शनिवार, 7 नवंबर 2009

डि‍नर पार्टी नहीं है क्रांति‍

            आज के मघ्‍यवर्गीय क्रांति‍कारि‍यों के लि‍ए क्रांति के सवाल डि‍नर टेबि‍ल के सवाल बनकर रह गए हैं। कुछ माओवादी और नक्‍सलवादि‍यों के लि‍ए क्रांति‍ नशा है, सि‍र कलम कर देने का, इलाका दखल का खेल है,इलाके में जबरन वसूली का धंधा है,नशे की एक बोतल है। क्रांति‍ की इतनी बदसूरत शक्‍ल की क्रांति‍ के पुरोधाओं ने कल्‍पना तक नहीं की थी।   
     सोवि‍यत संघ में 7 नबम्‍बर 1917 को क्रांति‍ हुई थी। इस क्रांति‍ ने सोवि‍यत संघ की सामंती और गुलाम देश की इमेज को पूरी तरह बदलकर आधुनि‍क शक्‍ति‍शाली राष्‍ट्र में तब्‍दील कर दि‍या। दो वि‍श्‍वयुद्धों के बावजूद आज रूस (पुराना सोवि‍यत संघ) दुनि‍या में सैन्‍य,वि‍ज्ञान,संस्‍कृति‍ आदि‍ के क्षेत्र में महाशक्‍ति‍ है। सोवि‍यत संघ का आज जो भी ठाट है उसका आधार अक्‍टूबर क्रांति‍ के क्रांति‍कारि‍यों ने ही रखा था ,इसमें स्‍टालि‍न की महत्‍वपूर्ण भूमि‍का थी।
     कायदे से भारत की क्रांति‍कारी कतारों और  माओवादि‍यों को इस दि‍न पर सारे देश में कुछ करना चाहि‍ए था। लेकि‍न सारा दि‍न बड़ी शांति‍ से गुजर गया। भारत में कहीं से भी अक्‍टूबर क्रांति‍ के कि‍सी बड़े आयोजन की खबर मेरी नजरों से नहीं गुजरी। पश्‍चि‍म बंगाल में वामदलों के द्वारा प्रतीकात्‍मक माल्‍यार्पण जरूर हुआ। इसके बाद क्‍या हुआ यह वे ही जानें।
        नेट पर जो क्रांति‍वीर हैं, आए दि‍न माओवादी क्रांति‍ के बारे में बि‍गुल बजाते रहते हैं। पूंजीवादी सत्‍ता को गरि‍याते रहते हैं। इलाका दखल कि‍ए हुए हैं। अनेक इलाकों में लालदुर्ग बना चुके हैं।  बाद में ये सारे दुर्ग साधारण जनता के लि‍ए तबाही का मंजर ही लेकर आएंगे। क्रांति‍ के बारे में हमारे जैसे लोग भी हैं जो न कहीं आते हैं न जाते हैं सि‍र्फ लि‍खते हैं,पढ़ते हैं, कभी कि‍सी ने बुला लि‍या तो डि‍नर कर आए और क्रांति‍ की बनती बि‍गड़ती संभावनाओं के बारे में सोच लि‍या,बति‍या लि‍या और क्रांति‍ खत्‍म। कामरेड क्रांति‍ चाय का प्‍याला नहीं है, डि‍नर पार्टी नहीं है।  
    कल तक जो क्रांति‍ के लि‍ए आग उगल रहे थे वे भी नेट और मीडि‍या में अक्‍टूबर क्रांति‍ जैसी महान् ऐति‍हासि‍क घटना के बारे में चुप हैं। काश ! ऐसे लोगों ने क्रांति‍ का वि‍भ्रमि‍त करने वाला पाठ न पढ़ा होता। भारत में नेट और मीडि‍या में पत्रकारों का एक बड़ा तबका है जो कभी न कभी क्रांति‍ ,कम्‍युनि‍स्‍ट पार्टी और माओवादी संगठनों अथवा नक्‍सलवादी गुटों से कि‍सी न कि‍सी रूप में जुड़ा रहा है। हम सवाल पूछना चाहते है मीडि‍या पुंगवों से क्‍या अक्‍टूबर क्रांति‍ का भारत में इतना भी महत्‍व नहीं रह गया है कि‍ आप लोग कम से कम उसके बारे में सूचनात्‍मक लेख,मूल्‍यांकन बगैरह करें।
        भारत में सन् 1917 में अक्‍टूबर क्रांति‍ के समय ऐसी चुप्‍पी नहीं थी। भारत के अधि‍कांश सक्रि‍य रचनाकारों ने 1917 की अक्‍टूबर क्रांति‍ के बारे में शानदार लेख लि‍खे, बेहतरीन कवि‍ताएं लि‍खीं। उस जमाने में प्रेमचंद से लेकर रवीन्‍द्रनाथ टैगोर तक कोई भी महान वि‍भूति‍ ऐसी नहीं थी जो अक्‍टूबर क्रांति‍ से प्रभावि‍त न हुई हो। कोई बड़ा नेता नहीं था जि‍से इस क्रांति‍ ने मुक्‍ति‍ का रास्‍ता न दि‍खाया हो। संस्‍कृति‍,राजनीति‍,कला आदि‍ सभी क्षेत्रों में सोवि‍यत संघ की अक्‍टूबर क्रांति‍ से बुद्धि‍जीवी,राजनेता और आम जनता प्रभावि‍त हुई थी।

    आज अक्‍टूबर क्रांति‍ के प्रति‍ जि‍स अज्ञानता और हि‍कारत से 'ई' लेखक,'ई' संपादक , इलैक्‍ट्रोनि‍क मीडि‍या और संचार क्रांति‍ पेश आ रही है उसे देखकर भवि‍ष्‍य के बारे में डर लगने लगा है कि‍ आखि‍र ये लोग भावी पीढ़ी को क्‍या देकर जाएंगे ?
        हि‍न्‍दी में गणेशशंकर वि‍द्यार्थी,महावीरप्रसाद द्वि‍वेदी,प्रेमचंद,नि‍राला आदि‍ की परंपरा के जो रखवाले हैं वे शायद भूल गए कि‍ हि‍न्‍दी के तत्‍कालीन महान लेखकों ने अक्‍टूबर क्रांति‍ का शानदार स्‍वागत कि‍या था। यह स्‍वागत ऐसे समय में कि‍या गया था जब देश में मुश्‍कि‍ल से एक सौ लोग भी कम्‍युनि‍स्‍ट पार्टी के सदस्‍य नहीं थे। सारे देश की कम्‍युनि‍स्‍ट पार्टी एक ही कमरे में बैठ जाया करती थी।
   आज देश में वि‍भि‍न्‍न रंगत के कई करोड़ लोग हैं जो क्रांति‍ और सामाजि‍क परि‍वर्तन में वि‍श्‍वास करते हैं। केरल,त्रि‍पुरा,पश्‍चि‍म बंगाल में वाम का वर्चस्‍व है। इसके अलावा देश के 625 जि‍लों में से 223 में माओवादि‍यों का क्रांति‍कारी संघर्ष जारी है। नेट से लेकर टीवी तक इन सबके सदस्‍य काम करते हैं इसके बावजूद अक्‍टूबर क्रांति‍ के प्रति‍ इस तरह का कृतघ्‍न भाव देखकर शर्म आती है।
     सारे देश में क्रांति‍ का ढ़ोल पीटने वाले चुप क्‍यों हैं ?  अक्‍टूबर क्रांति‍ पर खामोश क्‍यों हैं ? हमारे मीडि‍या पुंगवों को अपना टि‍मटि‍माता दीपक सूर्य नजर आता है और जि‍स क्रांति‍ ने सचमुच में सारी  दुनि‍या का भाग्‍य बदल दि‍या और आधुनि‍क युग में अनेक मूलगामी परि‍वर्तनों और मानवीय अधि‍कारों को संभव बनाया उसी अक्‍टूबर क्रांति‍ को हम भूल गए। हमें इस कृतघ्‍नता पर शर्म आती है।
    गणेशशंकर वि‍द्यार्थी ने अक्‍टूबर क्रांति‍ का स्‍वागत कि‍या था,बाद में उनकी ही छत्रछाया में भगतसिंह और उनके साथि‍यों ने क्रांति‍ का पाढ पढ़ा था। मजेदार बात यह है जि‍न्‍हें भगतसिंह पर गर्व है वे इस बात को भूल गए कि‍ अक्‍टूबर क्रांति‍ के गहरे असर ने भगतसिंह की पूरी मनोदशा बनायी थी।
       अक्‍टूबर क्रांति‍, समाजवादी व्‍यवस्‍था और कम्‍युनि‍स्‍ट वि‍चारधारा से प्रभावि‍त होकर काव्‍य रचना लि‍खने वालों में प्रमुख हैं गयाप्रसाद शुक्‍ल 'सनेही',देवीदत्‍त मि‍श्र, शि‍वदास गुप्‍त 'कुसुम','राष्‍ट्रीय पथि‍क','अभि‍लाषी',बेचन शर्मा 'उग्र',रामवि‍लास शर्मा,जगदम्‍बा प्रसाद हि‍तैषी,राधा बल्‍लभ पाण्‍डेय बंधु, दुर्गादत्‍त त्रि‍पाठी,अवधबि‍हारी मालवीय 'अवधेश', रामेश्‍वर करूण,नरेन्‍द्र शर्मा,रामधारी सिं‍ह 'दि‍नकर', बलभद्र दीक्षि‍त 'पढ़ीस',सुमि‍त्रानंदन पन्‍त,मुक्‍ति‍बोध, नागार्जुन, शमशेर,त्रि‍लोचन,केदारनाथ अग्रवाल आदि‍।
अक्‍टूबर क्रांति‍ और सोवि‍यत समाज के वि‍कास को देखने के बाद रवीन्‍द्रनाथ टैगोर ने 'रूस के पत्र' में जो बातें लि‍खी हैं। उनमें से कुछ बातें आज भी प्रासंगि‍क हैं। रूस की अनेक अलोकतांत्रि‍क चीजों को रेखांकि‍त करने के बाद टैगोर ने लि‍खा रूस में '' शि‍क्षा -प्रचार की प्रबलता असाधारण है,क्‍योंकि‍ यहॉं व्‍यक्‍ति‍गत या दलगत अधि‍कार -पि‍पासा या अर्थलोभ नहीं है। एक वि‍शेष मतवाद की दीक्षा सारी जनता को देकर, वर्ण-जाति‍ -श्रेणी भेदों की उपेक्षा करते हुए ,सबको वि‍कास -मार्ग पर ले जाने की उत्‍कट इच्‍छा है।''
        सोवि‍यत संघ की अक्‍टूबर क्रांति‍ के आगमन के बाद पहलीबार सोवि‍यत संघ में ही नहीं सारी दुनि‍या में औरतों को वि‍शेष अधि‍कार दि‍ए गए। प्रजनन अवकाश दि‍या गया। वास्‍तव अर्थों में औरत को प्रत्‍येक क्षेत्र में समानता का दर्जा मि‍ला। वेश्‍यावृत्‍ति‍ पूरी तरह खत्‍म हो गयी। सारे देश से अशि‍क्षा खत्‍म हो गयी। राजनीति‍ के प्रत्‍येक स्‍तर पर औरतों की हि‍स्‍सेदारी थी। कृषि‍दासता से ग्रस्‍त राष्‍ट्र ने क्रांति‍ के बाद आधुनि‍क राष्‍ट्र की शक्‍ल ले ली। जाहि‍र है इस कार्य में खाली जनता का दमन नहीं हुआ बल्‍कि‍ अनेक अच्‍छे काम भी हुए थे। रोजगार कार्यालय खोले गए। शि‍क्षा,स्‍वास्‍थ्‍य, बि‍जली,पानी,नौकरी आदि‍ के बारे में आम जनता को सन् 1917 से 1980 तक कभी सोचना नहीं पड़ा। सारा देश समृद्धि‍ से भरा नजर आता था।
     सन् 1980 के बाद के सालों में पैरेस्‍त्रोइका की नीति‍ लागू करते ही कम्‍युनि‍स्‍ट समाज पूरी तरह ताश के पत्‍तों की तरह बि‍खर गया। सारा देश 11 वि‍भि‍न्‍न राष्‍ट्रों में  बंट गया। क्रांति‍ के समय जि‍स देश को खून की कुर्बानी देनी पड़ी थी लेकि‍न येल्‍तसि‍न के नेतृत्‍व में जब समाजवादी व्‍यवस्‍था का प्रति‍वाद हुआ तो यह कि‍सी की भी समझ में नहीं आया और बगैर कि‍सी खूनखराबे के सोवि‍यत संघ में समाजवादी व्‍यवस्‍था का पतन हो गया। सोवि‍यत संघ क्‍यों टूटा और समाजवाद कहां चला गया।इसकी हमें खोज करनी चाहि‍ए।  











               

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