शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

26/11 के सबकः आतंकवादी खबरों के उत्पादक थिंक टैंक

मुम्बई की 26/11 की घटना के बाद से आतंकवाद पर मीडिया में काफी चर्चा हुई है। इस चर्चा के केन्द्र में आमतौर आतंकी कसाब पर चल रहा मुकदमा सुर्खियों में रहा है। यह कवरेज कैसे आया और अतिरंजित ढ़ंग  से क्यों आया ? इस पर कभी मीडिया के लोगों का ध्यान नहीं गया। इस प्रक्रिया में आतंकियों के प्रति सतर्कता और सावधानी के सवालों पर कम ध्यान दिया गया ।

     पिछले दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के आने के साथ यह अनुभूति पैदा करने की कोशिश की गई थी कि मुंबई में आतंकी हमला हो सकता है। लेकिन सामान्यतौर पर मुम्बई में आतंकी हमला कोई समस्या नहीं रहा है। इसी तरह अन्य महानगरों में भी आतंकवाद समस्या नहीं है।
      केन्द्र सरकार बड़े उत्सवधर्मी ढ़ंग से सतर्कता वार्ता जारी करती रहती है ,आज भी जारी की गई है। सवाल उठता है भारत के लिए क्या आतंकवाद सचमुच में एक बड़ी समस्या है ? यदि ऐसा है तो विगत एक वर्ष में सारी दुनिया में आतंकी हमले में कितने हिन्दुस्तानी मारे गए ? काश्मीर को छोड़कर देश के अन्य भागों में कितने लोग विगत एक साल में आतंकी हमले में मारे गए ?
    इसी तरह हम अमेरिकी मीडिया में आतंकवाद के खतरे के बारे में खूब हंगामा देखते हैं। लेकिन सच क्या है ? कितने अमेरिकी सारी दुनिया में आतंकी हमलों में मारे गए ? गूगल पर सर्च करने जाओगे तो इसके उत्साहजनक परिणाम नहीं मिलेंगे। अमेरिका के गृहमंत्रालय के अनुसार 2009 में सारी दुनिया में 9 अमेरिकी मारे गए। कोई भारतीय विगत एक साल में आतंकियों के हाथों नहीं मारा गया।
   भारत में आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे का भोंपू की तरह प्रचार करने वाले मीडिया,सरकारी तंत्र और रिसर्च संगठनों के बीच की सांठगांठ को इसी प्रसंग में समझना बेहतर होगा। अमेरिका स्थित पेनसिलवेनिया विश्वविद्यालय के थिंक टैंक एण्ड सिविल सोसायटी प्रोग्राम के तहत आंकड़े एकत्र किए हैं। मसलन अमेरिका में2000 थिंक टैंक संगठन हैं। भारत में 422 थिंक टैंक संगठन हैं। यानी सारी दुनिया में अमेरिका के बाद दूसरा नम्बर हमारे देश के थिंक टैंक संगठनों का है। 422 संगठनों में से 63 सुरक्षा संबंधी रिसर्च और विदेशनीति पर काम कर रहे हैं। इन्हें विश्व के बड़े शस्त्र निर्माताओं से सालाना मोटा फंड सप्लाई किया जाता है। इन संगठनों में सैन्य-पुलिस के बड़े अफसरों के साथ भू.पू.राजनयिक भी काम कर रहे हैं। ये संगठन मूलतः शस्त्र उद्योग के जनसंपर्क फोरम की तरह काम करते हैं। ये लोग फेक आतंकी खबरें बनाते हैं और फिर उन्हें मीडिया और गुप्तचर एजेंसियों के जरिए प्रचारित करते हैं। वे आदिवासी ,दलितों और अल्पसंख्यकों में विस्फोटक सामग्री का प्रचार और इस्तेमाल करते हैं, फेक धमाके कराते है,या नियोजित धमाके कराते हैं जिससे अत्याधुनिक शस्त्रों की खरीद को वैधता प्रदान की जा सके।
    हाल के दिनों में हिन्दू आतंक की अधिकांश खबरें इसी लॉबी के द्वारा तैयार करके प्रसारित करायी गयी हैं। इस समूची प्रक्रिया में पहला लाभ यह हुआ है कि आरएसएस को बदनाम करने का मौका मिला है। दूसरा लाभ यह मिला है कि इन थिंक टैंक के थिंकरों को अपने निजी हितों का विस्तार करने का अवसर मिला है। इसके बदले में  बड़े अफसरों को समृद्ध देशों में नागरिकता,मकान,बैंक में धन,उनके बच्चों को विदेशों में पढ़ाई की शानदार व्यवस्था करा दी जाती है।
      उल्लेखनीय है भारत को दुनिया का सबसे बड़ा शस्त्र खरीददार माना जाता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत ने 2000-07 के बीच में सारी दुनिया में हथियार खरीददारों में दूसरा स्थान पाया है। सारी दुनिया के सकल शस्त्रों का 7.5 फीसदी हथियार भारत ने खरीदे हैं। चीन,रूस और अमेरिका के बाद हथियारों पर खर्च करने वाला चौथे नम्बर का देश है।
    सारी दुनिया में 1,130 कंपनियां हथियार बनाने का काम करती हैं। इनमें से 90 फीसदी  अमेरिका, ब्रिटेन,रूस, चीन और फ्रांस की हैं। ये परंपरागत हथियार बनाती हैं। जबकि अफ्रीका,एशिया,लैटिन अमेरिका,मध्यपूर्व में सारी दुनिया के 51 फीसदी भारी हथियार लगे हुए हैं।
      ग्लोबल पीस इंडेक्स के अनुसार भारत का स्थान सबसे नीचे 122 वें नम्बर पर 2.422 स्कोर के साथ है। हिन्दुत्वादी ताकतों का मीडिया,नौकरशाही,शासकों आदि में जिस तरह का व्यापक प्रभाव है उसके चलते यह भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि थिंक टैंकों के एक हिस्से के साथ हिन्दुत्ववादियों की सांठगांठ भी हो सकती है। लेकिन भारत में शस्त्र उद्योग और उसके थिंक टैंक संगठन जिस तरह की आबोहवा बनाने में लगे हैं उससे भारत में लोकतंत्र के लिए सीधे खतरा पैदा हो गया है।




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