मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

त्रिपुरा की सबसे बड़ी कमजोरी है अति दरिद्रता

     त्रिपुरा को समग्रता में देखें तो सभी समुदायों के लोगों के जमीन के स्वामित्व में गिरावट आयी है। इसी तरह आदिवासियों में शिक्षा की दर भी बेहतर नहीं है। इस मामले में वाममोर्चा शासित राज्यों में भी स्थिति काफी असंतोषजनक है। खासतौर पर त्रिपुरा के संदर्भ में आदिवासियों की स्थिति पर गौर करें तो कई नए तथ्य सामने आते हैं। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार त्रिपुरा की कुल जनसंख्या 3,199,203 है। इसमें 993,426 लोग जनजाति के हैं। यानी कुल आबादी का 31.1 प्रतिशत लोग जनजाति से आते हैं ।
     त्रिपुरा का नाम ही आदिवासी जाति पर है। इस जनजाति के आदिवासी जनसंख्या में 54.7 प्रतिशत लोग रहते हैं। रियांग 16.6 प्रतिशत,जमातिया 7.5 प्रतिशत,चकमा 6.5 प्रतिशत,हलम 4.8,माग 3.1,मुंडा 1.2, कुकी 1.2,गारो 1.1 प्रतिशत आदिवासी रहते हैं।
     त्रिपुरा में आदिवासी लिंग अनुपात 970 है। जो राष्ट्रीय अनुपात (978) से कम है।जमातिया में सबसे ज्यादा लिंग अनुपात 996 दर्ज किया गया। जबकि मुंडा (950),चकमा (951) और रियांग (962) में सबसे कम लिंग अनुपात दर्ज किया गया। त्रिपुरा में आदिवासी आबादी में शिक्षा का प्रतिशत अच्छा है। सकल आदिवासी आबादी में साक्षरों की संख्या 56.5 प्रतिशत है। जबकि राष्ट्रीय  स्तर पर आदिवासी साक्षरता दर 47.1 प्रतिशत है।  इसमें पुरूषों की साक्षरता दर 68 प्रतिशत और औरतों में साक्षरता दर 44.6 प्रतिशत है। इससे यह भी पता चलता है कि औरतों में मर्दों की तुलना में साक्षरता का प्रसार कम हुआ है। त्रिपुरा के आदिवासियों में कुकी जनजाति के लोगों में साक्षरता दर सबसे ज्यादा है ,आंकड़े बताते हैं कि उनमें 73.1 प्रतिशत साक्षरता है। जबकि त्रिपुरा जनजाति में 62.1 प्रतिशत साक्षरता है। मर्दों और औरतों में क्रमशः81.9प्रतिशत और 44.6 प्रतिशत साक्षरता दर्ज की गयी है। दूसरी ओर चकमा,मुंडा और रियांग जनजाति में आधी से ज्यादा आबादी अभी भी निरक्षर बनी हुई है।
   त्रिपुरा में 5-14 साल की उम्र के 62.7 प्रतिशत आदिवासी बच्चे स्कूल जाते हैं। इनमें कुकी जनजाति के सबसे ज्यादा 77.6 प्रतिशत बच्चे स्कूल जाते हैं। मुंडा जाति (36.7) के सबसे कम बच्चे स्कूल जाते हैं। आदिवासियों में शिक्षितों में 9.5 प्रतिशत के पास मैट्रिक या सैकेण्डरी स्तर की शिक्षा है।इसमें त्रिपुरा में 10.5 प्रतिशत मैट्रिक या सैकेण्डरी पास हैं। मुंडा में 4 प्रतिशत,माग में 6.5 प्रतिशत मैट्रिक हैं।
   सन् 2001 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि त्रिपुरा की सकल आदिवासी आबादी का मात्र 42.7 प्रतिशत कोई न कोई काम करता है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासियों की काम करने वाली आबादी 49.1 प्रतिशत है। यानी राष्ट्रीय औसत से भी नीचे है का करने वाले आदिवासियों की संख्या। त्रिपुरा की कुल कामकाजी आदिवासी आबादी में 69.6 नियमित मजदूरी करने वाले लोग  हैं। 30.4 प्रतिशत हाशिए के मजदूर हैं। इनमें कामकाजी औरतों का 37.5 प्रतिशत और पुरूषों का 47.6 प्रतिशत है। यहां पर लिंगभेद साफ देखा जा सकता है। यह लिंगभेद नियमित कामकाजी मजदूरों में बहुत ज्यादा है। नियमित मजदूरों में 86.5 प्रतिशत पुरूष हैं जबकि 47.5 प्रतिशत औरतें नियमित मजदूर के रूप में दर्ज की गयी हैं। जमातिया जनजाति में सबसे ज्यादा कामकाजी लोग 48.7 प्रतिशत दर्ज किए गए हैं जबकि सबसे कम रियांग जनजाति में 39.2 प्रतिशत दर्ज किए गए हैं। कामकाजी मजदूरों में बड़ी संख्या खेत मजदूरों की है। इनमें मुख्य कामकाजी लोगों में 45.9 प्रतिशत कृषक हैं और 29.7 प्रतिशत खेत मजदूर हैं। रियांग मुख्यतः खेती करते हैं, इनमें 64.9 प्रतिशत कामकाजी लोग खेती करते हैं। जबकि मुण्डा जनजाति में सबसे कम 2 प्रतिशत खेती  करते हैं।
    वैवाहिक जीवन के आंकड़े बताते हैं कि त्रिपुरा के आदिवासियों में 54.3 प्रतिशत लोग अविवाहित रहते हैं। 41.9 प्रतिशत की शादी हुई है। 3.3 प्रतिशत विधवाएं हैं। 0.6 प्रतिशत तलाकशुदा या अपने पति से अलग रहने वाली औरतें हैं। गारो (4.4 प्रतिशत) और मुंड़ा (4.1 प्रतिशत) जनजाति में विधवा औरतों की संख्या सबसे ज्यादा है।जबकि तलाकशुदा औरतों की संख्या माग जनजाति में  1.1 प्रतिशत सबसे ज्यादा है , और चकमा में सबसे कम 0.3 प्रतिशत है। त्रिपुरा के आदिवासियों में अभी भी एक हिस्सा ऐसा है जिसमें बाल विवाह की प्रथा बरकरार है। त्रिपुरा के आदिवासियों में 80.1 प्रतिशत हिन्दू, 10 प्रतिशत ईसाई, 9.8 प्रतिशत बौद्ध और मात्र 0.2 प्रतिशत मुसलमान हैं।
    त्रिपुरा की सबसे बड़ी कमजोरी है अति दरिद्रता। नेशनल सेंपिल सर्वे के 2001-02 के आंकड़े बताते हैं कि त्रिपुरा में 55 प्रतिशत आबादी गरीबी की रेखा के नीचे निवास करती है। इन आंकड़ों को योजना आयोग के नवीनतम सुझावों के आधार पर सही पाया गया है।


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