शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

कम्प्यूटर भाषा या हाइपर टेस्क्ट की समस्याएं-2-

   सारी दुनिया एकमत है कि टेड नेल्सन ने हाइपर टेक्स्ट बनाया। किंतु मजेदार बात यह है कि इसे लेकर अनेक किस्म की आलोचनाएं दिखाई देती हैं। एक्सनाडु प्रकल्प की अकाल मौत पर काफी कुछ लिखा गया है किंतु अभी तक किसी ने भी सेक्स,नशीले पदार्थों के उद्योग,और रॉक एंड रोल के साथ इसके रिश्ते के बारे में गंभीरता से विचार नहीं किया है। 'वायर' पत्रिका ने इस प्रकल्प पर जो हमला किया उसमें अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी हुई है। कई महत्वपूर्ण लोगों का जिक्र तक नहीं किया गया है।
   मसलन् एक्सनाडु प्रकल्प का समर्थक जॉन मोछले ,जिसने जे.प्रेस्पर के साथ मिलकर डिजिटल कम्प्यूटर का स्टार कार्यक्रम बनाया था,उसका जिक्र तक नहीं है।कालविन मूर्स कहां गया इसने 'इनफार्मेशन रिट्राइवल सिस्टम' बनाया था,उसने टीआरएसी यानी ट्रेक की चमत्कारी भाषा रची थी। वह एक्सनाडु का आरंभिक समर्थक था।असल में एक्सनाडु की त्रासदी ट्रेक के कोड लाइसेंस,कापीराइट आदि को लेकर शुरू हुई।यह प्रकल्प बंद हो गया।
      हाइपर टेक्स्ट का जो सपना देखा गया वह बिखर गया।आज वह खण्ड-खण्ड रूप में चारों ओर फैला है। हाइपर टेक्स्ट सिस्ठम चारों ओर उपलब्ध है।इसके बावजूद टेड नेल्सन अविवादित तौर पर हाइपर टेक्स्ट का निर्माता महान् वैज्ञानिक है।
    'वायर' ने एक्सनाडु प्रकल्प की जो कहानी छापी है उसमें 'ऑन लाइन सिस्टम' के रचयिता डॉग इगिलबर्ट का उल्लेख तक नहीं है।जबकि उसने ही हाइपर टेक्स्ट और उससे जुड़ी अनेक अवधारणाओं को निर्मित किया।उसी के प्रयासों से 'अरपनेट' प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक लागू हो पाया। यह पहला सूचना केन्द्र नेटवर्क था।
      इगिलबर्ट ने ही 'माउस' को जन्म दिया। ब्लैक एंड ह्वाइट पर्दे का निर्माण किया। उसी की डिजायन ने टेड नेल्सन के एक्सनाडु प्रकल्प के बारे में सोचने के लिए सारी दुनिया को मजबूर किया। कायदे से हमें इगिलबर्ट के अवदान को नहीं भूलना चाहिए क्योंकि उसी ने हाइपर टेक्स्ट से जुड़ी तमाम व्यवहारिक चीजों का निर्माण किया। किंतु इस व्यक्ति के बारे में 'वायर' पत्रिका भूल गई।उसने एक्सनाडु प्रकल्प पर जो आरोप लगाए थे वे सब गलत हैं। 'वायर' का लेख बहुत ही घटिया है। घटिया इस अर्थ में कि इसमें प्रत्येक चीज को अस्वीकार किया गया है।इस लेख के प्रत्येक शब्द,वाक्य आदि का चयन झूठ बोलने के लिहाज से किया गया है।
      अभी दो तरह के हाइपर टेक्स्ट उपलब्ध हैं-पहला,स्थिर है।दूसरा-गतिशील है।स्थिर हाइपर टेक्स्ट डाटावेस में परिवर्तन की अनुमति नहीं देता।किंतु गतिशील हाइपर टेक्स्ट में बदलाव ला सकते हैं।एक दस्तावेज के अनेक रूप तैयार कर सकते हैं।हन्हें समय-समय पर बदल सकते हैं।
    सन् 1960 से ब्राउन यूनीवसिटी में अनुसंधान कार्य चल रहा है जिसके कारण अनेक किस्म के हाइपर टेक्स्ट का जन्म हुआ है।सन् 1985 से इन्स्टीट्यूट फोर रिसर्च इन इनफॉर्मेशन एण्ड स्कालरशिप इण्टरमीडिया पर अनुसंधान कार्य चल रहा है।इसके कारण ही आज हमारे पास व्यापक पैमाने पर मल्टीमीडिया नेटवर्क उपलब्ध है।
      इसी तरह हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पिरसिअस प्रोजेक्ट में हाइपर कार्ड पर काम चल रहा है। ग्रीक सभ्यता, संस्कृति से जुड़े समस्त आयामों को इसमें शामिल किया गया है। दक्षिणी कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में प्रोजेक्ट जेफरसन पर सन् 1987 से काम चल रहा है।यह संवैधानिक नोटबुक है।
      संक्षेप में हाइपर टेक्स्ट के इतिहास पर गौर करें तो पाएंगे कि सन् 1945 में वन्नेबर बुश ने 'मिमिक्स' का प्रस्ताव पेश किया। सन्1965 में टेड नेल्सन ने हाइपर टेक्स्ट पदबंध को जन्म दिया। 1967 में ब्राउन यूनीवर्सिर्टी के एंडीवेन डेम ने हाइपरटेक्स्ट एडीटिंग सिस्टम एंड फ्रीसस  को बनाया।सन् 1968 में डॉग इगेलबर्ट ने एफजेसीसी के एनएलएस सिस्टम का कच्चा प्रारूप तैयार किया।सन् 1975    (जीओजी इन दिनों इसे केएमएस कहते हैं) सीएमयू आया। सन् 1978 में एमआईटी आर्किटेक्चर मशीन ग्रुप  (इन  दिनों मीडियालेव नाम ) का पहला हाइपर वीडियो डिस्क आया। सन् 1984 में फिलिविजन का हाइपरमीडिया डाटावेस आया। जेनेट वाकर ने 1985 में सिम्बालिक्स डाकूमेण्टस एग्जामिनर तैयार करके पेश किया।सन् 1985 में ब्राउन यूनीवर्सिटी के नार्मन मेयरोविट्ज ने इण्टरमीडिया का निर्माण किया। ओडब्ल्यूएल ने सन् 1986 में पहला हाइपर टेक्स्ट गाइड उपलब्ध कराया। सन् 1987 में बिल अलकिंसन ने हाइपर कार्ड पेश किया। सन् 1987 में पहलीबार हाइपर टेक्स्ट पर सबसे बड़ी कॉँफ्रेंस हुई।
    सन्1991 में वर्ल्ड वाइड वेब ने ग्लोबल हाइपर टेक्स्ट को जन्म दिया।इसे टिम बर्नर्स ली ने बनाया था। सन् 1993 में 'हार्ड डे नाइट' नामक पहली हाइपर मीडिया फिल्म बनी। इसी साल हाइपरमीडिया इनसाइक्लोपीडिया की मुद्रित प्रतियां मुद्रित इनसाइक्लोपीडिया से ज्यादा संख्या में बिकीं।
    वन्नेबर बुश की 'मिमिक्स' जटिल मशीन थी।आज हम खुश हैं कि हमने उससे ज्यादा सरल मशीन पैदा कर ली है।आज हमारे पास लिंक है।हम जानते हैं कि हमें क्या करना है।यह रचनात्मकता का महान् क्षण है।आज हमारी अंगुलियों के नीचे दुनिया के महान् दस्तावेज हैं। हम इस मानवीय उपलब्धि पर गर्व कर सकते हैं।वेब की विशेषता है स्थानीय फैसले और भूमंडलीय प्रभाव।इसी से जुड़ा है हाइपर डाकूमेंटस यह हाइपर टेक्स्ट में संकलित दस्तावेजों का संकलन है। हाइपर मीडिया में गतिशील दस्तावेजों के विभिन्न रूप ध्वनि, ग्राफिक्स, वीडियो टेक्स्ट शामिल है। ग्लोबल मेप्स में हाइपर टेक्स्ट में संकलित दस्तावेजों के दृश्य संकेत हैं। जबकि हिस्ट्री ऑफ पाथ में हाइपर डाकूमेंटस में व्यक्तिगत चयन का क्रमबध्द रूप मिलेगा।हाइपर टेक्स्ट रिलेटेड डेफीनेशन ,हाइपर टेक्स्ट की गैर-क्रमिक कम्प्यूटराइज्ड पाठ खोजने की व्यवस्था है जो यूजर को व्यक्तिगत पाथ के रास्ते से सूचना संपर्कों और दस्तावेज तक ले जाती है। इसे हाइपर डेक्स कहते हैं। डिजिटरेट यानी डिजिटल साक्षर वह है जो कम्प्यूटर से परिचित है। कम्प्यूटर ,नेटवर्क,हाइपर टेक्स्ट आदि की जितनी भी सैध्दान्तिकी हैं ये उनके लिए हैं डिजिटल साक्षर हैं।डिजिटल जगत से वाकिफ हैं।डिजिटल जगत में भ्रमण करते रहते हैं।इसके निशाने पर घूमन्तु युवा हैं।
हाइपर टेक्स्ट के विकास के साथ-साथ इसकी अनेक नई समस्याएं भी सामने आई हैं। इसमें जो डवलपर समस्याएं झेल रहे हैं वह है डाटा के स्वरूप,ज्ञान के बढ़ते हुए अतिरिक्त बोझ और सामंजस्य की हैं। जो पाठक अपनी पुस्तक के लिए अंतर्वस्तु की खोज करते हैं वह आसानी से मिल जाती है।किंतु जिन लोगों को यह अंतर्वस्तु प्रदान करनी होती है वे हमेशा एक नया दृश्य संकेत बना देते हैं। फलत: खोजने के उपकरण जैसे लिंक आदि जटिल होते जाते हैं।
    हाइपर टेक्स्ट का एक मानक है जिसके कारण यूजर उसे तुरंत पहचान लेता है। ज्यादा समय तक उपयोग में आने के कारण हाइपर टेक्स्ट हमारी सोचने की पद्धति बदल देता है। हम पाठ में गैर-क्रमिक ढ़ंग से आगे कैसे जाएं यह ज्यादा सीखते हैं।यह भी खतरा है कि आपके पुस्तक खत्म करने के पहले ही वह गायब हो जाए। हाइपर टेक्स्ट की एक आलोचना यह भी आई है कि उसमें इतनी ज्यादा सूचनाएं होती हैं कि उसका मानवीय स्रोत ज्ञान के बोझ से फट सकता है। 
     हाइपर टेक्स्ट पढ़ते समय चयन का विवेक होना बेहद जरूरी है। कौन सा दस्तावेज पढ़ना है कौन सा छोड़ देना है यह विवेक होना जरूरी है। कम्प्यूटर में भरे हुए हाइपर टेक्स्ट में यूजर के सामने अनेक 'पथ' होते हैं।ज्यों ही खोजने निकलते हैं तो यहां ज्ञान का बोझ दिखाई देता है। कम्प्यूटराइज्ड सामग्री को आप चुन सकते हैं। बाद में इस्तेमाल कर सकते हैं। किंतु यह सामग्री जिस रूप में है उसमें वहां पर कुछ भी जोड़ नहीं सकते।मजेदार बात यह है कि हाइपर टेक्स्ट का अभी तक मानक रूप तय नहीं हो पाया है।मानकीकरण से मुश्किलें सकती हैं।खासकर तब जब कि अभी हाइपर टेक्स्ट प्रायोगिक अवस्था में है।मानकीकरण से इसकी रचनात्मकता प्रभावित हो सकती है। सच यह है कि हम 'दस्तावेजों के समुद्र' में रहते हैं। हम ज्योंही हाइपर टेक्स्ट में घुसते हैं हमारा संपर्क इस समुद्र से होता है।यह सीमाहीन है।

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