गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

लीबिया में जनांदोलन और कुर्बानियों का जादू


          अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने लीबिया में शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों पर पुलिसबलों के हमलों की कड़े शब्दों में निंदा की है। लेकिन उन्होंने गद्दाफी के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला है। उल्लेखनीय है  अमेरिकी प्रशासन को निंदा करने में 7 दिन लग गए। जबकि वे आमतौर पर तत्काल प्रतिक्रिया  देते हैं।
     ओबामा ने कहा है-"The suffering and bloodshed is outrageous and unacceptable,". "So are threats and orders to shoot peaceful protesters and further punish the people of Libya." "These actions violate international norms and every standard of common decency. This violence must stop."
     

          ( लीबिया के बेनगाझी शहर में सेना के टैंक पर खुशी मनाती जनता)
     मानवाधिकार संगठनों के अनुसार लीबिया में अभी तक 700 से ज्यादा आंदोलनकारियों को गद्दाफी की पुलिस और सेना मौत के घाट उतार चुकी है। ऐसी स्थिति में ओबामा का यह कथन मायने रखता है  "In a volatile situation like this one, it is imperative that the nations and peoples of the world speak with one voice,"
लीबिया में अभी जो चल रहा है वो कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पहली बात यह कि लीबिया की जनता लोकतंत्र और अपने अधिकारों के लिए एकजुट हो रही है। दूसरी बड़ी बात यह है कि बड़े पैमाने पर जनता पर जो 41 सालों में जुल्म हुआ है उसकी पीड़ाएं और अन्याय की प्रतिक्रियाएं हो रही हैं। तीसरी बात यह कि लीबिया में कितनी खोखली शासन व्यवस्था चल रही है इसका भी पता चला है।
    मसलन् हाल के आंदोलन के कारण अनेक शहरों में नागरिक प्रशासन की बागडोर बागियों के हाथों में आ गयी है और आम जनता के आंदोलन के सामने सेना ने भी आत्मसमर्पण कर दिया है। लेकिन सेना की टुकड़ियों के इस तरह के समर्पण से गद्दाफी के शासन पर कोई खास असर नहीं होगा। इसका प्रधान कारण है गद्दाफी का समानान्तर सैन्यबल।
       
       गद्दाफी ने अपने शासन में लीबिया की सेना-पुलिस को मजबूत बनाने की बजाय अपने संगठन की सेना-पुलिस तैयार की है जिसमें हजारों वफादार और भाड़े के विदेशी सैनिक हैं। इसके कारण गद्दाफी को सेना में बगाबत से भी कोई खतरा नहीं होने वाला।क्योंकि सरकारी सेना कमजोर है। लीबिया में सेना प्रतीकात्मक रूप में है।उसकी तुलना में गद्दाफी ने जो निजी सेना बनायी है वो ज्यादा ताकतवर है। इसलिए लीबिया में सेना की नया सत्ता संतुलन बनाने में कोई बड़ी भूमिका शायद न बन पाए। जैसाकि मिस्र में देखा गया था।
गद्दाफी के भाषण में जनता के प्रति जो घृणा,अहंकार और बदले की भावना व्यक्त हुई है वो चिंन्ता की बात है। जनांदोलनकारियों को उसने क्रांक्रोच कहा है और उन्हें घर में घुसकर मारने का अपने समर्थकों से आह्वान भी किया है।
    गद्दाफी जानता है कि सेना के बगावत करने से उसका कोई नुकसान नहीं होगा। लीबिया का जनांदोलन यदि गद्दाफी की निजी सेना को तोड़ पाता है तो यह उनकी बड़ी सफलता कही जाएगी। इसके बाबजूद लीबिया की जनता एकजुट होकर प्रतिवाद कर रही है।अनेक शहरों पर उनका कब्जा हो गया है। दुनिया में भी दबाब बढ़ रहा है।
    गद्दाफी की निजी सेना का समाज में आतंक है और कोई भी व्यक्ति उनके खिलाफ एक वाक्य भी नहीं बोल सकता। आमतौर पर सार्वजनिक आलोचना सुनने को नहीं मिलती थी,आम जनता ने इस आतंक के माहौल को काटकर अब तक के आंदोलन में सफलताएं हासिल की हैं। त्रिपोली में अभी भी आतंक है। किसी भी व्यक्ति का घर से निकलना संभव नहीं है,घर के बाहर किसी भी व्यक्ति को देखते ही गोली मार देने के आदेश दे दिए गए हैं। त्रिपोली की सड़कें सुनसान हैं। शहर में जहां-तहां पुलिस और सेना के द्वारा मारे गए लोगों की लाशें पड़ी हैं। इसके अलावा जो विदेशी नागरिक हैं वे परेशान हैं कि किसी तरह सुरक्षित जान बचाकर अपने मुल्क भागें।
    अलजजीरा के अनुसार लीबिया के अनेक शहरों में आंदोलनकारियों का प्रशासन पर नियंत्रण कायम हो चुका है और इन इलाकों में सेना के अफसरों और जवानों ने गद्दाफी प्रशासन का साथ देने से इंकार कर दिया है। दूसरी ओर सारी दुनिया में अधिकांश लीबियाई राजदूतों ने इस्तीफा दे दिया है या फिर वे जनता पर हमले की आलोचना कर रहे हैं,निंदा कर रहे हैं। देश के गृहमंत्री,न्यायमंत्री,गद्दाफी के बेटे सैफ अल इस्लाम के सहयोगी  ने इस्तीफा दे दिया है। अनेक सैन्य अफसरों ने साझा बयान जारी करके जनता के आंदोलन में शरीक होने की अपील की है।  
 




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