मंगलवार, 18 नवंबर 2014

नरेन्द्र मोदी का झूठ और कंगारू छलांगें

      प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पारदर्शित में मजे ही मजे हैं। पारदर्शिता में आनंद की भरमार का प्रधान कारण है उनका सामंती मिज़ाज़ । सामंत या राजा जब भी कहीं जाते थे तो अपने मोरंजन के साधन भी साथ ले जाते थे ,अथवा उनके लिए स्थानीय स्तर पर मनोरंजन मुहैय्या कराया जाता था। आजाद भारत के इतिहास में किसी भी प्रधानमंत्री के साथ मनोरंजन करनेवाले दल नहीं गए और नहीं विदेशों में कूटनीतिक कामों के बाद भारत और भारतीयों की ओर से कोई मनोरंजन का कार्यक्रम ही रखा गया। मोदी इस अर्थ में पक्के सामंत हैं कि उन्होंने अपने हिन्दू राष्ट्रवादी होने का बार-बार विदेश के मंचों पर प्रदर्शन किया है, हिन्दू पंडे-पुजारियों-संतों आदि से किसी न किसी बहाने मिलने या आशीर्वाद लेने का मौका दिया , यह उनके हिन्दू-राष्ट्रवादी प्रकल्प का अंग है,वे संविधान के अनुसार धर्मनिरपेक्ष आचरण न करके विदेश में धर्म-सापेक्ष आचरण कर रहे हैं,यह हम सबके लिए चिन्ता की बात है। प्रधानमंत्री के नाते उनका धर्मविशेष के प्रति आग्रह खतरनाक है। वे निजी तौर पर किसी भी धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन प्रधानमंत्री के रुप में उनको धर्म के प्रति तटस्थ रुख अपनाना चाहिए।
    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ''मेक इन इंडिया'' नामक प्रचार के जरिए देश-विदेश के भारतीय और गैर- भारतीय पूंजीपतियों को पूंजी निवेश के लिए आमंत्रित किया है, लेकिन वे आचरण एकदम उलटा कर रहे हैं। अदानी ग्रुप को 1 विलियन ड़लर का कर्ज देकर उन्होंने ''मेक इन इंडिया'' प्रचार को बधिया कर दिया है,अदानी के आस्ट्रेलिया में 1विलियन ड़लर निवेश से भारत मजबूत नहीं होगा, भारत में रोजगार नहीं बढ़ेंगे,बल्कि इससे तो आस्ट्रेलिया में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और अदानी को बिना कोई पैसा खर्च किए मुनाफा कमाने का मौका मिलेगा। भारत सरकार जब ''मेक इन इंडिया'' का प्रचार कर रही है तो उसे कम से कम अपने देश के पूंजीपतियों को तो समझाना चाहिए कि वे भारत में निवेश करें। साथ ही विदेशों में निवेश के लिए इस मंदी के दौर में 1 विलियन डॉलर का अदानी को कर्ज मुहैय्या कराना तो घाटे का सौदा है। कम से कम अदानी की परियोजना के बारे में विशेषज्ञों की राय को तो बैंक कर्ज देते समय ध्यान रखता।
    सामंतों की आदत होती है वे अपने सेवकों पर हमेशा खूब मेहरबान रहते हैं,सेवकों को हर तरह खुश रखते हैं,भाड़ों की जय हो,जय हो, सुनकर गदगद रहते हैं। लोकतंत्र में यह अदानी के आस्ट्रेलियाई निवेश के बरक्स रखकर यह भी तो सोचें कि मोदीजी जब से सत्ता में आए हैं विदेश से एक पैसे का औद्योगिक पूंजी निवेश लेकर नहीं आए हैं , विदेशों से सिर्फ सट्टाबाजार में पैसा आ  रहा है अथवा बैंकों में जमा करके ब्याजखोरी के लिए पैसा आ रहा है।
     इस पूरे प्रसंग में उल्लेखनीय है कि अदानी आदि की सेवा कररने वाले मोदी इकलौते नेता नहीं हैं बल्कि कांग्रेस का भी इस मामले में कलंकित रिकॉर्ड रहा है। मनमोहन सरकार के दौर में गुजरात के समुद्र किनारे के ग्रामीण इलाकों को मात्र 25करोड़ में अदानी ने बिना किसानों की रजामंदी के सीधे सरकार के जरिए खरीद लिया और 25करोड़ की संपत्तिवाले इन गांवों के विकास के लिए भारत की बैंकों से 400करोड़ रुपये का कर्ज भी मनमोहन सरकार ने जारी करवा दिया। जबकि अदानी के द्वारा अवैध ढ़ंग से गांवों का अधिग्रहण किया गया था।

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