शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

नरेन्द्र मोदी,विकास और फेसबुक

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गुजरात विधानसभा चुनाव के बारे में हाल ही में जो परिणाम पूर्व सर्वे आए हैं उनमें भाजपा फिर से सरकार बनाने जा रही है। लोकतंत्र में एकतंत्र का यह परिणाम है। इस तरह के परिणाम एक जमाने में पश्चिम बंगाल से वाम मोर्चे की जीत के छहबार आए हैं। मोदी ने सांगठनिक तौर पर गुजरात में माकपा के मॉडल को लागू किया है और विपक्ष को बेकार करके रख दिया है।

यही स्थिति एक जमाने में पश्चिम बंगाल में 1977से 2009 तक वाममोर्चे की भी रही है।

मोदीतंत्र मूलतःदलतंत्र है इसमें लोकतंत्र नहीं बिकता,दलीय वर्चस्व बिकता है। जो लोग सोच रहे हैं मोदी ठीक कर रहे हैं ,विकास कर रहे हैं वे मुगालते में हैं। यह भ्रम टूटेगा लेकिन कुछ समय लेगा।

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गरीबी में आई कमी के आधार पर गुजरात 20 राज्यों की सूची में 10वें पायदान पर है।

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सेंटर फॉर डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स के निदेशक और अर्थशास्त्र की प्राध्यापक इंदिरा हीरवे कहती हैं, 'गरीबी का स्तर कम हुआ है लेकिन शहरी क्षेत्रों में जहां 43 फीसदी आबादी रहती है, वहां गरीब उन्मूलन की रफ्तार सुस्त हुई है।' उनका कहना है कि गुजरात में गरीबी में आई कमी दूसरे प्रतिस्पर्धी राज्यों की तुलना में काफी कम है।

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मोदी प्रशंसक ध्यान दें- गुजरात मजदूरी और इसमें बढ़ोतरी के मामले में 20 बड़े राज्यों में क्रमश: 14वें और 15वें स्थान पर आता है जो संपन्न और विपन्न लोगों के बीच बढ़ती दूरी को दर्शाता है।

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मोदी के शासन में शिक्षा क्षेत्र में किस तरह की तबाही चल रही है इस पर बिजनेस स्टैंडर्ड ने एक गैर सरकारी संगठन के सर्वे के हवाले से चौंकाने वाली बातें कही हैं।

एक गैर सरकारी संगठन प्रथम के मुताबिक ग्रामीण गुजरात में करीब 95 फीसदी बच्चे विद्यालयों में पंजीकृत हैं लेकिन ज्ञान का स्तर काफी कम है। पांचवीं कक्षा में पढऩे वाले करीब 55 फीसदी बच्चे दूसरी कक्षा के पाठ्यक्रम नहीं पढ़ पाते हैं। लगभग 65 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो गणित के सामान्य जोड़ घटाव भी नहीं कर पाते हैं।

बहुत सारे लोगों का कहना है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक शराब पीकर आते हैं और ताश खेलते हैं। बारिया में बच्चों के लिए साल में 24 दिन का शिविर चलाने वाली हार्डीकर कहती हैं कि पांचवीं कक्षा के बच्चे अक्षर भी नहीं पहचान पाते हैं। उच्च शिक्षा की स्थिति के बारे में अर्थशास्त्री वाई के अलघ कहते हैं कि इसकी हालत भी खस्ता है। अहमदाबाद के समाज विज्ञानियों के मुताबिक ज्यादातर कॉलेज और विश्वविद्यालय ठगों और नाकाम प्रशासकों द्वारा चलाए जा रहे हैं। तकनीकी कॉलेजों में ही थोड़ी बहुत क्षमता है।

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मोदी के विकास के मॉडल की जो लोग प्रशंसा करते हैं वे जरा इस सत्य को भी देखें कि स्वास्थ्यसेवाओं का क्या हाल है। बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार स्वास्थ्य के क्षेत्र में 96 गांवों को सेवाएं देने वाले राज्य द्वारा संचालित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पिछले सात साल से किसी बाल रोग विशेषज्ञ और स्त्री प्रसूति विशेषज्ञ चिकित्सक की तैनाती नहीं हुई है। बारिया स्थित इस प्रसूति गृह में खून चढ़ाने और नवजात शिशुओं की देखभाल की कोई व्यवस्था नहीं है। इस अस्पताल में ऐनेस्थिसिया विशेषज्ञ भी नहीं है। सबसे नजदीकी कस्बा गोधरा है जो 40 किमी दूर है और जरूरत के वक्त लोगों के पास यही विकल्प बचता है। खास बात यह है कि राज्य अस्पताल में भी स्त्री प्रसूति विशेषज्ञ की व्यवस्था नहीं है। शिक्षा क्षेत्र में भी हालत इतनी ही खराब है।

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गुजरात का स्थान मानवविकास के मामले में भी काफी पीछे है। बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार असल में गुजरात की गिनती भी महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे विकसित राज्यों के साथ की जाती है जबकि मानव विकास के मामले में यह राज्य इन राज्यों की तुलना में काफी पीछे है। अभी तक आप गुजरात को उच्च विकास दर वाला राज्य मानते होंगे लेकिन शायद आप इन निराशाजनक आंकड़ों से अनजान होंगे। हमने देवगढ़ बारिया की पहाडिय़ों के बीच बसे खूबसूरत गांवों में नाइकों, भीलों और राठवों के बीच काम करने वाले आनंदी नाम के गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की संस्थापक नीता हार्डीकर से बात की। यकीन मानिए इन जनजातियों के साफ सुथरे घरों और उनकी खूबसूरती को देखकर आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे। लेकिन इस ग्रामीण रमणीय जगह के पीछे भी एक सच्चाई छिपी है। हार्डीकर कहती हैं कि इन गांवों में पिछले दो महीनों के दौरान गर्भावस्था से जुड़ी करीब 10 मौतें हुई हैं। गांव वालों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने की कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है। वह पूछती हैं, 'ऐसा विकास मॉडल किस काम का जो हमें सुविधाएं दे पाने में नाकाम है।'

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भाजपा के अनुसार गुजरात में खूब तरक्की हुई है ,लेकिन बिजनेस स्टैंडर्ट अखबार के अनुसार इस राज्य में 44.6 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। हालांकि शिशु मृत्यु दर में कमी जरूर आई है लेकिन इस दर में गिरावट राष्ट्रीय औसत की तुलना में काफी कम है।

करीब 65 फीसदी ग्रामीण परिवारों और 40 फीसदी शहरी परिवारों के पास शौचालय की व्यवस्था नहीं है और उन्हें मजबूरी में खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। राज्य में पुरुष महिला अनुपात कम है यानी 1000 पुरुषों पर 918 स्त्रियों का औसत है। यह भी राष्ट्रीय औसत से कम है।

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मुसलमानों की वास्तन जिंदगी देखें तो भाजपा-मोदी की पोल खुल जाती है।मसलन् गरीबी की बात करें तो शहरी मुसलमान ऊंची जाति के हिंदुओं की तुलना में करीब 8 गुना ज्यादा गरीब हैं। सच कहा जाए तो इस राज्य को भी बिहार और मध्य प्रदेश जैसे अल्प विकसित राज्यों की कतार में शुमार किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है।

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अमरीश मिश्रा ने टाइम्स ऑफ इण्डिया ब्लॉग में लिखा है- A lot has been made out about the roads of Gujarat, the 24 hour electricity supply, the availability of water and so on and forth. Now basics of the science of economics will tell you that good roads, power and water are essential to build an infrastructure and provide a minimum living standard to a civil society citizen. However, this is not growth. To ensure productivity, three major sectors of economy-manufacturing, services and agriculture-have to grow. What is the use of electricity if the agricultural sector-which provides employment to 60% of Gujarat's population-stagnates at 2%-lower than Bihar- annually; roads are vital to manufacture-but what good will they do if manufacturing is limited to automobiles, Gujarat's once famed cotton textile industry is dying, and new investments-including a measly $ 7 billion FDI-are concentrated in SEZs with no benefits like job creation for locals? The service sector has traditionally been weak in Gujarat. Its marginal growth helped mainly, people in the urban areas. Modi could not generate a co-operative movement in Gujarat-the land of the white revolution-that might have helped the small farmer of the state. His record in introducing welfare and distributive policies for the poor and the Adivasis remains dismal. He failed in raising the minimum price for the farmer or built new irrigation networks. The channelizing of the Narmada affects only 5-10 % of Gujarat's vast rural population.

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