शनिवार, 28 नवंबर 2009

'सच का सामना' बनाम अम्‍बि‍का सोनी की शैतानी आयतें










केन्‍द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री भड़की हुई हैं और सीधे अपने अधि‍कार क्षेत्र के बाहर चली गयी हैं। उन्‍होंने 'स्‍टारप्‍लस' को 'सच का सामना' कार्यक्रम के लि‍ए चेतावनी जारी की है। यह चेतावनी सीधे प्रसारण की स्‍वतंत्रता में हस्‍तक्षेप है। यह चेतावनी 'प्रेशर की राजनीति‍' का परि‍णाम है। माध्‍यमों के संदर्भ में इसे फासीवादी हस्‍तक्षेप कहते हैं। यह चंद सांसदों के कठमुल्‍लेपन के दबाव में लि‍या गया नि‍र्णय है।
    मजेदार बात है कि‍ इन सांसदों ने रात 11 बजे के बाद से कानूनन ब्‍लू फि‍ल्‍म दि‍खाने की अनुमति‍ दी हुई है। इन सांसदों ने इंटरनेट के जरि‍ए ,ब्रॉडबैण्‍ड के जरि‍ए पोर्न वेबसाइट के अबाधि‍त प्रसारण की अनुमति‍ दी हुई है। इन सांसदों की आंखों के सामने अवैध सेक्‍स फि‍ल्‍मों के उत्‍पादन और वि‍तरण का कारोबार व्‍यापक स्‍तर पर फल फूल रहा है। इस सबसे न तो सूचना प्रसररण मंत्रालय को कोई परेशानी है और नहीं 'इंटरमि‍नि‍स्‍टीरि‍यल कमेटी' को ही कोई परेशानी है।
    हम पूछना चाहते हैं कि‍ इंटरनेट से पोर्न वेबसाइट का अबाध प्रसारण कि‍स कानून के तहत और कि‍स खुशी में जारी है ? हम क्‍या यह मान लें कि‍ भारत के लोग पोर्न नहीं देखते। पोर्न देखना,दि‍खाना,बेचना और खरीदना कानूनन अपराध है। हम मांग करते हैं कि‍ राष्‍ट्रहि‍त,समाजहि‍त, बालहि‍त और स्‍त्रीहि‍त में समस्‍त पोर्न वेबसाइट का प्रसारण तुरंत रोका जाए। यह प्रसारण कि‍स खुशी में जारी है और क्‍यों पोर्न के धंधे से राष्‍ट्रीयकृत बैंक अपना व्‍यापार कर रहे हैं ? हमें तमाम कि‍स्‍म के लेन देन और भुगतान को रोकने के बारे में वि‍चार करना चाहि‍ए जो हमारी राष्‍ट्रीयकृत बैंकों के क्रेडि‍ट कार्ड बगैरह के जरि‍ए पोर्न की खरीद के लि‍ए इंटरनेट से हो रहा है। यह कैसे हो सकता है कि‍ इंटरनेट पर आप घर में बैठकर पोर्न देख सकते हैं, रात को 11 बजे के बाद ब्‍लू फि‍ल्‍म देख सकते हैं, लेकि‍न 'सच का सामना' के सवाल -जबाव नहीं देख सकते। क्‍या पोर्न,ब्‍लू फि‍ल्‍में भारतीय संस्‍कृति‍,सभ्‍यता, कानून आदि‍ के दायरे में वैध हैं ? क्‍या उससे हमारे भारतीय परि‍वारों की संस्‍कृति‍ पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता ,यह कैसी संस्‍कृति‍ और सभ्‍यता है जि‍सकी एक साधारण से रि‍यलि‍टी शो के सवालों से चूलें हि‍ल जाती हैं। सरकार कांपने लगती है। मंत्री राजाज्ञा जारी कर देता है। सांसदों की नींद गायब हो जाती है। यह कैसी संस्‍कृति‍ है,यह कैसी परंपरा है जो सवाल और जबाव से थर्राती है। दूसरी बात कोई भी सवाल और जबाव अशोभनीय,अशालीन नहीं होता। सवाल से लोग बि‍गडते नहीं हैं। सवाल से सांस्‍कृति‍क क्षय भी नहीं होता। चाहे वह स्‍वैराचार के बारे में पूछा गया सवाल हो,अवैध संबंधों के बारे में पूछा गया सवाल हो अथवा मंत्री महोदया के शब्‍दों में एकदम अश्‍लील सवाल ही क्‍यों न हो। 
     सवाल तो सवाल है। वह एक वाक्‍यभर है। वाक्‍यों से संस्‍कृति‍ नहीं गि‍रती,लज्‍जि‍त नहीं होती। अशालीनता और अश्‍लीलता सवाल ,जबाव और वाक्‍य में नहीं होती वह तो हमारे मन में होती है। सवाल-जबाव से संस्‍कृति‍ यदि‍ लज्‍जि‍त या आहत होती तो संस्‍कृति‍ का वि‍कास ही नहीं होता। संस्‍कृति‍ के वि‍कास के लि‍ए उन सवालों को बार-बार पूछा गया है जो अछूत माने जाते हैं,अशालीन ,अनैति‍क,और अश्‍लील माने जाते हैं। अंबि‍का सोनी जि‍न नैति‍क मानकों की बात कर रही हैं वे मानक हमें अंग्रेजों की वैचारि‍क गुलामी से मि‍ले हैं। उनसे भारतीय परंपरा का कोई लेना-देना नहीं है। यह देश का दुर्भाग्‍य है कि‍ हमारे सांसद और मंत्री अंग्रेजों के जमाने में तय की गई भारतीय नैति‍कता को नए सि‍रे से आरोपि‍त करने जा रहे हैं।केन्‍द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अम्‍बि‍का सोनी ने 'स्‍टार प्‍लस' हि‍न्‍दी चैनल को 'सच का सामना' को चेतावनी दी है कि‍ वह अपना रि‍यलि‍टी शो कार्यक्रम तैयार करते समय भारतीय परंपराओं और संस्‍कृति‍ का ख्‍याल रखे। अगर वह ऐसा नहीं करता तो उसके खि‍लाफ 'केबल टेलीवि‍जन नेटवर्कस (रेगूलेशन) एक्‍ट 1995' के तहत कार्रवाई की जाएगी। मजेदार बात यह है कि‍ मंत्री महोदया का मानना है कि‍ पॉलीग्राफ टेस्‍ट आधारि‍त शो के परि‍णाम बेहतर अभि‍रूचि‍ और भद्रता पर बुरा असर डालते हैं। नैति‍क दुर्बलता,  अगम्‍यागमन, स्‍वैर संबंध आदि‍ वि‍षयों पर सार्वजनि‍क तौर पर सवाल नहीं पूछे जाने चाहि‍ए। पॉलीग्राफि‍क टेस्‍ट के परि‍णाम लज्‍जि‍त करने वाले होते हैं। ये सवाल सि‍र्फ प्रति‍योगी के ही नहीं बल्‍कि‍ दर्शकों और उनके साथ बैठे परि‍वारीजनों के लि‍ए भी लज्‍जि‍त करने वाले होते हैं। जो सवाल पूछे जाते हैं वे अच्‍छी अभि‍रूचि‍ और भद्रता को आहत करने वाले होते हैं। सवालों में अश्‍लील शब्‍दों का प्रयोग कि‍या जाता है। इससे सार्वजनि‍क नैति‍कता और देश पर कालि‍ख लगती है। इस तरह के शब्‍द और सवाल सार्वजनि‍क तौर पर अबाधि‍त ढ़ंग से नहीं पूछे जाने चाहि‍ए। मंत्री महोदया पॉलीग्राफि‍क टेस्‍ट और उसके सवाल जबाव तेलगी कांड में क्‍या अशालीन नहीं लग रहे थे ? तब आप चुप क्‍यों थीं ?
'स्‍टारप्‍लस' चैनल को चेतावनी देने का फैसला 'इंटरमि‍नि‍स्‍टीरि‍यल कमेटी' की बैठक में लि‍या गया। यह कमेटी 'स्‍टारप्‍लस' चैनल के द्वारा भेजे गए जबाव की जांच कर रही थी। उल्‍लेखनीय है कि‍ 'स्‍टार प्‍लस ' को जुलाई 2009 में सूचना प्रसारण मंत्रालय ने नोटि‍स भेजा था, उस समय राज्‍यसभा में हंगामा हुआ था, उस नोटि‍स के जबाव पर वि‍चार पर करने के बाद 'इंटर मि‍नि‍स्‍टीरि‍ल कमेटी'  ने यह चेतावनी जारी की है। मंत्री महोदया जानती नहीं हैं अथवा जानबूझकर शैतानी कर रही हैं। उन्‍हें अच्‍छी तरह मालूम है कि‍ हि‍न्‍दी में प्रति‍वर्ष ऐसी दसि‍यों बेहतर फि‍ल्‍में आती हैं जि‍नमें उस तरह के सवाल पूछे जाते हैं, फि‍ल्‍माए जाते हैं जो 'सच का सामना' में पूछे जाते रहे हैं। इससे भी बड़ी बेवकूफी यह कि‍ रि‍यलि‍टी टीवी शो में रि‍यलि‍टी कम नि‍र्मित रि‍यलि‍टी ज्‍यादा होती है। इसे वास्‍तवि‍कता या स्‍वत:स्‍फूर्त्‍त सच्‍चाई की अभि‍व्‍यक्‍ति‍ समझने की भूल नहीं करनी चाहि‍ए।     



1 टिप्पणी:

  1. "यह चेतावनी सीधे प्रसारण की स्‍वतंत्रता में हस्‍तक्षेप है। यह चेतावनी 'प्रेशर की राजनीति‍' का परि‍णाम है। माध्‍यमों के संदर्भ में इसे फासीवादी हस्‍तक्षेप कहते हैं। यह चंद सांसदों के कठमुल्‍लेपन के दबाव में लि‍या गया नि‍र्णय है।"

    क्यों नहीं, इन टीवी चैनलों को धमकाने की किसकी जुर्रत, ये तो खुदा की तोप है, छोटे परदे पर ये चाहे तो माँ- बहिनों के कपडे भी उतरवा दे !
    हाँ, ये सही है कि डरा धमका के क्या फायदा जब चिड़िया चुंग गई खेत !

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