ में सताए गए एक भी व्यक्ति को उस रैली के मंच पर पेश नहीं किया । माओवादियों के दोस्त मेधा पाटकर और अग्निवेश भी मंच पर थे वे भी किसी उत्पीडि़त को पेश नहीं कर पाए। नंदीग्राम में जिस तरह तृणमूल कांग्रेस ने माकपा के अत्याचार के शिकार लोगों को मीडिया के सामने पेश किया था वैसा अभी तक लालगढ़ में वे नहीं कर पाए हैं। मेरे कहने का यह अर्थ नहीं है कि माकपा साधुओं का दल है। वह संतों का दल नहीं है। वह संगठित कम्युनिस्ट पार्टी है। उसके पास विचाराधारा से लैस कैडरतंत्र है जो उसकी रक्षा के लिए जान निछाबर तक कर सकता है। विचारधारा से लैस कैडर को पछाड़ना बेहद मुश्किल काम है। माकपा के पास गुण्डावाहिनी नहीं है विचारों के हथियारों से लैस पैने-धारदार कैडर हैं। उनके पास पश्चिम बंगाल में हथियारबंद गिरोहों से आत्मरक्षा करने और लड़ने का गाढ़ा अनुभव है। उनके साथ अपराधियों का एकवर्ग भी है। जिनसे वे सहयोग भी लेते हैं। लेकिन लालगढ़ जैसे राजनीतिक ऑपरेशन को सफल बनाने में गुण्डे मदद नहीं कर रहे वहां विचारधारा से लैस कैडर जान जोखिम में डालकर जनता को एकजुट करने और माओवादी हिंसाचार का प्रतिवाद करने का काम कर रहे हैं। माओवादी हिंसा का प्रतिवाद देशभक्ति है ,लोकतंत्र की सबसे बड़ी सेवा है।
   लोकतंत्र में माकपा को अपने जनाधार को बचाने का पूरा हक है। केन्द्र और राज्य सरकार के द्वारा माओवाद के खिलाफ अभियान में माकपा के कैडर लालगढ़ में जनता और पुलिसबलों के बीच में सेतु का काम कर रहे है। वे लालगढ़ में लोकतंत्र को बचाने की कोशिश कर रहे हैं । लोकतंत्र की खातिर मारे जा रहे हैं। वे न गुण्डे हैं और न महज पार्टी मेम्बर हैं। वे लोकतंत्र के रक्षक हैं । लालगढ़ में माकपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है और उसका उसे राजनीतिक लाभ भी मिलेगा। ममता जानती हैं कि माओवाद प्रभावित इलाकों में विधानसभा की 46 सीटें हैं और ये सीटें तृणमूल कांग्रेस के प्रभावक्षेत्र के बाहर हैं और इन सीटों पर वे किसी न किसी बहाने सेंधमारी करना चाहती हैं जो फिलहाल संभव नहीं लगती और यही लालगढ़ की दुखती रग है।

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