शनिवार, 28 नवंबर 2009

महेन्‍द्र नेह के ताजा संकलन 'थि‍रक उठेगी धरती' से ताजा कवि‍ता - उन्‍हें हाजि‍र करो



       

उन्‍हें हाजि‍र करो
 
सपने हमारे ,जो थे हमें जान से प्‍यारे
हवन हुए हमारी ही आंखों के सामने
धू- धू कर जले, वे जो
हमारे ही ऑगन में पले
तुलसी के बि‍रवे की तरह
हमारी सॉंसों के बीच बढ़े
कि‍सने जलाया उन्‍हें ?
कि‍सने चढ़ाई उनकी बलि‍
भय कब घुसा और खरीदकर ले गया
अनमोल आत्‍माओं को ?
 लालच ने कब डाले डेरे / धर्म के पवि‍त्र मंदि‍र में
अर्थ ने कब डि‍गाया / त्‍याग के मजबूत प्रति‍मानों को ?
हि‍साब लगाओ जल्‍दी जबाव दो
पचास साल बहुत होते हैं
एक आदमी की सहन-शक्‍ति‍ के लि‍ए
आग जि‍न हाथों ने लगाई है
उन्‍हें हाजि‍र करो आदमी की अदालत में
 उन हाथों को सजा देना लाजि‍मी है
पूरी नि‍ष्‍ठुरता के साथ
चाहे वे कानून की पोथी तैयार करनेवाले
कथि‍त पवि‍त्र हाथ ही क्‍यों न हों।
      - महेन्‍द्र नेह

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