रविवार, 4 जुलाई 2010

‘जी-20’ नहीं ‘बी-20’ कहो

(टोरंटो में जी-20 देशों के सम्मेलन के मौके पर हवाई जहाज से उतरते प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
           कनाडा में जी-20 देशों के सम्मेलन के मौके पर अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जब बोलते हैं तो उन्हें सारी दुनिया ध्यान से सुनती है। ओबामा के इस कथन में आंशिक सत्य है। यह सच है कि मनमोहन सिंह जब बोलते हैं तो सारी दुनिया के अमीर उनकी ओर आशाभरी नजरों से देखते हैं,उनकी बातें गौर से सुनते हैं। लेकिन अमीरों और नव्य -उदारपंथी पूंजीवादी नेताओं के सुने को सारी दुनिया के सच में रूपान्तरित करना सही नहीं होगा। मनमोहन सिंह का जितना भी आर्थिक विमर्श है.नीतिगत सुझाव हैं वे उनके नव्य-उदार मॉडल की देन हैं। इस मॉडल के अनेक संस्करण प्रचलन में हैं और सभी संस्करण पिट चुके हैं।  नव्य-उदार आर्थिक मॉडल का लक्ष्य आम आदमी को सम्बोधित करना नहीं है। इस मॉडल के आधार पर आम आदमी की खुशहाली कम हुई है। अमीरों की खुशहाली बढ़ी है।
     कनाडा में हाल में हुए  जी-20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन  के अंत में जारी घोषणापत्र विश्व की आर्थिक विषमता को सम्बोधित नहीं करता। यह घोषणापत्र उन सुझावों की घोषणा करता है जिनसे सारी दुनिया में व्याप्त आर्थिक वैषम्य और भी बढ़ेगा। हम यहां कुछ तथ्यों को रखना चाहेंगे। विगत 30 सालों में सारी दुनिया में नव्य-उदार आर्थिक नीतियों के कारण गरीब और अमीर के बाच की खाई और चौड़ी हुई है।
    तथ्य बताते हैं कि नव्य-उदार आर्थिक नीतियों के कारण गरीब और अमीर देशों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ी है। दो प्रतिशत समृद्धों के पास सारी दुनिया की आधी से ज्यादा संपदा है। दस प्रतिशत समृद्ध लोग सारी दुनिया की 85 प्रतिशत संपत्ति के मालिक हैं। दूसरी ओर सारी दुनिया के मनुष्यों के पास मात्र एक प्रतिशत से भी कम संपदा है। सारी दुनिया के तीन अति समृद्ध व्यक्तियों के पास अकूत संपत्ति जमा हो गयी है। इन तीनों लोगों की संपत्ति 48 गरीब देशों की सकल संपदा से भी ज्यादा है।
     सवाल यह है कि सन् 2008 के ग्लोबल आर्थिक संकट के लिए कौन जिम्मेदार है ? जी-20 देशों के सम्मेलन में अमीरों के लिए कैसे आर्थिक सुविधाएं दी जाएं,इस पर ही बातें हुई हैं। गरीबों को गरीबी से कैसे बाहर निकाला जाए उस पर कोई चर्चा नहीं हुई है। 2008 की आर्थिकमंदी की मार से गरीब सबसे ज्यादा आहत हुए हैं। उनकी आर्थिक-सांस्कृतिक क्षति सबसे ज्यादा हुई है। विश्व मजदूर संघ के अनुसार सन् 2009 में सारी दुनिया में बेकारों की सूची में 34 मिलियन लोगों के नाम शामिल हुए हैं।
 ( कनाडा में जी-20 सम्मेलन के मौके पर प्रतिवाद करती जनता)     
आज सारी दुनिया में बेकारों की संख्या बढ़कर 239 मिलियन हो गई है। विश्व बैंक की मानें तो 2010 के अंत तक और 200 मिलियन लोगों का धंधा-रोजगार चौपट हो सकता है। जबकि सन् 2030 तक 64 मिलियन लोगों की नौकरियां जा सकती हैं।
   यह एक सत्य है कि पृथ्वी के दक्षिणी इलाके के महागनगरों की आधी आबादी झुग्गी-झोंपड़ियों में रहती है। इनके पास शिक्षा,पानी,बिजली,स्वास्थ्य और शौच-सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है।
     इसी तरह ग्लोबल पर्यावरण असंतुलन और परिवर्तन के कारण  प्रति वर्ष तीन लाख लोग मर जाते हैं और 125 बिलियन डॉलर की सालाना क्षति हो रही है। पर्यावरण के संकट को विशेषज्ञों ने मौन संकट की संज्ञा दी है। मौसम में गर्मी बढ़ी है। सन् 2010 के अंत तक तापमान दो डिग्री बढ़ जाने की आशंका है। कुलमिलाकर पर्यावरण संकट के कारण जंगल,फसल,पहाड़,बर्फीले पहाड़,नदी-नाले,समुद्र आदि के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। अनेक समुद्री जीव-जन्तुओं के अलावा जंगली पशु -पक्षियों का जीवन भी दांव पर लगा है ,यानी समूचा इको-सिस्टम संकटग्रस्त है। लेकिन जी-20 देशों के कनाडा घोषणापत्र में इस संकट से निबटने का कहीं पर कोई जिक्र नहीं है।
   सच यह है कि विश्व पूंजीपतिवर्ग ने समूची जलसंपदा को प्रदूषित कर दिया है। आज अधिकांश देशों की नदी,नहरें और तालाब प्रदूषित हैं या सूख गए हैं। आंकड़े बताते हैं कि सारी दुनिया में 6.8 बिलियन लोग रहते हैं और नदियों-नहरों आदि में सारी दुनिया में दो मिलियन टन कचरा -गंदगी,औद्योगिक-कृषि कचरा प्रतिदिन फेंका जा रहा है। यह समूची आबादी (6.8 बिलियन ) के कचरे के बराबर है। पानी को पूरी तरह प्रदूषित किया जा चुका है। इसी तरह खानों के उत्खनन से होने वाली आपदा पर भी जी-20 देशों का सम्मेलन चुप है। खानों के उत्खनन के कारण 800 ट्रिलियन लीटर पानी सूख गया है और जो पानी बचा है उसमें विषाक्त कण ज्यादा हैं। सारी पृथ्वी पर तीन बिलियन लोग हैं जिन्हें बहता हुआ पानी एक किलोमीटर के दायरे में अभी तक नसीब नहीं है। सारी दुनिया में जल प्रदूषण बढ़ रहा है,जल के लिए झगड़े और विवाद हो रहे हैं।
    कनाडा में जी-20 देशों का सम्मेलन जब हो रहा था तो उस पर प्रति मिनट एक मिलियन डॉलर खर्चा हुआ और जब यह सम्मेलन खत्म हुआ तो कुल खर्चा दो बिलियन डॉलर आंका गया। ऐसी स्थिति में सादगी से रहने, फिजूलखर्च बंद करने आदि के पूंजीवादी नेताओं के सभी दावे खोखले साबित हुए हैं।
      कुछ लोगों ने ‘जी-20’ देशों के समूह को ‘बी-20’ देशों के समूह का नाम दिया है। यानी बिजनेस घरानों का समूह। ये निजी इजारेदारियों, कारपोरेट घरानों और मुक्त व्यापार के पक्षधरों का संरक्षक समूह है। जब यह सम्मेलन हो रहा था तो कनाडा में एक हजार के करीब प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किए गए,इतनी बड़ी संख्या में कनाडा के इतिहास में कभी लोग गिरफ्तार नहीं किए गए। सुरक्षा इंतजामों पर एक बिलियन डॉलर से ज्यादा खर्च किया गया,इतनी कड़ी व्यवस्था और इतना ज्यादा खर्चा कनाडा के इतिहास में कभी नहीं किया गया।  
          



1 टिप्पणी:

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...