शनिवार, 16 अप्रैल 2011

कम्युनिकेशन का बदलता चरित्र

इंटरनेट आने के साथ ही मीडिया और कम्युनिकेशन का समूचा परिवेश बुनियादी रूप से बदल गया है। भारत सरकार तमाम ग्राम पंचायतों, विश्वविद्यालयों,कॉलेजों ,शोध संस्थानों आदि को इंटरनेट से जोड़ने जा रही है। सामान्य तौर पर ई गनर्नेंस की दिशा में हमारा समाज जा रहा है। इससे मानवीय व्यवहार में बुनियादी बदलाव भी आ रहे हैं। पुरानी दूरियां घटी हैं। नई दूरियों ने जन्म लिया है। पुरानी पहचान नष्ट हुई है। नई पहचान सामने आयी है। बातचीत की पुरानी आदतों को नई आदतों ने अपदस्थ करना आरंभ कर दिया है। कहने का अर्थ यह है कि नए संचार माध्यमों ने नए मानवीय व्यवहार,आदतें, संस्कार, एटीट्यूट आदि को जन्म दिया है। इसने संचार के नए असंख्य नए संकेतों को जन्म दिया है। संकेतों के कम्युनिकेशन को नई ऊँचाईयां दी हैं।

कैरोलिन मारविन द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, 'इलेक्ट्रॉनिक संचार का इतिहास संचार में तकनीकी क्षमताओं के विकास के बजाए सामाजिक जीवन के व्यवहार संबंधी प्रश्नों पर विचार अधिक करता है। इन प्रश्नों में शामिल हैं कौन बोल सकते हैं और कौन नहीं, किसके पास अधिकार है और किस पर विश्वास करना चाहिए, इत्यादि जैसी समस्याएं।'
 (मार्विन, कैरोलिन, व्हेन ओल्ड, टेक्नोलॉजीज वेयर न्यू : थिंकिंग अबाउट इलेक्ट्रिक कम्यूनिकेशन इन द लेट नाइंटींथ सेंचुरी ,न्यूयॉर्क :ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस,1988)
      कैरोलिन दर्शाती हैं कि टेलीफोन के प्रयोग से मात्र दूर-स्थित लोगों के बीच बातचीत ही संभव नहीं हुई : इससे परस्पर बातें करने वालों के बीच की सीमाएं समाप्त होने लगीं अर्थात कौन किससे बातें कर सकता है और किससे नहीं,और इस प्रकार वर्तमान वर्ग-संबंधों पर खतरा पैदा हो गया। इसने प्रेम-संबंध स्थापित एवं विकसित करने के तौर-तरीकों में भी परिवर्तन ला दिया। इसी प्रकार बिजली के बल्बों ने जन-पैमाने के मनोरंजन के स्वरूपों एवं संस्कृति में बदलाव ला दिए। उदाहरण के लिए, इन बल्बों के कारण रात में खेलों का आयोजन संभव हुआ जिसका जन-संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा। स्पष्ट है कि इलेक्ट्रॉनिक संचार महत्वपूर्ण सामाजिक प्रश्न खड़े करता है।

मारविन ने लिखा नई इलेक्ट्रॉनिक टेक्नोलॉजियों 'का उद्देश्य हमारी सामान्य सामाजिक गतिविधियां बढाना, उन्हें सरल बनाना और अधिक चुस्त-दुरुस्त करना होता है लेकिन वे उन्हें इस प्रकार पुनर्गठित करते हैं कि वे स्वयं ही नई घटनाएं बन जाते हैं।

मारविन की उपरोक्त धारणाएं महत्वपूर्ण हैं लेकिन संचार माध्यमों के स्वामित्व के सवाल को दरकिनार नहीं किया जा सकता। संकेत,संचार और व्यवहार के अन्तस्संबंध की खोज करते हुए मार्क पोस्टर ने लिखा है '' हर युग में संकेतों के विनिमय के अपने आंतरिक और बाहरी ढांचे होते हैं और संकेतीकरण के माध्यम और संबंध भी। सूचना-पध्दति की निम्नलिखित मंजिलें दरशाई जा सकती हैं आमने-सामने मौखिक विनिमय, छपाई के जरिए लिखित विनिमय और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के जरिए विनिमय। पहले वाले में संकेतों का आदान-प्रदान होता है तो दूसरे में संकेतों के प्रतिनिधि का; तीसरे में सूचना का चित्रण होता है। प्रथम, मौखिक, मंजिल में आत्म का निर्माण आमने-सामने के संबंधों की संपूर्णता में उसके स्थान के निर्णय से होता है। दूसरी अर्थात छपाई की मंजिल में आत्म का निर्माण तार्किक काल्पनिक स्वायत्तता के माध्यम के रूप में होता है। लेकिन तीसरी अर्थात इलेक्ट्रॉनिक मंजिल में व्यक्ति का मनोगत अस्तित्व निरंतर अस्थिरता में विकेंद्रित, छितराया हुआ और संख्या में बढ़ता हुआ होता है ।'' ''प्रत्येक मंजिल में भाषा और समाज, विचार और कार्य, आत्म (अस्तित्व) तथा इतर-अस्तित्व के परस्पर संबंध अलग-अलग होते हैं।"

संचार माध्यमों की खूबी है कि इसमें हमेशा वर्तमानकाल में रखकर विचार कर सकते हैं। मसलन आप कितनी ही पुरानी किताब पढ़ें ,पढ़ते समय बार-बार वर्तमान के नजरिए से पढ़ते हैं। यानी कम्युनिकेशन के रूप एक ही साथ ऐतिहासिक और वर्तमान दोनों ही स्थितियों से बंधे होते हैं। संचार के नए और पुराने रूप एक ही साथ वर्तमान में अवस्थित रहते हैं। संचार रूपों पर विचार करते समय यह भी ध्यान रहे कि नया रूप हमेशा पुराने रूप के पूरक के रूम में जन्म लेता है,वह पुराने को अपदस्थ या नष्ट नहीं कर देता। इस तरह संचार रूपों में निरंतरता बनी रहती है। एक-दूसरे के बीच में अन्तर्क्रिया चलती रहती है।

संचार रूपों के बारे में विचार करते समय वर्तमान अपरिहार्य और निर्णायक संदर्भ है। संचार या मीडिया के समस्त विमर्श इसी अर्थ में वर्तमान से जुड़े होते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो संचार , अंतर्वस्तु और अवधारणाएं वर्तमान में संचार की अवस्था से पुनर्परिभाषित होती हैं। इसी ऐतिहासिक संदर्भ को ध्यान में रखते हुए मार्क्सवादी सूचनाशास्त्री मार्क पोस्टर ने इंटरनेट युग यानी संचार की तीसरी मंजिल के संदर्भ में 'सूचना' की बदली हुई अवधारणा पर विचार करते हुए लिखा ,"तीसरी मंजिल में वह एक विशेष अर्थ (संबंध) धारण करता है। एक अर्थ में अब सारे संकेत सूचना माने जाते हैं, जैसा कि साइबरनेटिक्स में, या आम तौर पर सामान्य अर्थों में भी माना जाता है, जिसमें 'सूचना' को 'शोरगुल' या अर्थहीनता के विपरीत माना जाता है। हमारी संस्कृति में सूचना एक विशेषाधिकार प्राप्त शब्द बन गया है। सूचना सेवाओं संबंधी टी.वी. विज्ञापनों में उपभोक्ताओं और कारपोरेट कर्ता-धर्ताओं को चेतावनी दी जाती है कि यदि वे नवीनतम सूचनाओं से अवगत नहीं होते रहें तो वे और उनके बच्चे सफलता की दौड़ में पिछड़ जाएंगे। सूचना को समकालीन जीवन की सफलता की कुंजी के रूप में पेश किया जाता है। समाज को सूचना में धनी और सूचना में गरीब के बीच विभाजित किया जाता है। अत्याधुनिक सूचनाओं से लैस 'जानकार' व्यक्ति को आज का नया आदर्श बताया जाता है, खासकर मध्यम वर्ग के लिए।"
इसी प्रसंग में सूचना पद्धति के प्रमुख क्षेत्रों के अध्ययन-अध्यापन की ओर भी हमारा समाज मुड़ रहा है।सवाल यह है इस अध्ययन के दायरे में किसे शामिल करें। इस पर मार्क पोस्टर ने लिखा है -सवाल यह है इस अध्ययन के दायरे में किसे शामिल करें। इस पर मार्क पोस्टर ने लिखा है -

"तीसरी मंजिल में वह एक विशेष अर्थ (संबंध) धारण करता है। एक अर्थ में अब सारे संकेत सूचना माने जाते हैं, जैसा कि साइबरनेटिक्स में, या आम तौर पर सामान्य अर्थों में भी माना जाता है, जिसमें 'सूचना' को 'शोरगुल' या अर्थहीनता के विपरीत माना जाता है। हमारी संस्कृति में सूचना एक विशेषाधिकार प्राप्त शब्द बन गया है। सूचना सेवाओं संबंधी टी.वी. विज्ञापनों में उपभोक्ताओं और कारपोरेट कर्ता-धर्ताओं को चेतावनी दी जाती है कि यदि वे नवीनतम सूचनाओं से अवगत नहीं होते रहें तो वे और उनके बच्चे सफलता की दौड़ में पिछड़ जाएंगे। सूचना को समकालीन जीवन की सफलता की कुंजी के रूप में पेश किया जाता है। समाज को सूचना में धनी और सूचना में गरीब के बीच विभाजित किया जाता है। अत्याधुनिक सूचनाओं से लैस 'जानकार' व्यक्ति को आज का नया आदर्श बताया जाता है, खासकर मध्यम वर्ग के लिए।" इसी प्रसंग में सूचना पद्धति के प्रमुख क्षेत्रों के अध्ययन-अध्यापन की ओर भी हमारा समाज मुड़ रहा है।

सवाल यह है इस अध्ययन के दायरे में किसे शामिल करें। इस पर मार्क पोस्टर ने लिखा है ,"इसमें सूचना के भंडारण और उसे हासिल करने के स्वरूपों का अध्ययन किया जाना चाहिए। इनमें गुफाओं की चित्रकारी और मिट्टी के पकाए टुकड़ों पर दर्ज जानकारी से लेकर कंप्यूटर के डाटाबेस तथा उपग्रह संचार शामिल हैं। सूचना एकत्र तथा प्रेषित करने का प्रत्येक तरीका संबंधों के ताने-बाने के रूप में समाज पर गहरा प्रभाव डालता है।"

सच यह है आधुनिक समाज की परिकल्पना मीडिया के बिना नहीं की जा सकती। खासकर छापे की मशीन आने के बाद ही हमारा समाज आधुनिक सामाजिक निर्माण की दिशा में सक्रिय होता है। पोस्टर के अनुसार " समकालीन व्यापक उत्पादक समाज की कल्पना छपाई के प्रेस के बिना नहीं की जा सकती। राजनीतिक घटनाएं, समुदाय का स्वरूप, आर्थिक संरचना, यह सब संचार मीडिया से संबंधित होता है। यदि पवन-चक्की सामंतवाद से संबंधित है और भाप का इंजन पूंजीवाद से, तो मार्क्स की ही तर्ज पर मैं कहना चाहूंगा कि इलेक्ट्रॉनिक संचार-प्रणाली सूचना-पध्दति से जुड़ी हुई है। समाज का स्वरूप इस बात से तय होता है कि स्थान और काल किस हद तक संचार को सीमित करते हैं। इसमें शक नहीं कि सूचना पध्दति में स्थान और काल संबंधी दूरी का अध्ययन महत्वपूर्ण है, लेकिन मुख्य मुद्दा कुछ और ही है। उपर्युक्त चर्चा में संचार क्षमता का सवाल तो उठाया गया लेकिन सूचना विनिमय की संरचना का मूल प्रश्न नहीं है। मैं इसे भाषा का आवरण कहूंगा। जब तक हम समाज के बारे में परंपरागत मान्यताओं और सिध्दांतों पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाएंगे, संचार से संबंधित दूरियों का प्रश्न परंपरागत दृष्टिकोण में ही बंद पड़ा रह जाएगा, भले ही वह कितना ही महत्वपूर्ण क्यों न हो। यदि संचार का काम अन्य गतिविधियों को मात्र बढ़ाना-घटाना ही है तो उसका कोई स्वतंत्र महत्व नहीं है। ऐसी स्थिति में उत्पादन-पध्दति सरीखी नई अवधारणाओं का विशेष औचित्य नहीं रह जाता है। लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि किसी भी समाज में संचार की संरचना एक अलग स्वायत्त विश्लेषणात्मक क्षेत्र है, जिसका अपने-आप में अध्ययन किया जाना चाहिए। इसके अलावा बीसवीं सदी में नई संचार पध्दतियों का द्रुत गति से फैलाव सैध्दांतिक और विस्तृत परीक्षण का महत्वपूर्ण क्षेत्र बनता जा रहा है। हमारे अध्ययन का विषय नई भाषा संरचनाएं हैं जो सामाजिक संबंधों के जाल को काफी बदल देती हैं, संबंध की पुनर्रचना करती है और अपने द्वारा रचित मनोगत अस्तित्वों की पुनर्रचना करती हैं।"

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