शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

इंटरनेट स्वाधीनता हनन का श्रीगणेश

अमेरिका के फेडरल कम्युनिकेशन कमीशन ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला किया है इसके दूरगामी परिणाम होंगे। उल्लेखनीय है राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने चुनाव घोषणापत्र में इंटरनेट स्वतंत्रता का वायदा किया था और नेट तटस्थता की वकालत भी की थी,लेकिन हाल ही में जो फैसला आया है वह ओबामा के बदले हुए मिजाज और वायदाखिलाफी को दरशा रहा है ।

ओबामा प्रशासन ने कारपोरेट घरानों के सामने सीधे समर्पण कर दिया है। इस फैसले में ब्रॉडबैंड यूजरों और मोबाइल इंटरनेट यूजरों में भेदभाव रखा गया है। दूसरा भेदभाव यह है कि इंटरनेट की बेहतर सुविधाएं उनके लिए होंगी जो ज्यादा भुगतान करने की स्थिति में होंगे। जो विशेष साइट देखना चाहते हैं। फलतः इंटरनेट में दो तरह के यूजर हो जाएंगे त्वरित सेवा पाने वाले यूजर और धीमी गति से सेवा पाने यूजर, ज्यादा सूचना पाने वाले यूजर और कम सूचना पाने वाले यूजर। तेजगति की लाइन वाले यूजर और धीमी गति की लाइन वाले यूजर। यह बुनियादी तौर पर सूचना समृद्ध और सूचना दरिद्र की पहले से मौजूद खाई को और भी चौड़ा करेगा।
     एफसीसी का फैसला 3-2 के आधार पर आया है। इस फैसले से संचार कंपनियों की मनमानी बढ़ेगी। इंटरनेट स्वतंत्रता का सरकारी नियमन और कारपोरेट नियमन बढ़ जाएगा। अब संचार कंपनियों के रहमोकरम पर वेबसाइट रहेंगी। संचार कंपनियां जब चाहें जिस किसी भी वेबसाइट को खत्म कर सकेंगी। बंद कर सकेंगी। अभी जैसे हमें सभी किस्म के नेटवर्क में जाने की स्वतंत्रता है,लेकिन यदि यह निर्णय लागू हो जाता है तो यह स्वतंत्रता नहीं होगी। मसलन आप वेरीजॉन कंपनी के सर्वर की सेवाएं लेते हैं तो और अपने यहां गूगल का नक्शा देना चाहते हैं तो वेरीजॉन कंपनी आपको रोक सकती है। आपसे गूगल का नक्शा इस्तेमाल करने के लिए पैसा मांग सकती है क्योंकि आप उसकी सेवाओं के तहत ऐसा कर रहे हैं। कोई मोबाइल कंपनी आपको किसी भी कैम्पेन विशेष की सामग्री डाउनलोड करने से रोक सकती है,किसी भी प्रचार को रोक सकती है।




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