बुधवार, 1 दिसंबर 2010

वर्चुअल ममता और वाम उत्पीडन का सार्वजनिक आख्यान

             रेलमंत्री ममता बनर्जी की मीडिया इमेजों ने वामपंथियों की नींद गायब कर दी है। एक जमाना था पश्चिम बंगाल में ममता को अधिकांश लोग गंभीरता से नहीं लेते थे। वह जो बोलती थी उसका वामनेता जबाब नहीं देते थे। आज स्थिति बदल गयी है। ममता बनर्जी की इमेज निर्माण की प्रक्रिया के तीन स्तर हैं। पहला स्तर 2006 के पहले का है । उस समय ममता की अराजक और गैर जिम्मेदार इमेज प्रचारित की गई। इसका वाम को 2006 के विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त लाभ मिला। उस पराजय के बाद ममता बनर्जी ने गंभीरता के साथ अपनी इमेज का पुनरूद्धार किया है। नए मीडिया प्रबंधन और जनसंपर्क रणनीति का इस्तेमाल किया है। यह मीडिया रणनीति दो स्तरों पर कीम कर रही है ,पहला ,वाम निर्मित इमेजों का विस्थापन और दूसरा है ममता की वैकल्पिक सकारात्मक इमेजों का संचार।
     सन् 2006 के विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद ममता बनर्जी की एकदम नयी इमेज सामने आयी है। खासकर सिंगूर मसले के साथ। सिंगूर मसले के पहले ममता बनर्जी और उनका दल माकपा और वामदलों के हिंसाचार का ही मूलतः प्रतिवाद करता था। यह एक तरह का स्थानीयतावाद था जिससे आगे जाकर पहलीबार सिंगूर मसले पर ममता बनर्जी एक बृहत्तर जनहित के सवाल पर आम लोगों के सामने आती हैं। पहलीबार वह गुण्डागर्दी और मारपीट के मसलों के दायरे बाहर आती हैं। पहलीबार किसान हित के सवालों से अपने को जोड़ती हैं।
  सिंगूर आंदोलन के समय ममता बनर्जी जो बोल रही थीं वह सिंगूर का आम आदमी भी बोल रहा था। साधारण किसान भी बोल रहा था। उन्होंने अपने कम्युनिकेशन को जनता के कम्युनिकेशन में तब्दील कर दिया। अपनी सूचनाओं का आम जनता की सूचनाओं में रूपान्तरण कर दिया। वे अब सिंगूर की सिर्फ सूचनाएं ही नहीं दे रही थीं बल्कि सिंगूर के बारे में आम लोगों के ज्ञान में इजाफा कर रही थीं। आम लोगों को सिंगूर की सूचनाओं के आधार पर लामबंद कर रही थीं। सूचना और जनता की यह भागीदारी पहले कभी नहीं देखी गयी। फलतः उन्हें अभूतपूर्व सफलता मिली। इस प्रक्रिया में ममता बनर्जी की एक नयी इमेज का जन्म हुआ जिस पर आम लोग विश्वास करते हैं । यह वर्चुअल ममता है।
    वर्चुअल में सार्वजनिक बनाने की विलक्षण क्षमता होती है।  अब वे अकेले नहीं बोल रही थीं,बाकी समाज भी उनके स्वर में स्वर मिलाकर बोल रहा था। फलतः उनका प्रचार अभियान धीरे धीरे जनशिरकत में तब्दील हो गया। ममता के प्रति नकारात्मक और अनिश्चित भावबोध की विदाई हुई। पहले मीडिया में ममता की नकारात्मक इमेजों का उत्पादन खूब होता था उससे वामपंथ को काफी लाभ मिला। सिंगूर के साथ पैदा हुई वर्चुअल ममता ने वाम निर्मित नकारात्मक इमेजों को अपदस्थ कर दिया। इसमें सूचना, आंदोलन,जनशिरकत और नकारात्मक इमेजों का विस्थापन एक साथ चला है। नयी इमेज पुरानी इमेज की धुलाई का काम कर रही है।  उसने ममता की पुरानी सभी गतिविधियों को धो-पोंछकर साफ कर दिया है। यह इमेज परिवर्तन अबतक वाममोर्चा समझ नहीं पाया है। नयी इमेज ने उसके हिंसाचार ,अराजकता और संगठनहीनता को धो दिया। यह इमेज तात्कालिक घटनाओं और उसके संदर्भ पर टिकी है और उसका ही बार-बार प्रक्षेपण हो रहा है। नयी इमेज बुनियादी तौर पर भिन्न है। यह अराजक नेता की इमेज नहीं है। यह ऐसी इमेज है जिसमें बृहत्तर रूप में अन्य के रूप में किसान और अल्पसंख्यकों के दुख और प्रतिवाद का मानवाधिकार के परिप्रेक्ष्य में समावेश कर लिया है।       
  ममता की नयी इमेज ‘ साथ आओ और पाओ’ के नारे पर टिकी है। यह विशुद्ध नव्य उदार मीडिया रणनीति के तहत के परिप्रेक्ष्य में बनायी इमेज है। इन दिनों कोई भी व्यक्ति कुछ भी देना नहीं चाहता ,सब कोई पाना चाहते हैं। यदि कहीं से कुछ भी मिल जाए तो वहां लोग जरूर लाइन लगाए मिलेंगे। देने की बजाय पाना इस युग का आंतरिक नारा है और इस नारे को ममता बनर्जी ने राजनीतिक पूंजी में रूपान्तरित किया है। इधर जब से ममता बनर्जी रेलमंत्री बनी हैं वे उदारतापूर्वक पूरे बंगाल में रेल के विभिन्न प्रकल्पों का शिलान्यास कर रही हैं। यह उनकी ‘साथ आओ और पाओ’नीति का ही हिस्सा है। वे बार-बार कह रही हैं  तुम मुझे विधानसभा दो मैं तुम्हें कारखाने दूँगी। मैं तुम्हें नौकरी दूँगी। नई इमेज ने व्यक्ति ममता को महान बनाया है। व्यक्ति के नाते वे पहले आम लोगों की इच्छाओं को उभारती हैं और फिर उन्हें अपने साथ जोड़ती हैं। समाज की इच्छाएं तृणमूल की बजाय वर्चुअल ममता के साथ एकीकृत हुई हैं। अन्य इसमें समाहित है। वे बार-बार यह आभास दे रही हैं कि उनके शासन में आम लोगों को वे तकलीफें नहीं उठानी पड़ेंगी जो वामशासन में मिली हैं।
    वामशासन में आम जनता के जीवन में क्या होगा यह फैसला पार्टी के रूप में माकपा करती रही है। इसके कारण समाज में एक बड़े समूह में वाम के प्रति बदले की भावना है। ममता ने इसे राजनीतिक हवा में तब्दील किया है। वामदलों के द्वारा उत्पीडितों को जोड़ने,संरक्षण देने और अभिव्यक्ति देने का काम किया है। प्रतिवाद के जरिए यह भावना पैदा की है कि पश्चिम बंगाल की जनता असहाय और गूंगी नहीं है। वर्चुअल ममता ने वाम निर्मित पांच मिथों को तोड़ा है। पहला , वे जो चाहें कर सकते हैं,कोई कुछ नहीं बोलेगा। कोई प्रतिवाद नहीं करेगा। दूसरा, वाम के बिना जी नहीं सकते। तीसरा ,वाम के खिलाफ बोलो मत, परेशान करेंगे। चौथा ,वाम अपराजेय है। पांचवां , विकास का पर्याय है वाम। ये पांचों मिथ ममता ने सचेत ढ़ंग से तोड़े हैं। इन पांचों मिथों को उसने एक कोड में रूपान्तरित किया है वह है वाम उत्पीड़न। वाम उत्पीड़न की इमेजों को स्वतःस्फूर्त संघर्षों के जरिए अभिव्यक्ति दी है। वर्चुअल ममता ने आम आदमी में भरोसा पैदा किया है। पहले दक्षिण कोलकाता के झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले गरीबों में ही ममता के प्रति भरोसा था। लेकिन सिंगूर आंदोलन के बाद गांव के किसानों और शहरी मध्यवर्ग में उनकी साख में गुणात्मक वृद्धि हुई है। इसमें वाम उत्पीडन के स्थानीय आख्यानों की अनंत कथाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। पहले ये कथाएं घरों में कैद थीं,सिंगूर आंदोलन के बाद ये घरों से निकलकर सार्वजनिक जीवन में आ गयीं। वाम उत्पीड़न को सामाजिक आख्यान बनाने में सिंगूर-नंदीग्राम के लाइव टीवी कवरेज ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उसने वाम उत्पीड़न को सार्वजनिक आख्यान में बदल दिया और यह वर्चुअल ममता की सबसे बड़ी विचारधारात्मक विजय है। अब वामनेता मानने लगे हैं कि गलतियाँ हुई हैं। वाम उत्पीड़न का सार्वजनिक आख्यान एक नए भावबोध की सृष्टि कर रहा है वह है वाम के बिना पश्चिम बंगाल। यह लोकसभा चुनाव के बाद पैदा हुई इमेज है। वाम जमाने के पिछड़ेपन से मुक्ति को इसने केन्द्र में लाकर खड़ा कर दिया है। वाम ने किस तरह अन्य को हाशिए पर डाला,समाज को हताशा,निराशा,बेकारी आदि में रूपान्तरित किया इन सबके आख्यान अब केन्द्र में आ गए हैं। इसने वाम को डिफेंसिव बना दिया है। लोकसभा चुनाव के बाद पहलीबार वाम को अपनी निरर्थकता का अहसास हुआ है। वे निराश हैं और यह निराशा वर्चुअल ममता ने पैदा की है। ममता ने अपनी वर्चुअल इमेज बनाते हुए एक और बड़ा काम किया उसने ज्योति बसु की मौत के बाद खाली हुए बंगाल के आइकॉन या प्रतीक इमेज में अपने को स्थापित कर दिया है। आज वर्चुअल ममता पश्चिम बंगाल की इमेज का प्रतिनिधित्व करती है। वह मिथ है। वाम उनकी जितनी आलोचना कर रहा है वह उतना ही पकड़ के बाहर चली जा रही हैं।एक जमाना था वाम के बिना बंगाल की कल्पना संभव नहीं थी अब ममता के बिना पश्चिम बंगाल की कल्पना संभव नहीं है। यही वर्चुअल ममता की महान उपलब्धि है। वर्चुअल ममता इतनी ताकतवर है कि उसे कोई और चीज प्रभावित करने की स्थिति में नहीं है। कल तक अन्य (अदर) वाम के साथ था आज ममता के साथ है। वाम उत्पीडितों का वर्चु्अल ममता के साथ गोलबंद होना सबसे बड़ी सफलता है।आमतौर पर ममता का प्रत्येक एक्शन टीवी की लाइव कवरेज का हिस्सा होता है वह रीयलटाइम में संप्रेषित करती हैं इसके कारण वे किसी भी घटना के संदर्भ को वैध-अवैध के परे ले जाती हैं। दर्शकों की चंतना के सबसे निचले धरातल को सम्बोधित करती हैं। सामान्य घटना को असामान्य और असामान्य को सामान्य बनाती हैं। छोटे को बड़ा और बड़े को छोटा बनाती हैं। छोटी-छोटी समस्याओं को राजनीति की महाभाषा में रूपान्तरित करती हैं।     

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