सोमवार, 9 नवंबर 2009

पि‍तृसत्‍ता का सर्जक ब्‍यूटी उद्योग

  

स्त्री के शरीर के बारे में प्रत्येक संस्कृति में समय-समय पर नजरिया बदलता रहा है। यहां संस्कृति के प्रति अतिरिक्त आग्रह और पूर्व नियोजित व्यवहार नजर आता है। जिसकी ओर हमने कम ध्यान दिया है। आज स्त्री के शरीर के बारे में व्यापक मात्रा में चीजें नजर रही हैं, इनमें स्त्री के शरीर के बारे में बदली हुई अभिरूचि और घृणा को देखा जा सकता है।
      आज स्त्री शरीर का कसा हुआ,तना हुआ,छोटे स्तनों वाला,छोटे कूल्हे, और पतले शरीर को महिमामंडित किया जा रहा है।आज सामान्य औरत के लिए डाइट के तरह-तरह के तरीके सुझाए जा रहे हैं। व्यापक सर्कुंलेशन वाली पत्रिकाओं और टीवी चैनलों के जरिए स्त्रियों को नए साँचे में ढाला जा रहा है। उन्हें पतला होने की रणनीति,चर्बी घटाने के उपाय,गर्मी में शरीर कैसा रखें और जाड़े में कैसा रखें। औरतों को सलाह दी जा रही है कि वे अपने डाइट डाक्टर से मिलें।स्त्री के शरीर के डाइटिंग के अनुशासन में लाने की कोशिशें तेज हो गई हैं।शरीर की भूख के लिए खान-पान पर सब समय निगरानी रखने की बात कही जा रही है। इस पूरी प्रक्रिया के कारण स्त्री को नए किस्म की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। हम नहीं जानते कि हमारे शारीरिक अंगों के लिए कितनी मात्रा में खाद्य की जरूरत है। ऐसे में शरीर के लिए खाद्य की मनाही खतरे पैदा कर सकती है।
        डाइटिंग इण्डस्ट्री ने आज स्त्री को उसके शरीर का शत्रु बना दिया है।आज इसने संक्रामक बीमारी का रूप धारण कर लिया है।आज स्त्री अपने को पतला रखने के नाम पर पागलपन की हद तक चली गई है। यह बीसवीं शताब्दी का सबसे बड़ा उन्माद था जो आज अनेक नई किस्म की मुश्किलें लेकर आया है।आज डाइटिंग एक ऐसा अनुशासन है जो शरीर पर थोप दिया गया है। यह ऐसा अनुशासन है जो अन्य की कीमत पर थोपा गया है।दूसरी ओर कसरत पर जोर दिया जा रहा है। पुरूषों और स्त्रियों की कसरत एक जैसी नहीं होती। कसरत के दोनों पर एक जैसे असर नहीं होते। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि शरीर को तंदुरूस्त रखने के लिए की गई कसरत और स्त्रीत्व को निर्मित करने के लिए की गई कसरत में फ़र्क है। पुरूष या स्त्री वजन उठाए,योगासन करे,एक्रोविक करे, 'संगीतमय कसरत' करे ,इन सबका व्यापक तौर पर प्रचार किया जा रहा है। स्त्री और पुरूष आज विभिन्न किस्म की मशीनों के जरिए वर्जिस करते हैं।प्रत्येक मशीन शरीर के भिन्न किस्म के गठन के लिए बनायी गयी है।
      विश्व विख्यात सौन्दर्य विशेषज्ञ एम.जे. सेफरॉन ने बारह किस्म की फेसियल एक्सरसाइज सुझायी है। जिनका मीडिया में वर्षों से हल्ला है। इनमें मशीनी कसरत की बजाय चेहरे की वर्जिस के बहाने चेहरे की रेखाओं या झुर्रियों को घटा देने या खत्म कर,शरीर के विभिन हिस्सों की मांसपेशियों को सुडौल बनाने,स्तनों का आकार बढ़ाने,बढ़ी हुई मांसपेशियों की घटाने के नुस्खे शामिल हैं। टीवी पर टेली शॉपिंग में ऐसी मशीनों और दवाओं का अहर्निश प्रचार हो रहा है जिनके माध्यम से कोई भी महिला शरीर का कोई भी अंग घटा या बढ़ा सकती है । विज्ञान की नजर में यह समूचा कार्य- व्यापार ही गलत है। अवैज्ञानिक है। शरीर का कौन सा हिस्सा किस आकार का होगा यह जेनेटिकली तय होता है। यह किसी डाक्टर द्वारा तय नहीं किया जा सकता। इस समूची प्रक्रिया में स्त्री की स्वाभाविक पाचन क्रिया और शारीरिक गठन पर जो दुष्प्रभाव पड़ते हैं उससे औरतें बेखबर हैं, यह भी कह सकते हैं कि उन्हें सही जानकारी नही दी जा रही।
    उल्लेखनीय है कि स्त्री के हाव-भाव,चालढ़ाल और सामान्य तौर पर अंग-प्रत्यंग भिन्न किस्म के होते हैं।औरतों क इनके संचालन में पुरूषों की तुलना में ज्यादा रूकावटें या झिझक होती है।इसका सबसे बड़ा कारण है स्त्री के इर्दगिर्द का जो परिवेश होता है वह उसके कल्पनालोक से ज्यादा जुड़ा होता है।वह वास्तव जगत की बजाय कल्पना जगत के साथ विचरण करती है।वह उसका अतिक्रमण नहीं कर पाती। इसीलिए उसकी चालढ़ाल में झिझक दिखाई देती है। यही झिझक उसके शरीर के विस्तार,खिंचाव और प्रतिरोध के दायरे में भी अभिव्यक्त होती है। किन्तु जो मुक्‍तभाव की औरत  है वह इन सब सीमाओं का अतिक्रमण कर जाती है। उसका मुक्‍तभाव सिर्फ नैतिक क्षेत्र में ही अभिव्यक्त नहीं होत अपितु उसके भाषण , मुक्त और सहज चालढाल में भी व्यक्त होत है।
      एक जर्मन फोटोग्राफर मेरीन वेक्स ने दो हजार फोटोग्राफ खींचे और यह दर्शाने की कोशिश की कि आखिरकार स्त्री और पुरूष के बीच में हाव-भाव,चालढाल आदि के मामले में क्या अंतर है।इन फोटोग्राफ में औरतें स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करते दिखाई गई हैं। जिनमें औरत अपने पैर सिकोड़े,पैर के ऊपर हाथ रखे, झुकी हुई,पैर एक-दूसरे से सटाकर बैठी हुई थीं। औरतें देखने में छोटी, कम जगह घेरनेवाली और हार्मलेस और चिन्ताग्रस्त थीं।
     इसके विपरीत मर्द चौड़कर ,पैर फैलाकर बैठे हुए थे, जो भी संभव जगह थी उसे घेरे हुए थे।देखने में पुरूषों के शरीर का आकार औरतों के आकार से बड़ा लग रहा था। इसी प्रकार चलते हुए स्त्रियों और पुरूषों की चाल में भी फर्क दिखाई देता है जिसकी ओर वेक्स ने ध्यान खींचा है। औरत से चले,कैसे देखे, कितना हंसे,चलते हुए चारों तरफ देखे या सिर्फ एकाग्रभाव से चले और कनखियों या दबी नजर से देखे,इत्यादि चीजें ऐसी हैं जो स्त्री की प्रकृति को तय करती हैं,उसे नियमित करती हैं। औरत जब खड़ी हो तो उसका पेट अंदर की ओर धंसा हो,कंधे पीछे की ओर झुके हों,सीना बाहर की ओर निकला हो, जिससे उसके स्तनों का उभार ज्यादा दिखाई दे। वह जब चले तो संकुचित भाव से चले। उसकी चाल या कदम जब उठें तो उसके नितम्बों के उभार उत्तेजित करें।किन्तु इनका ज्यादा उभार टेबू माना गया है। औरतें छोटे या लॉ कट ड्रेस पहनने से गुरेज करें। यदि ऐसी ड्रेस पहननी हो तो अधिक चतुरता से काम लें और कोशिश करें कि स्तन,पीठ,नितम्ब  दिखाई दें।
फैशन पत्रिकाएं समय - समय पर औरतों के लिए निर्देश देती रहती हैं कि क्या पहनें ,कैसे पहनें, कार से कैसे उतरें। इन सभी किस्म के निर्देशों में औरतों को तीन बातें खास तौर पर बतायी जाती हैं कि उनके हाथ और पैर सभी दिशाओं में चलते हुए नजर नहीं आएं। वह अपनी प्रस्तुति भद्रतापूर्ण रखे।स्त्री शरीर के जितने भी संचालन के उपाय सुझाए जाते हैं वे सब आत्म-संचालित हैं।उन्हें उसके शरीर के अंदर से स्वाभाविक तौर पर व्यक्त होना चाहिए। इस बात पर सामान्य तौर पर ध्यान नहीं जाता कि जब दो मर्द साथ हों तो वे चारों ओर औरतों को देखते हैं,वे गली में ,चौराहे पर,कोने में ,इलीवेटर में, दरवाजे से घुसते समय,डिनर टेबिल पर औरतों को घूरते रहते हैं।पुरूष जरूरी नहीं है कि अकड़ के चले, असभ्य ढ़ंग से चले, वह हल्के और सभ्य ढ़ंग से और आत्मविश्वास से भरे हुए भाव में चलता है,उसकी तुलना प्रशिक्षित घोड़े से की जा सकती है।
औरत के शरीर संचालन के अलावा उसका साज-श्रृंगार भी महत्वपूर्ण है जहां से पितृसत्ता अपना वर्चस्व बनाए रखती है।इस संदर्भ में उसका मेकअप और कपड़ों का चयन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। औरत की स्कीन को कोमल,लचीला,चंचल,बालरहित,मुलायम होना चाहिए। आदर्श स्थिति यह है कि वह अपने शरीर से कपड़ा,अनुभव,उम्र, और गंभीर विचार का एहसास ही होने दे।बाल उसके चेहरे से ही नहीं बल्कि शरीर के सभी दृश्य हिस्सों से साफ होने चाहिए।बालों की सफाई विशेषज्ञ द्वारा कराई जाए।भ्रू को तरीके बनवाया जाए ।जो औरतों इन सबका स्थायी समाधान करना चाहती हैं वे इलैक्ट्रोलिसिस का इस्तेमाल कर सकती हैं। इस प्रक्रिया के द्वारा बालों को बिजली के करेण्ट के जरिए जड़ों से नष्ट कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया काफी कष्टप्रद और खर्चीली है। सौन्दर्य विशेषज्ञ जिसे बेहतर त्वचा संरक्षण की आदत कहते हैं। उसमें सिर्फ स्वास्थ्य पर ही ध्यान देना नहीं होता बल्कि मुख के कठोर हाव-भाव और कसरत से भी बचना होता है। इसके अलावा दिन में एकबार से अधिक त्वचा की देखभाल करनी होती है,जिसमें क्लिजिंग लोशन,क्लीनर से साफ करना होता है।एस्ट्रीन्जेंट,टॉनर,मेकअप रिमूवर्स,नाइट क्रीम,नॉरसरिंग क्रीम,आई क्रीम,मॉइसचराइजर्स, स्कीन वैलेंसर्स, वॉडी लोशन, हैण्ड क्रीम, सन् क्रीम, होठों के लिए लिप पॉमडेज,फेसियल मास्क के इस्तेमाल की सौन्दर्य विशेषज्ञ सलाह देते हैं।फेसिल मास्क का इस्तेमाल थोड़ा जटिल प्रक्रिया है।मुंहासों के लिए सल्फर मास्क का इस्तेमाल किया जाता है।शुष्क क्षेत्र के लिए गर्म या तेैलीय मास्क,इसके अलावा ठंडा मास्क भी इस्तेमाल किया जा सकता है। टाइटनिंग मास्क,कंडीशनिंग मास्क,पीलिंग मास्क,हर्ब के क्लींजिंग मास्क का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। काली औरतों को ' फेड क्रीम' या ' स्कीनटोन' का प्रयोग करना चाहिए। स्कीन केयर का सिर्फ स्कीन के लिए इस्तेमाल नहीं होता बल्कि उसका इस्तेमाल अभ्यास पर निर्भर होता है। ये सारे वे उपाय हैं जिन्हें पितृसत्ता अपने नए अनुशासन के तौर पर लागू कर रही है।
            कॉस्मेटिक इण्डस्ट्री ने अपनी साख बनाने के लिए आधुनिक मेडीसिन के विमर्श को औजार की तरह इस्तेमाल किया है।आज स्थिति यह है कि बूढी त्वचा को युवा त्वचा में तब्दील किया जा सकता है। इसके अलावा त्वचा की विशिष्ट प्रकृति जानकर क्रीम बनाकर दी जाती है। यह कार्य कम्प्यूटर की मदद से हो रहा है। इससे त्वचा को पूरी तरह साफ कर दिया जाता है। त्वचा की अच्छी तरह से देखभाल के अनेक किस्म के उपकरण और सामान आज बाजार में आ गए हैं जो पितृसत्तात्मक नजरिए से स्त्री का आधुनिकीकरण कर रहे हैं।इसके लिए विशेष ज्ञान की जरूरत होती है।इसी तरह बालों के विशेष संरक्षण की भी सलाह दी जाती है।इसके लिए भी तरह-तरह के कॉस्मेटिक उपलब्ध हैं।      
         



        


               




1 टिप्पणी:

  1. यह गज़ब का स्त्रीवाद और पितृसत्ता के नज़रिए से किया गया विवेचन है।
    जहां ऐसा लग रहा है कि यह दोनों ही नहीं है।

    क्या खूब देह संबंधी चर्चा है। ज्ञान बढ़ाया।

    शुक्रिया।

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