हिन्दी में 'ई' लेखन अभी शैशवावस्था में है। यहां पर अभी कोई धांसू और महान लेखन नहीं हो रहा। सामान्य लेखन हो रहा है। हिन्दी के ब्लॉग चलाने वाले अथवा वेबसाइट चलाने वाले सामान्य कोटि के लेखक और संपादक है। अभी कोई ऐसा मानक सामने से नहीं गुजरा है जिसके आधार पर यह कहा जाए कि हिन्दी ब्लागिंग में यह चीज नई है, लेखन का यह रूप उसका अपना ही है,अन्यत्र वह कहीं नहीं मिलेगा।
ब्लॉग से वेबसाइट तक संपादकों और लेखकों का अपने यहां हिन्दी के साहित्य और अपनी भाषा के देशज साहित्य और भाषा की ओर रूझान बहुत ही कम नजर आता है। हिन्दी के ब्लॉगर की आत्माभिव्यक्ति में जितनी दिलचस्पी है उतनी उसकी हिन्दी के साहित्य में नहीं है।
सवाल यह है क्या ब्लॉग लेखन या हिन्दी वेबसाइट की हिन्दी साहित्य ,राजनीति और व्यापार पर लिखे बगैर को निजी पहचान बन पाएगी। आज एक भी अच्छी वेब पत्रिका हिन्दी में नहीं है। जो वेवसाइट वाले हैं वे आए दिन पेशेवर कौशल का दावा करते रहते हैं वे किसी को लेखन का पैसा नहीं देते। ज्यादातर उधार या मुफ्त की सामग्री से काम चलाते हैं और संपादकत्व के नशे में रहते हैं। क्य नेट लेखन पेशेवर हुए बिना अपना विकास कर पाएगा । क्या उसमें वैचारिक गांभीर्य् और हस्तक्षेप की क्षमता पैदा हो पाएगी। उल्लेखनीय है हिन्दी के नामी लेखक अथवा कम नामी लेखक और संपादक वेब पर खुलकर अपने भावों,विचारों और खोजी पत्रकारिता के वैभव के साथ नजर नहीं आ रहे। हिन्दी नेट लेखन में समाजविज्ञान और विज्ञान लेखन का भी बुरा हाल है। यह हिन्दी का नेट लेखन की सीमा है।
हिन्दी के ब्लागरों और वेबसाइट के संपादकों में अभिव्यक्ति की जितनी लालसा है उतनी मेहनत वे अंतर्वस्तु जुटाने के लिए नहीं करते। सारवान अंतर्वस्तु के बिना सारी सामग्री जल्दी ही प्राण त्याग देती है। इसके बाद यदि ब्लागर में ब्लॉगलेखन के नाम पर अहंकार हो तो इसे कैंसर ही समझना चाहिए। वेबलेखन में दंभ कैंसर है।
ब्लॉगिंग दंभ की नहीं सहयोग और संपर्क की मांग करती है। हममेंसे ज्यादा लोग लेखन में दंभ के साथ जी रहे हैं,अपने दंभ के कारण स्वयं को महान घोषित कर रहे हैं। ब्लागिंग और वेब लेखन में महान नहीं बन सकते। यदि लेखन के अहंकार में किसी की इमेज नष्ट करने पर आमादा हैं तो लेखक नहीं बन सकते। लेखक का का किसी की इमेज पर कीचड उछालना नहीं है। लेखन का लक्ष्य है कम्युनिकेशन। कम्युनिकेशन तब ही होता है जब आप दंभ से पेश न अएं। हिन्दी के नेट लेखकों का एक बडा हिस्सा लेखन के दंभ की बीमारी का शिकार है वह इस क्रम में वेब लेखन के प्रति अन्य को आकर्षित नहीं कर पा रहा है।
ब्लागिंग का आधार है विनम्रता। सहभागिता। शिरकत। दिल जीतना। ब्लागिंग में आप किसी के भी व्यक्ति स्तर परखच्चे उड़ा सकते हैं। कुछ देर पढने में भी अच्छा लगता है लेकिन बाद में ऐसा अपना ही लिखा खराब लगने लगता है ,प्रेरणाहीन लगता है। अपने किसी काम का नहीं लगता। कहने का तात्पर्य यह है कि लेखन के समय इस बात ख्याल जरूर रखा जाए कि इस लेखन को आखिरकार कुछ दिन,महीने,साल जिंदा रहना है। ब्लागर अपने लेखन को कितना दीर्घायु बनाता है यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह संबंधित विषय पर कितनी गहराई में जाकर सोचता है और अंतर्वस्तु को विकसित करने में कितना परिश्रम करता है। अभी ब्लागिंग की अंतर्वस्तु में ब्लागर का आंतरिक परिश्रम कम जगहों पर ही देखने को मिलता है। ब्लागर कितने मेहनती हैं और कितने गंभीरता से परिश्रम करते हैं इसका आदर्श उदाहरण है हाल ही में इलाहाबाद में हुआ ब्लागिंग पर राष्ट्रीय गोष्ठी का ब्लागरों के द्वारा दिया गया कवरेज। ज्यादातर लोगों की रिपोर्ट में इस गोष्ठी पर ब्लॉग लेखक की प्रतिक्रिया ही सामने आयी। अपवाद स्वरूप एक ब्लागर ने विस्तार से दो दिन की गोष्ठी पर रिपोर्ट दी जिससे यह अंदाता लगता था कि क्या हुआ लेकिन बाकी सभी ब्लॉगरों ने वे सब बातें कहीं जिन्हें वे इस गोष्ठी की पूरी रिपोर्ट पेश करके भी कर सकते थे। मजेदार बात यह है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय और महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के आयोजकों की भी नेट पर इसकी व्यापक रिपोर्ट जारी करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। इससे यही अंदाजा लगता है कि अभी हमारे यहां नेट लेखन का अभी शैशवकाल चल रहा है। शैशवकाल में ब्लागलेखन में जब इतना तदर्थभाव है तो आगे क्या होगा आप सहज ही कल्पना कर सकते हैं।
हमें पश्चिमी ब्लागरों और नेट लेखकों से इस संदर्भ में कुछ जरूर सीख लेना चाहिए। पहली चीज जो सीखने की है कि हम अपने व्यवहार से सामंती रूझानों की विदायी कर दें। दूसरा, नेट लेखन तब ही समृद्ध होगा जब हिन्दी साहित्य के विशाल भंडार को हम नेट पर पहुँचा देंगे। जब नेट पर राजनीतिक अज्ञेर नीतिगत लेखन सामान्य गतिविधि हो जाएगा।
ब्लॉग लेखकों को ब्लॉग की भीड़ में विशिष्ट दिखने से बचना चाहिए। ब्लॉग की भीड़ ही है जो ब्लॉग लेखक को असली आनंद देती है। ब्लॉग लेखक इस भीड में जितना खोता जाएगा उतना ही स्वयं को भूलता जाएगा। अभी ब्लॉग लेखक स्वयं को बता रहा है,कायदे से उसे सवयं को भुलाने के काम को प्राथमिकता देनी चाहिए। यदि ब्लॉग लेखक खुद से छुटकारा पाना चाहते हैं तो उन्हें स्वयं को भूलना होगा और तब ही ब्लॉग को कला में रूपान्तरित कर पाएंगे।
अभी ब्लॉगर व्यक्तिबोध का शिकार है। व्यक्तित्वबोध निराभ्रम है। जो लोग कहते हैं वे अपने को जानने के लिए लिख रहे हैं वे मुगालते में हैं। कोई अपने को नहीं जान सकता। ब्लॉगर भूल गए हैं कि 'स्व' को जानने के लिए 'स्व' का 'वस्तु' में रूपान्तरण जरूरी है। बिना वस्तु बनाए आप किसी चीज को नहीं जान सकते।
ब्लॉगर अपनी अनुभूतियों पर खूब लिख रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि वे अपने को जान रहे हैं। इससे अनुभूतियों का अनुभव तो होता है किंतु अनुभूतियों के बारे कोई समझ नहीं बनती। ब्लॉगर को अपने पर विश्वास है। कायदे से उसे सत्य पर विश्वास करना चाहिए। ब्लागर जिस बोध को बार-बार व्यक्त कर रहे हैं उसमें मिथ्याबोध ज्यादा है। वे जिसे ज्ञान समझ रहे हैं उसमें काफी मात्रा में मिथ्याज्ञान भी चला आया है। यह मिथ्याज्ञान ही है जो हिन्दी नेट लेखन में अनेक लेखकों में अहंकार की सृष्टि का स्रोत है।
ब्लॉगर की चिन्ताऍं व्यक्तिगत इतिहास और व्यक्तिगत अनुभवों में ज्यादा हैं। अब आप ही सोचिए व्यक्तिगत इतिहास और अनुभव में किसे सही और किसे गलत कहेंगे। व्यक्तिगत को सही या गलत ठहराने से ब्लॉगिंग को सुख नहीं मिलेगा।
ब्लॉगिंग में एक खास किस्म की क्षणिक उच्छवास की अभिव्यक्ति ने आकर पैर जमा लिए हैं। आत्मप्रदर्शन के अंगद ने पैर जमा लिए हैं। यह हमारी ब्लॉग दशा की अश्वेत पक्ष है आओ हम सब मिलकर इसे दुरूस्त करें। ब्लॉगिंग की मूर्खता ही है कि हम दावा करते हैं कि हमारे पास इतने पाठक हैं ,मेरे नेट पर इतने लोग आए। सवाल लोगों के आने और जाने का नहीं है सवाल अंतर्वस्तु का है। सत्य के उद्घाटन का है। ब्लॉगर के पास जितना बड़ा सत्य होगा उसका आधार उतना ही मजबूत होगा। हमारे ब्लॉगरों ने सत्य के बड़े रूप को त्यागकर टुकड़ों में अपने को बांट दिया है।
विचारणीय बातें हैं।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
उल्लेखनीय और विचारणीय आलेख| अभी बहुत आगे जाना है और माध्यम की यह स्वतंत्रता अभी बड़े श्रम, समर्पण और सूझ की अपेक्षा करती है|
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख!
जवाब देंहटाएंजैसा कि आपने कहा कि ई-लेखन अपने शैश्व काल में है, समय तो लगेगा ही। दूसरा कारण है पुरानी पीढी के वरिष्ट साहित्यकारों का इस नई तकनीक से नहीं जुड पाना। यदि कम्प्यूटर और हिंदी की थोडी जानकारी उन्हें मिल जाय तो शायद वे भी इस लेखन में शामिल हो॥
जवाब देंहटाएंसात साल से देखता आ रहा हूं. हिन्दी चिट्ठाकारी मे आया हर नया चिट्ठाकार ज्ञानी होने के कुछ उदाहरण प्रस्तुत करता है जैसे -
जवाब देंहटाएं१)अपनी जमात के दूसरों को जगाना और बताना कि वे कुम्भकर्ण हैं.
२)जो हो रहा है उस पर कडवे सच बताना.
आगे और जोडने का मूड नही है.. पर ये सब एक पैटर्न है.
ये बिमारी साहित्य और पत्रकारिता से जुडे हुओं मे अधिक है.
सवाल ये है कि क्या आपने निरंतर देखी थी या अब सामयिकी पत्रिका देखी है?
सवाल ये है कि क्या आपने तरकश देखी है जो मूलत: चिट्ठाकारी और समूह-चिट्ठा के बाद उपजा आईडिया है.
सवाल ये है कि आपने सरकारी नौकरी मे रहते हुए रिसेशन नामक हालात के बारे मे जाना है?
अगस्त में आपके लिखे इस लेख - http://jagadishwarchaturvedi.blogspot.com/2009/08/blog-post_349.html
में तारीफ़ें करते-करते आज बुराईयां नजर आने लगीं? होता है!
हिन्दी साहित्य मंडलीबाजियों के चलते अपनी मृतावस्था को प्राप्त हो चुका है हम शैशव ही ठीक हैं.
जी मालिक!
हम बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ कर हम भी तुम जैसे हो जाएंगे.
त्राहीमाम!
Aapke vicharon se ya kahen ki is kadwi sachchaai se poorntaya sahmat hoon sir,
जवाब देंहटाएंjai Hind...
"...अभी कोई ऐसा मानक सामने से नहीं गुजरा है जिसके आधार पर यह कहा जाए कि हिन्दी ब्लागिंग में यह चीज नई है, लेखन का यह रूप उसका अपना ही है,अन्यत्र वह कहीं नहीं मिलेगा।..."
जवाब देंहटाएंआई ऑब्जैक्ट योर ऑनर! वैसे तो और भी हैं, आपकी नजरों से नहीं गुजरे हों ये जुदा बात है, पर जरा नीचे दिए गए ब्लॉग को आद्योपांत पढ़ लें. शायद आपकी विचारधारा बदले...
http://azdak.blogspot.com/
बाकी की बातें आपने सही कही हैं. खासकर यह -
"...ब्लागिंग में आप किसी के भी व्यक्ति स्तर परखच्चे उड़ा सकते हैं। कुछ देर पढने में भी अच्छा लगता है लेकिन बाद में ऐसा अपना ही लिखा खराब लगने लगता है ,प्रेरणाहीन लगता है। अपने किसी काम का नहीं लगता।..."
ठीक है शैशव ही सही,कुछ हो तो रहा है।बाकि जगह?
जवाब देंहटाएंकाहे ब्लागिंग का ग्रामर खींचने के लिए हलकान हुये जा रहे हैं...अभिव्यक्ति महत्वपूर्ण है न कि व्याकरण....और सत्य तो मकड़जाल है...इसका कोई ओर छोर ही नहीं है...वैसे देखने वाले बेतुकी बातों में भी कुछ गहरे अर्थ खोज लेते हैं...लोग ब्लाग पर लिख रहे है, और बेहतर लिख रहे हैं...अचंभित करने वाली राइटिंग हो रही है...ब्लाग को हिन्दी साहित्यरूपी बड़े भाई की दरकार नहीं है...यह स्वतंत्र क्षेत्र है...जिसको जैसे मन है बल्ला भांजे...खेलना आये या नहीं कोई फर्क नहीं पड़ता है...ब्लाग की खासियत इसकी सहजता है...मानक की तलाश करके क्यों इसको जटिल करने की चेष्टा कर रहे हैं...
जवाब देंहटाएंसभी उत्कृष्ट साहित्य लिखेंगे ...तो साधारण बांचने वाले कहाँ से आयेंगे .....!!
जवाब देंहटाएंचतुरवेदी जी
जवाब देंहटाएंआप के ब्लाग को हाल ही में देखा और पाया कि आप काफ़ी पढ़े-लिखे और विचारवान आदमी हैं। पिछले दो चार महीनों में आप ने दो अढ़ाई सौ पोस्ट लिख डाली, सारी की सारी पर्वताकार, प्रभावित हुआ। आप के पास वो माल है जिसकी कमी की आप शिकायत कर रहे हैं, अच्छा लगा, सोच रहा था कि चिट्ठा चर्चा में आप के बारे में लिखूं। मगर आप की इस पोस्ट ने आप का अन्य पहलू उजागर कर दिया..
आप कहते हैं कि ब्लागर की हिन्दी साहित्य में दिलचस्पी नहीं.. किसकी है? पढ़े लिखे लोग अगर कुछ पढ़ते हैं तो अंग्रेज़ी में पढ़ते हैं। हम हिन्दी में लिखते हैं और कुछ मजबूरी में पढ़ भी लेते हैं क्योंकि हम इस भाषा के मोह में हैं और शायद अन्य भाषाओं में अभिव्यक्ति के लिए हमारा हाथ ज़रा तंग है।
आप कह रहे हैं कि वेब पत्रिका नहीं है.. ई स्वामी ने कहा कि अभिव्यक्ति थी और अभी समाचार पत्रिका विस्फोट है..
‘हिन्दी नेट लेखन में समाजविज्ञान और विज्ञान लेखन का भी बुरा हाल है’ – नेट पर नहीं है और हिन्दी में है?
तदर्थभाव नेट लेखन में नहीं, सारे लेखन में है.. हमारे मानस में है.. नेट पर कोई मंगल ग्रह से लिखने के नहीं आएगा.. इसी समाज के लोग हैं..
मुझे लगता है कि आप का सारा ज्ञानदान हड़बड़ी में निकाले गए निष्कर्ष हैं.. ब्लाग की बिखरी हुई दुनिया को विचार के आकार में ढालने का सुख लेने के लिए इतनी जल्दबाज़ी मत करें.. थोड़ा और देखें, समझें.. आप की बात मोटी तौर पर सही है : लोग उथला लिख रहे हैं.. लेकिन आप को क्या लगता है कि ‘आओ इसे मिलकर सही करें’ से हो जाएगा.. इस तरह की सीख देने में भी एक प्रकार का दंभ दिखता है..
एक 'विनम्र सीख' मेरी ओर से ले लीजिये.. अपने ब्लाग का प्रारुप ज़रा आकर्षक बनाइये.. पैरा के बीच में स्पेस दीजिये.. पढ़ने वाले की सहूलियत के लिए..
सादर