रविवार, 30 जुलाई 2017

जेएनयू में भाजपा का आतंकराज


           जेएनयू में भाजपा-आरएसएस के आतंक और उत्पीड़न के नए युग की शुरूआत हो चुकी है। मोदी सरकार  आने के साथ यह तय कर लिया गया था कि जेएनयू और खासकर वहाँ के छात्रसंघ को हर हालत में ध्वस्त किया जाएगा,इसके लिए सबसे पहले वामपंथ के साथ जेएनयू को जोड़ा गया, जेएनयू को देशद्रोहियों और आतंकियों के साथ जोड़ा गया,इस लाइन पर सारे देश में आरएसएस ने मीडिया अभियान चलाया, दूसरे चरण के तौर पर फ़रवरी २०१६ की घटना को षड्यंत्र करके बडे इवेंट के रुप में सजाया गया और उसके सारे विस्तृत एक्शन प्लान को बनाकर केन्द्र सरकार,दिल्ली पुलिस ,संघ की साइबर वाहिनी और आरएसएस मुख्यालय के संयुक्त तत्वावधान में चलाया गया,इसके लिए लठैतों के रुप में वकीलों और पूर्व सैनिकों की मदद भी ली गयी।उस समय छात्रसंघ के अध्यक्ष सहित कई छात्रों पर राष्ट्रद्रोह के झूठे मुक़दमे भी लगाए गए।उसके समानान्तर  विश्वविद्यालय के अंदर छात्रों और शिक्षकों का एक समूह तैयार किया गया जिसका काम है जेएनयू के बारे में अफ़वाहें फैलाना, जेएनयू के अकादमिक चरित्र और कैंपस के परिवेश को प्रदूषित करना,छात्र-छात्राओं को बदनाम करना,जेएनयू की परंपराओं और प्रशासनिक कार्यप्रणाली को ध्वस्त करना और उपकुलपति जगदीश कुमार की तानाशाही का समर्थन करना।
         आरएसएस के जेएनयू मॉडल में निशाने पर पहले दिन से जेएनयू छात्रसंघ है।किसी न किसी बहाने से विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रसंघ पर रोज हमले कर रहा है, बडी संख्या में आंदोलनकारी छात्रों पर शांतिपूर्ण जुलूस निकालने,धरना देने आदि के लिए बडी मात्रा में जुर्माने लगाए जा रहे हैं , छात्रों के रजिस्ट्रेशन खारिज किए जा रहे हैं,छात्रों को शांतिपूर्ण प्रतिवाद करने से रोका जा रहा है। 

     फ़रवरी २०१६ की घटना के समय कन्हैया कुमार और उनके साथियों को दण्डित करते समय यह कहा गया कि इन लोगों ने देशद्रोही नारे लगाए इसलिए इनके खिलाफ कार्रवाई की गयी, लेकिन आज तक देशद्रोही नारे लगाने से संबंधित प्रमाण जेएनयू प्रशासन ने पेश नहीं किए, दिल्ली पुलिस ने कन्हैया कुमार और दूसरे छात्रनेताओं पर देशद्रोह का झूठा मुक़दमा लगाया था उसके प्रमाण भी आजतक दिल्ली के अदालत में पेश नहीं किए,यहां तक कि आज तक चार्जशीट तक  दाखिल नहीं की ।इस तरह के आतंक के बाद भी पिछले जब छात्रसंघ के चुनाव हुए तो जेएनयू के छात्रों ने वाम संगठनों के नेतृत्व में आस्था व्यक्त की और आरएसएस के अखिल विद्यार्थी परिषद और उनके दुमछल्ले जाति छात्र संगठनों को बुरी तरह परास्त किया।इस पराजय को जेएनयू प्रशासन ने अपनी निजी पराजय समझा और तब से मौजूदा छात्रसंघ पर अकारण हमले तेज कर दिए गए, जेएनयू में एमफिल् पीएचडी के दाख़िले बंद कर दिए गए,यह काम किया गया यूजीसी के सर्कुलर के बहाने, जबकि जेएनयू में एमफिल् पीएचडी दाख़िले के स्वतंत्र नियम हैं जिनके आधार पर वहाँ दाख़िले होते हैं।जेएनयू के इतिहास में यह पहलीबार हुआ कि एमफिल् पीएचडी में अविवेकपूर्ण आधार पर प्रचलित दाख़िला नीति को बदल दिया गया।इससे जेएनयू के अकादमिक चरित्र को भारी नुकसान पहुँचा, सैंकडों प्रतिभाशाली छात्रों को जेएनयू में शोध करने से वंचित कर दिया गया।
             मौजूदा छात्रसंघ के नेताओं पर अकारण मोटा जुर्माना लगाया गया और जुर्माना अदा न करने की अवस्था में उनके नियमित रजिस्ट्रेशन को बाधित करके उनके नियमित छात्र के रुप में पढने के अधिकार को छीन लिया गया।ये वे नेता हैं जिन्होंने न तो वीसी को गाली दी, न कैंपस में हिंसा की और न देशद्रोहियों के पक्ष में नारे लगाए।इनका अपराध यह था कि इन्होंने कैंपस में वीसी ऑफ़िस पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। यानी जेएनयू में अब शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना भी अपराध है।यही वो परिप्रेक्ष्य है जिसके कारण जेएनयू में फिर से अशांति पैदा कर दी गयी है ,छात्रनेताओं के खिलाफ इस तरह की दण्डात्मक कार्रवाई के निशाने पर आने वाले छात्रसंघ चुनाव हैं, प्रशासन चाहता है कि जेएनयू के छात्र वामपंथियों को वोट न दें, आरएसएस का बुनियादी तर्क यही है कि जेएनयू की अशांति की जड़ में वामसंगठन हैं अत:उनको वोट मत दो । यदि वामसंगठनों के नेताओं को जिताओगे तो जेएनयू प्रशासन उनको काम नहीं करने देगा , दाख़िले से वंचित करेगा।ऐसी अवस्था में जेएनयू के छात्रों को तमाम राजनीतिक मतभेद भुलाकर जेएनयू प्रशासन और आरएसएस के खिलाफ एकजुट संघर्ष चलाना चाहिए। इस तरह के दमन और उत्पीड़न का एकमात्र प्रत्युत्तर है शांतिपूर्ण एकजुट संघर्ष।जेएनयूएसयू मार्च ऑन!

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