शनिवार, 21 नवंबर 2009

ब्‍लॉगिंग पर राष्‍ट्रीय कानून बनाए सरकार



ब्‍लॉगिंग स्‍वयंभू पत्रकारि‍ता है। ब्‍लॉगरों पर जि‍स तरह के आए दि‍न मुकदमेबाजी और कानून के उल्‍लंघन के सवाल उठ रहे हैं ,उनके बारे में यह कहा जा रहा है वे मानहानि‍ कर रहे हैं,उस संदर्भ में ही यह‍ सवाल उठता है कि‍ आखि‍रकार ब्‍लॉगरों के अधि‍कार क्‍या हैं ? ब्‍लॉगिंग क्‍या है ? क्‍या पत्रकार और ब्‍लॉगर के अधि‍कार अलग हैं ? क्‍या ब्‍लॉगर को अपनी सूचना का स्रोत बताने के लि‍ए बाध्‍य कि‍या जा सकता है ? क्‍या ब्‍लॉगर का छद्मनाम का इस्‍तेमाल करना काननून जुर्म है ?क्‍या छद्मनाम का स्रोत बताना कानून सही होगा ? इत्‍यादि‍ सवालों पर गंभीरता के साथ वि‍चार करना चाहि‍ए।

       अभि‍व्‍यक्‍ति‍ की आजादी का नया पैराडाइम है ऑनलाइन लेखन। यह रीयल टाइम लेखन है और इसमें सत्‍य,स्रोत और संवाददाता की जंग बड़े ही जटि‍ल रूपों में चलती है। यह पत्रकारि‍ता का ऐसा पैराडाइम है जि‍समें जि‍तनी जल्‍दी लि‍खना संभव है उससे भी कम समय में संचार संभव है।
     ब्‍लॉगर की आजादी का सवाल भारत में इसलि‍ए भी महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि‍ ब्‍लॉगर का कोई सांस्‍थानि‍क ढ़ांचा नहीं है। प्रेस और इलैक्‍ट्रोनि‍क मीडि‍या के पास सांस्‍थानि‍क ढ़ांचा है इसके कारण वे अनेक बार संचार के नाम पर सौदेबाजी करने,ब्‍लैकमेल करने या दबाव ड़ालने में भी सफल हो जाते हैं। सामान्‍यतौर पर प्रसारण,मीडि‍या,प्रकाशन,वैध अवैध प्रकाशन आदि‍ के कानूनों के जरि‍ए अथवा नए संशोधि‍त सूचना कानून के जरि‍ए ब्‍लॉगर को आदलतों के चक्‍कर लगवाए जा सकते हैं,नया सूचना कानून ब्‍लॉगर के बारे में सटीक रूप में कुछ भी नहीं बोलता,इसका जज,पुलि‍स और सरकार अपने हि‍साब से दुरूपयोग करने के लि‍ए स्‍वतंत्र हैं।
    हमारी पहली मांग यह है कि‍ ब्‍लॉगरों के अधि‍कारों को लेकर सुनि‍योजि‍त और स्‍पष्‍ट कानून तैयार कि‍या जाए। ब्‍लॉगर के अधि‍कारों के बारे में जो भी नया कानून बने उसका बुनि‍यादी आधार होना चाहि‍ए सूचना के अबाधि‍त प्रसारण का अधि‍कार। राष्‍ट्रीय सुरक्षा, व्‍यापारि‍क हि‍त और अन्‍य कि‍सी भी बहाने से इस अधि‍कार की सीमाएं तय नहीं की जानी चाहि‍ए।
दूसरी महत्‍वपूर्ण बात यह है कि‍ ब्‍लॉगर स्‍वतंत्र और गैर व्‍यावसायि‍क कार्यकलाप है यह गैर मुनाफे वाला लेखन है, अत: ब्‍लॉगर को कानूनन वकील मुहैयया कराना न्‍यायपालि‍का की जि‍म्‍मेदारी है। ब्‍लॉगर कोई समृद्ध पेशेवर धंधा नहीं है। कायदे से ब्‍लॉगिंग को बढ़ावा देने से अभि‍व्‍यक्‍ति‍ के क्षेत्र में अनेक क्रांति‍कारी परि‍वर्तन आ सकते हैं।
दूसरा महत्‍यपूर्ण पक्ष है ब्‍लॉगरों की मदद का। स्‍थानीय स्‍तर पर ब्‍लॉगिंग को बढ़ावा देने के लि‍ए जरूरी है कि‍ स्‍थानीय प्रशासन अपने इलाके के अथवा जनप्रि‍य ब्‍लॉगों का प्रचार-प्रसार और जनहि‍त के मुफ्त वि‍ज्ञापनों के लि‍ए इस्‍तेमाल कर सकता है, इसकी कानूनी व्‍यवस्‍था होनी चाहि‍ए। जरूरी हो तो सरकार के वर्गीकृत वि‍ज्ञापनों ,समय -समय पर लांच होने प्रचार अभि‍यानों आदि‍ के वि‍ज्ञापनों को भी ब्‍लॉगरों को दि‍या जाना चाहि‍ए। इससे ब्‍लॉगरों की मदद भी होगी और वि‍कासमूलक जि‍म्‍मेदारि‍यां भी बढ़ेंगी।
    अभी ब्‍लॉगिंग का कार्य व्‍यापार पूरी तरह आत्‍माभि‍व्‍यक्‍ति‍ केन्‍द्रि‍त है, यह स्‍थि‍ति‍ बदलेगी, ब्‍लॉगिंग के जरि‍ए पत्रकारि‍ता होने लगेगी, अनेक ब्‍लॉगरों ने यह काम शुरू भी कर दि‍या है। लेकि‍न अभी यह शैशवावस्‍था में है। ब्‍लॉगर अपने काम को नि‍र्भय होकर कर पाएं इसके लि‍ए जरूरी है कि‍ नए ब्‍लॉगर कानून में सूचना को कानूनी संरक्षण वैसे ही दि‍या जाए जैसे प्रेस की सूचना को कानूनी संरक्षण प्राप्‍त है। ब्‍लॉगिंग की सूचना को कानूनी संरक्षण दि‍ए बि‍ना ब्‍लॉगिंग को बचाना संभव नहीं है।
    आज ब्‍लॉगर मन के भाव व्‍यक्‍त कर रहा है। कल वह स्‍थानीय पंचायत, नगरपालि‍का, राज्‍य सरकार,केन्‍द्र सरकार  आदि‍ के घोटालों,राजनेताओं के कुकर्मों के उदघाटन का प्रभावशाली हथि‍यार बनेगा। हम चाहें या न चाहें भवि‍ष्‍य की पत्रकारि‍ता का सबसे बड़ा रणक्षेत्र ब्‍लॉग होंगे। प्रेस से लेकर इलैक्‍ट्रोनि‍क मीडि‍या तक जि‍स तरह कारपोरेट कल्‍चर ने पैर पसारे हैं और सत्‍य का रहस्‍योदघाटन मुश्‍कि‍ल कर दि‍या है उसने पत्रकारों की अभि‍व्‍यक्‍ति‍ के अधि‍कांश दरवाजे बंद कर दि‍ए हैं।
    अब कारपोरेट मीडि‍या रहस्‍योदघाटन या खोजी रि‍पोर्ट नहीं दे रहा। बल्‍कि‍ अनेक मामलों में वह पूरी तरह कारपोरेट संस्‍कृति‍ का पुर्जा बन गया है और उसने आत्‍मसेंसरशि‍प लागू कर दी है। आत्‍म - सेंसरशि‍प और कारपोरेट मीडि‍या की सड़ांध से बचने का पत्रकारों के पास एक ही सशक्‍त उपाय है ब्‍लॉगिंग।
      कारपोरेट मीडि‍या पूरी तरह कारपोरेट घरानों और प्रधान राजनीति‍क दलों या ताकतवर लोगों की सुरक्षा का हथि‍यार बन गया है। इसे अब सूचना की रक्षा की नहीं कारपोरेट रक्षा के दबाव सता रहे हैं। कारपोरेट मीडि‍या के बारे में अब भी ब्‍लॉगर ज्‍यादा लि‍ख रहे हैं, पत्रकारों को अपनी बातें कहने के लि‍ए ब्‍लॉग आज सबसे सुरक्षि‍त और प्रभावशाली माध्‍यम है। ऐसी स्‍थि‍ति‍ में ब्‍लॉगरों के लि‍ए स्‍वतंत्र कानून बनाने की पहल होनी चाहि‍ए। स्‍वयं ब्‍लॉगरों को अपना सम्‍मेलन,गोष्‍ठी या ब्‍लॉग पर चर्चाएं करके संभावि‍त कानून के बारे में बहस आरंभ करनी चाहि‍ए।
   जि‍स तरह प्रेस के संवाददाता को सरकार मान्‍यता देती है उसी तरह प्रत्‍येक ब्‍लागर को मान्‍यता दी जानी चाहि‍ए,वैसे ही उसे सूचना पाने का अधि‍कार भी देना चाहि‍ए। मसलन् कोई ब्‍लॉगर यदि‍ कि‍सी जि‍लाधीश या मुख्‍यमंत्री से सूचनाएं या साक्षात्‍कार लेना चाहे, कि‍सी भी मसले पर सरकारी पक्ष जानना चाहे तो उसे कानूनन यह मदद मि‍लनी चाहि‍ए। सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्‍थानों को ब्‍लॉगिंग को ऑनलाइन पत्रकारि‍ता के रूप में देखना चाहि‍ए। अभी मीडि‍या में कारपोरेट हि‍तों को बचाने का पागलपन छाया हुआ है हमें सवाल करना चाहि‍ए कि‍ कारपोरेट हि‍तों को बचाना जरूरी है या सूचना को बचना जरूरी है। कारपोरेट हि‍तों को बचाने चक्‍कर में सूचना को दफन कर दि‍या गया है, मीडि‍या से खबर की वि‍दाई हो चुकी है। उल्‍लेखनीय है सूचना बचेगी तो सत्‍य भी बचेगा। सूचना का मीडि‍या से गायब होना वस्‍तुत: सत्‍य का गायब होना है। इनदि‍नों हम मीडि‍या में सूचना कम कुसूचना या अर्थहीन सूचनाएं ज्‍यादा देख रहे हैं।
ब्‍लॉगर को गुमनाम टि‍प्‍पणी लि‍खने वाले का स्रोत बताने के लि‍ए कानून बाध्‍य करना पत्रकारि‍ता के बुनि‍यादी कानूनी संरक्षण का उल्‍लंघन है। पत्रकारि‍ता के कानूनी संरक्षण और अभ्‍यास में यह चीज आती है कि‍ पत्रकार अपनी सूचना के स्रोत को सार्वजनि‍क करने के लि‍ए बाध्‍य नहीं है। ब्‍लॉगिंग की सूचना की गोपनीयता को कानूनी संरक्षण देना बेहद जरूरी है, इसके बि‍ना ब्‍लॉगिंग का बचना मुश्‍कि‍ल है।
ब्‍लॉग पर कि‍सी सूचना या टि‍प्‍पणी का प्रकाशि‍त करना गैर कानूनी नहीं हो सकता। यह हो ही सकता है पाठक की कि‍सी लेख के बारे में अपनी स्‍वतंत्र राय हो, वह उसे गुमनाम व्‍यक्‍त करना चाहता हो, और इस पर लेखक को एतराज हो, इसे मानहानि‍ समझे, कायदे से इस तरह के मसले मानहानि‍ नहीं है, इमेज का वि‍खंडन भी नहीं हैं।
     लेखक को पूरा हक है कि‍ वह टि‍प्‍पणीकार के बयान पर अपनी बेबाक राय ब्‍लॉग पर जाहि‍र करे। इस प्रसंग कि‍सी भी कि‍स्‍म के लेकि‍न,परन्‍तु और सीमा के सवाल के साथ समझौता नहीं कि‍या जा सकता।
   हमारे अनेक बुद्धि‍जीवी,पत्रकार और नेता अभि‍व्‍यक्‍ति‍ की आजादी का समर्थन तो करते हैं ,लेकि‍न उसकी सीमाओं का उल्‍लेख करते हुए। वेब अभि‍व्‍यक्‍ति‍ का असीमि‍त माध्‍यम है यहां सीमा नहीं बांध सकते, दूसरी बुनि‍यादी बात यह कि‍ अभि‍व्‍यक्‍ति‍ के अधि‍कार की सीमाओं में बांधकर चर्चा नहीं की जा सकती। अभि‍व्‍यक्‍ति‍ की कोई सीमा नहीं होती, कोई तयशुदा भाषा, तयशुदा नि‍यम,मुहावरे,दायरा नहीं होता, अभि‍व्‍यक्‍ति‍ का दायरा वहां तक फैला है जहां तक बोलने वाला जाना चाहता है। इस परि‍प्रेक्ष्‍य को ध्‍यान में रखकर ब्‍लॉगर और ब्‍लॉगिंग के बारे में तुरंत राष्‍ट्रीय कानून बनाया जाना चाहि‍ए।
ब्‍लॉग पर कोई बात कहना,खासकर जो पसंद नहीं है, वह मानहानि‍ नहीं है। हाल ही में प्रभाषजोशी,राजेन्‍द्र यादव ,नामवर सिंह आदि‍ के लेखन पर हि‍न्‍दी ब्‍लॉगरों में तीखी बहस चली है, उस बहस से यदि‍ कोई यह नि‍ष्‍कर्ष नि‍काले कि‍ यह बहस मानहानि‍ का प्रयास है तो बेबकूफी होगी। अथवा जैसाकि‍ एक पत्रकार ने एक ब्‍लाग या वेब संपादक पर यह कहकर मुकदमा ठोक दि‍या है कि‍ संबंधि‍त पत्रकार के बारे में टि‍प्‍पणी छापकर ब्‍लॉग संपादक ने मानहानि‍ की है या कानून का उल्‍लंघन कि‍या है तो यह तर्क कानूनन गलत है।
     कि‍सी के बारे में लि‍खना गलत नहीं है, सवाल यह है कि‍ उसे कि‍स भाषा में लि‍खा जाए। यह फैसला भी लेखक ही करेगा, कानून नहीं करेगा। अगर कोई लेखक गाली की भाषा में ही लि‍खना चाहता है तो यह उसका नि‍र्णय होगा। हमें पाठक के नाते उस पर प्रति‍क्रि‍या देने न देने,अपनी भाषा में अथवा ति‍लमि‍ला देने वाली भाषा में जबाव देने का हक है और इस हक का सम्‍मान ब्‍लॉग संपादक को भी करना चाहि‍ए। ब्‍लॉगिंग संवाद,सूचना और संपर्क का अबाधि‍त माध्‍यम है और इसका कानूनी संरक्षण होना चाहि‍ए। ‍
   यदि‍ आप ब्‍लॉगर हैं तो आपको लि‍खने का अधि‍कार भी है। आप अपने ज्ञान,सूचना और समझ के साथ इस समाज को समृद्ध कर सकते हैं। आपकी अभि‍व्‍यक्‍ति‍ को कानून वैधता देता है। फलत: ब्‍लॉगिंग कानून उन सभी अधि‍कारों को पाने का अधि‍कारी है जो मीडि‍या को प्राप्‍त हैं ,साथ उन तमाम नए प्रावधानों को भी पाने का अधि‍कारी है जो ऑनलाइन वर्चुअल लेखन ने पैदा कि‍ए हैं। इस अर्थ में ब्‍लॉगर को पत्रकार की कोटि‍ से आगे बढ़ा हुआ समझना चाहि‍ए।
    आज समाज में कानूनन जि‍तने अधि‍कार,सुवि‍धाएं और सम्‍मान दर्जा कि‍सी पत्रकार को प्राप्‍त हैं कानूनन वे सारी सुवि‍धाएं,मान्‍यताएं और कानूनी संरक्षण ब्‍लॉगर को मि‍लने चाहि‍ए। ब्‍लॉगर तो पत्रकार है। वह कि‍सी अन्‍य लोक का प्राणी नहीं है। ब्‍लॉगिंग पत्रकारि‍ता है वह मात्र आत्‍माभि‍व्‍यक्‍ति‍ का रूप नहीं है। हम सभी को इस मसले पर गंभीरता के साथ इसके समस्‍त आयामों पर खुलकर चर्चा करके एक दस्‍तावेज तैयार करना चाहि‍ए और केन्‍द्र सरकार को देना चाहि‍ए।      
        
     




12 टिप्‍पणियां:

  1. क्यों भाई सरकारी बाबुओं के हत्थे चढ़ाना चाहते हो ब्लागिंग को भी..ब्लागिंग को आज़ाद ही रहने दो

    जवाब देंहटाएं
  2. आपने बहुत ही गम्भीर सवाल उठाये हैं… और इन पर व्यापक विचार-विमर्श होना आवश्यक है। चूंकि मीडिया अब बिक चुका है अतः आने वाले समय में ब्लॉगर ही कई नये रहस्योद्घाटन करेंगे, ऐसे में उन्हें 1) कानूनी सुरक्षा, 2) एक मजबूत संगठन का समर्थन, 3) उनके स्रोतों को जाहिर न करने सम्बन्धी दबाव से मुक्ति दिलाई जाना बेहद आवश्यक है। सरकार, सरकारी कारिन्दे या अफ़सर ऐसा कुछ करेंगे इसकी सम्भावना क्षीण ही है, क्योंकि RTI का हश्र और उसमें लगाये जाने वाले अडंगे भी हम देख ही चुके हैं। तब इस महती कार्य के लिये अन्य विकल्प क्या हो सकते हैं इन पर ब्लॉगर सम्मेलनों में विचार होना चाहिये। ब्लागर सम्मेलनों में हीही-ठीठी के बजाय आपके उठाये गये मुद्दों पर विमर्श आवश्यक है…

    जवाब देंहटाएं
  3. लेखन में केवल ब्लॉग-लेखन ही एक ऐसा माध्यम है जिसमे रीयल टाइम संवाद स्थापित हो सकता है. लेखक अपने पाठक का वैसे तो जवाबदेह होता ही है किन्तु ब्लॉग में आने वाली टिप्पणियों की सुविधा उसपर एक तरह की आवश्यक नियंत्रण तो लगाती ही है. कम से कम हिंदी ब्लॉग लेखन में ऐसी गंभीर अराजकता तो नहीं ही दिखती है. रही बात टिप्पणियों की तो यहाँ भी ब्लोगर बंधुओं को माडरेशन की सुविधा है. मुझे नहीं लगता कि ब्लोगिंग के लिए किसी नए राष्ट्रिय कानून की आवश्यकता है. संविधान में पहले से ही जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त मर्यादाएं लगाई गयी हैं वो पर्याप्त जान पड़ती हैं. वैसे भी महज कानून बना भर देने से कोई समस्या हल नहीं हो जाती.

    जवाब देंहटाएं
  4. " प्रेस से लेकर इलैक्‍ट्रोनि‍क मीडि‍या तक जि‍स तरह कारपोरेट कल्‍चर ने पैर पसारे हैं और सत्‍य का रहस्‍योदघाटन मुश्‍कि‍ल कर दि‍या है उसने पत्रकारों की अभि‍व्‍यक्‍ति‍ के अधि‍कांश दरवाजे बंद कर दि‍ए हैं। "

    तभी तो इमानदार पत्रकार ब्लागिंग का रुख कर रहे हैं। यह सही है कि ब्लागर अपनी ज़िम्मेदारी को समझे... वैमनस्य फैलाने से बचें ॥

    जवाब देंहटाएं
  5. जो क़ानून है चाहे किसी भे क्षेत्र में, वे कितने कारगर है, पहले यह सोचना होगा, काननों बनाना मतलब सत्ता पक्ष के हाथो खेलना !

    जवाब देंहटाएं
  6. ांअगे देखते हैं ब्लागर बन्धूयों का क्या विचार है । कम से कम नेट की सुविधा तो फ्री मे मिलनी ही चाहिये। बहस के लिये अच्छा मुद्दा है जो भी परिणाम हो उसे ब्लागर्ज़ मीट मे रखा जाना चाहिये और फिर जो कार्वाई बनती हो होनी चाहिये। धन्यवाद इस विषय को ऊठाने के लिये

    जवाब देंहटाएं
  7. ब्लागरी के लिए किसी कानून की आवश्यकता क्यों पड़ रही है? क्या लेखन, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उस पर लगी पाबंदियों के कानून पर्याप्त नहीं हैं क्या?

    जवाब देंहटाएं
  8. सुरेश जी से सहमत. यह एक गंभीर मुद्दा है और इस पर बहस एवं एकराय बनाना जरूरी है वरना कल को सरकार इसका भी गला घोंटने को उतारू हो जाएगी.

    जवाब देंहटाएं
  9. एक सामान्य अवधारणा है कि 'कानून काम करवाने के लिए नहीं, काम रूकवाने के लिए बनाए जाते हैं'

    जवाब देंहटाएं
  10. अच्छा प्रश्न उठाया है आपका आकलन सही दिशा मे है साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  11. .
    .
    .
    वाकई गंभीर मुद्दा उठाया आपने,

    "ब्‍लॉगरों के अधि‍कारों को लेकर सुनि‍योजि‍त और स्‍पष्‍ट कानून तैयार कि‍या जाए। ब्‍लॉगर के अधि‍कारों के बारे में जो भी नया कानून बने उसका बुनि‍यादी आधार होना चाहि‍ए सूचना के अबाधि‍त प्रसारण का अधि‍कार। राष्‍ट्रीय सुरक्षा, व्‍यापारि‍क हि‍त और अन्‍य कि‍सी भी बहाने से इस अधि‍कार की सीमाएं तय नहीं की जानी चाहि‍ए।"

    सहमत हूँ, पर "ब्लॉगर" की परिभाषा तक तय नहीं हो पाई अब तक तो !

    आओ 'शाश्वत सत्य' को अंगीकार करें........प्रवीण शाह

    जवाब देंहटाएं
  12. वास्तव में सटीक गंभीर मसला उठाया है आपने... ब्लागिंग में बहुत कुछ किया जाना चाहिए....

    जवाब देंहटाएं

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...