गुरुवार, 5 अगस्त 2010

ओबामा और अमरीकी साम्राज्य-1-

                      

      सत्ता सपनों से नहीं चलती। सत्ता नीति और राजनीतिक इच्छाशक्ति के सहारे चलती है। सपने के रास्ते से सत्ता तक पहुँचा जा सकता है।  सपनों को साकार नहीं किया जा सकता। सपने ज्यों ही हकीकत का सामना करते हैं चूर-चूर हो जाते हैं। सपनों को चूर होने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। ओबामा के सपनों की मुश्किल है कि वे चूर होने शुरू हो गए हैं। इजरायल पहला देश है जिसने बेवजह गाजा पर हमला करके ओबामा के प्रति मोहभंग पैदा किया है। ओबामा के शपथ लेने के पहले गाजा पर जिस तरह की बमवर्षा की गई और पन्द्रह लाख से भी ज्यादा फिलीस्तीन बाशिंदों को विनाश के हवाले किया उससे ओबामा की भावी राजनीति 'दु:स्वप्न' लग रही है।
    ओबामा ने 20 जनवरी 2009 को शपथ ली। ओबामा के शपथग्रहण समारोह में जो नहीं होना था वही हुआ। शपथ लेते हुए ओबामा जल्दी में सर्वोच्च न्यायाधीश से पहले ही शपथपत्र का पाठ करने लगे। दूसरे दिन फिर से शपथ दिलाई गयी। दूसरी बार की शपथ ही असली शपथ थी। इसबार ओबामा ने मार्टिन लूथर किंग की बाइबिल हाथ में लेकर शपथ नहीं ली और उस समय उनकी पत्नी ही उनके साथ थी। पहले दिन शपथ पाठ करते हुए नियमभंग हुआ था। दूसरे दिन नियम से राष्ट्रपति के दफ्तर में शपथ दिलायी गयी। दूसरे दिन केशपथग्रहण समारोह में दूसरा बड़ा नियमभंग हुआ। नियमानुसार राष्ट्रपति का शपथग्रहण समारोह सार्वजनिक होता है। सम्मानीय अतिथियों और मीडिया की मौजूदगी होती है। किंतु इस नियम का जल्दी में ह्नाइट हाउस पालन करना भूल गया। कहने का अर्थ है ओबामा के प्रशासन का आरंभ नियमभंग से हुआ है तो भविष्य कैसा होगा ?
      पहले दिन शपथ ग्रहण समारोह को जश्न की तरह मनाया गया। किसी राजा की ताजपोशी में जो कुछ होता है वह सब कुछ था। तकरीबन 20 लाख से ज्यादा लोगों को विभिन्न इलाकों से लामबंद किया गया। दुनिया में करोड़ों दर्शकों ने टेलीविजन के माध्यम से लाइव प्रसारण देखा। अमरीका में शपथ ग्रहण समारोह को इतना बड़ा टेलीविजन इवेंट काफी नहीं बनाया गया। नस्लवादी विचारधारा के वर्चस्व वाला बहुराष्ट्रीय मीडिया नस्लरहित और विचारधारारहित राजनीति का संदेश दे रहा था। गोया नस्लवाद और अमरीकी वर्चस्व की राजनीति गुजरे जमाने की चीज हो !
     ओबामा का शपथग्रहण समारोह के मौके पर दिया भाषण उनके अब तक के सभी भाषणों की तुलना में कम उत्तेजक था। कम आशावादी था। उत्तेजक भाषण कला में ओबामा बेजोड़ है। आम लोगों में उम्मीदों का जो पहाड़ उन्होंने खड़ा किया है उससे वे इस दिन नीचे उतरे उम्मीदों के सहारे चुनाव जीत सकते हैं। उत्तेजक भाषण वोटर को मतदान केन्द्र तक ले जा सकता है। साम्राज्य नहीं चलाया जा सकता।
      ओबामा के प्रचार अभियान में टेलीविजन और इंटरनेट का जितने बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया वह स्वयं में एक मिसाल है। इलैक्ट्रोनिक मीडिया ने ओबामा के प्रति अतिरिक्त आशाएं पैदा की हैं। उसकी पुष्टि बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के सर्वे से होती है। सर्वे के अनुसार समूची दुनिया में ओबामा से लोग बहुत आशाएं लगाए बैठे हैं। बीबीसी ने 17 देशों में यह सर्वे किया था। सर्वे के अनुसार 67 फीसद भारतीय उम्मीद करते हैं कि ओबामा के शासन में भारत-अमेरिकी संबंध प्रगाढ़ बनेंगे। सारी दुनिया में ज्यादातर लोग उम्मीद कर रहे हैं ओबामा प्रशासन विश्वव्यापी आर्थिक संकट को सर्वोच्च प्राथमिकता देगा।
    भारतीयों में 47 फीसद का मानना है कि विश्व आर्थिक संकट को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए जबकि 21 फीसद मानते हैं यह महत्वपूर्ण मसला है। 42 फीसद का मानना है कि भारत-अमेरिकी संबंधों को प्रगाढ़ बनाने को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए। 22 फीसद के मुताबिक यह महत्वपूर्ण मसला है। 35 फीसद भारतीयों की राय में क्लाइमेटचेंज को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए। 33 फीसद का मानना है यह महत्वपूर्ण मसला है। भारतीयों में 28 फीसद का मानना है इजरायल-फिलीस्तीन के बीच में शांति स्थापित करने के सवाल को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए।  27 फीसद का मानना है यह महत्वपूर्ण मसला है। 27 फीसद भारतीय मानते हैं इराक से सेना वापसी को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए। 28 फीसद का मानना है यह महत्वपूर्ण मसला है। 26 फीसद मानते हैं कि तालिबान के खिलाफ अफगान सरकार समर्थन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए। जबकि 32 फीसद इस मसले को महत्वपूर्ण मानते हैं।( इण्डियन एक्सप्रेस,20 जनवरी 2009)
      ओबामा का एक तरफ शपथ गहण समारोह चल रहा था दूसरी ओर शेयर बाजार तेजी से लुढ़क रहा था। शेयर बाजार में ओबामा का व्यक्तित्व उत्साह का संचार नहीं कर पाया अमरीकी बाजार का ओबामा पर एकदम भरोसा नहीं जम पा रहा है। बीबीसी वर्ल्ड के अनुसार शपथग्रहण के दिन अमरीकी बैंकों के शेयरों में जबर्दस्त गिरावट हुई। बैंक ऑफ अमेरिका के शेयर 28 फीसद, जेपी मॉर्गन 20.7 फीसद और सिटी ग्रुप के शेयरों में 20 फीसद की गिरावट आई। इसके अलावा इन तीनों ही वित्तीय संस्थानों के 2008 के वित्तीय परिणामों में भारी कमी दर्ज की गई।
     ओबामा के भाषण , शपथ ग्रहण समारोह आदि को डा. मार्टिन लूथर किंग के सपनों के साथ जोड़कर पेश किया गया। किसी भी व्यक्ति को अपने आदर्श नायक चुनने  का लोकतांत्रिक हक है। ओबामा ने अपना नायक यदि किंग को बनाया है तो अच्छा ही किया है। मुश्किल यह है कि मार्टिन लूथर किंग के सपनों का उनके व्यवहार के साथ गहरा संबंध था। मार्टिन लूथर किंग ने अमरीका के गरीबों और वंचितों के लिए जमीनी जंग लड़ी थी। ओबामा ने अपने जीवन में कोई भी जनान्दोलन नहीं लड़ा। किसी भी व्यक्ति के आदर्श ठोस शक्ल तब ही अख्तियार करते हैं जब वह उनके लिए जमीनी संघर्ष करे। त्याग करे। बिना संघर्ष और कुर्बानी के आदर्श वायवीय होते हैं। सुनने में अच्छे लगते हैं। यथार्थ से विच्छन्न होते हैं।  ओबामा और मार्टिन लूथर किंग में दूसरा बड़ा अंतर है कि किंग ने त्याग को अपनाया ओबामा ने मुनाफे को अपनाया। ओबामा जब मार्टिन लूथर किंग के सपनों को साकार करने का स्वांग रच रहे थे तो सुचिंतित ढ़ंग से मार्टिन लूथर किंग की विरासत का दुरूपयोग कर रहे थे।
      ओबामा को मार्टिन लूथर किंग पसंद हैं,उनके आदर्श पसंद हैं, किंतु उनके त्याग का मार्ग पसंद नहीं है। जमीनी सरोकार पसंद नहीं हैं। ओबामा की कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर है। ओबामा के पास कारपोरेट घरानों के हितसाधकों की परंपरा है, मार्टिन लूथर किंग के पास वंचितों और शोषितों की परंपरा थी। ओबामा ने अमरीका के इतिहास में किसी जनान्दोलन में तो हिस्सा लिया और नही किसी आन्दोलन का नेतृत्व किया। इसके विपरीत मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) ने वंचितों के लिए व्यापक आन्दोलन किए। किंग ने विश्यतनाम युध्द का विरोध किया। सैन्यमद में अनाप-शनाप खर्च का विरोध किया। सैन्यमद में होने वाले खर्च को सामाजिक विकास पर खर्च करने की हिमायत की। इसके विपरीत ओबामा ने अमरीका के युध्दपंथी राजनेताओं की परंपरा का अनुसरण करते हुए इराक,अफगानिस्तान पर युध्द थोपने में मदद की और अमरीका की युध्दपंथी उन्मादी नीति का खुलकर समर्थन किया।
    मार्टिन लूथर किंग के वाक्य महज वाक्य नहीं हैं। किंग के भाषणों को आज भी विश्व समाज आदर्श प्रेरक भाषण के रूप में इसलिए आज करता है क्योंकि उन भाषणों के साथ करोड़ों वंचितों की आत्मा अभिव्यक्त होती है। ओबामा के भाषण वंचितों की आत्मा को अभिव्यंजित नहीं करते बल्कि जनसंपर्क की प्रचार सामग्री हैं। भाषण में व्यक्त विचारों का वक्ता के कर्म और मर्म के साथ गहरा रिश्ता होता है। ओबामा के भाषण वंचितों के कर्म और मर्म की अभिव्यक्ति नहीं है।

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