बुधवार, 10 सितंबर 2014

मध्यवर्गीय जंगलीपन के प्रतिवाद में

भारत के मध्यवर्ग में जंगलीपन की आंधी चल रही है। मेरठ,मुजफ्फरनगर,कोलकाता,त्रिवेन्द्रम से लेकर लखनऊ तक इस आँधी के थपेड़े महसूस किए जा सकते हैं। कल कोलकाता के साल्टलेक इलाके में पुलिस अफसरों ने स्त्री विरोधी आदेश नेट पर जारी किया,उसके पहले सांसद तापस पाल ने स्त्री विरोधी बयान दिए,इसके पहले कई 'भद्र'नेता स्त्रीविरोधी बयान दे चुके हैं। इन 'भद्र' नेताओं में सभी रंगत के लोग शामिल हैं। यही हाल मेरठ-मुजफ्फरनगर में सक्रिय संघसेना का है । उनकी समूची मध्यवर्गीय भगवा सेना फेसबुक से लेकर अखबारों तक,यूपी में पंचायतों से लेकर कोर्ट-कचहरी तक सक्रिय है। यही हाल कमोबेश केरल का भी है। 'लव जेहाद' केरल से आया है। फेसबुक से लेकर दैनिक अखबारों तक इस मध्यवर्गीय जंगलीपन को सहज रुप में देखा जा सकता है। यह मध्यवर्गीय जंगली
आंधी है।

मध्यवर्गीय जंगलीपन का नया रुप है 'लव जेहाद' के नाम पर शुरु किया गया राजनीतिक प्रपंच। हमारे समाज में पहले से ही 'प्रेम' को निषिद्ध मानकर बहुत कुछ होता रहा है। मध्यवर्ग ने खाप पंचायतों और सलाशी पंचायतों के जरिए औरतों के ऊपर बेशुमार जुल्म किए हैं। परिवार और पिता की 'इज्जत' के नाम पर लड़कियों को दण्डित किया है, प्यार करने वाले लड़कों की हत्याएं की हैं। हाल ही में बिजनौर में भाजपा सांसद के खिलाफ घटिया किस्म के पोस्टर लगाए गए हैं,जिसमें उसे किसी लड़की के साथ वृन्दावन में घूमते दिखाया गया। संकेत यह है लड़की के साथ घूमना अपराध है!यह उसके अवैध संबंध का प्रतीक है!
चिन्ता की बात है कि 'ऑनरकिलिंग' से लेकर 'लव जेहाद' तक की समूची सांस्कृतिक –आपराधिक कवायद के निशाने पर औरतें और नागरिक स्वाधीनता है। हमारे समाज का मध्यवर्ग इन घटनाओं को मूकदर्शक की तरह देख रहा है या उसमें मजे ले रहा है। स्थिति इतनी भयावह है कि लड़कियों को तरह-तरह के रुपों,बहानों और प्रेरणाओं के नाम पर नए सिरे से बंदी बनाने की कोशिशें तेज हो गयी हैं। अखबारों में इनके पक्ष में लेख प्रकाशित किए जा रहे हैं ,इन आपराधिक कृत्यों को वैध ठहराने का काम मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों का एक तबका खुलेआम कर रहा है। मध्यवर्ग में इस तरह कीड़े-मकोड़े की मानसिकता वाले विचारक अचानक सक्रिय क्यों उठे हैं ? वे कौन से कारक हैं जिनके कारण संघ और उसके संगठन सीधे स्त्री स्वाधीनता पर हमला करने का साहस जुटाने की कोशिश कर रहे हैं ? सबसे शर्मनाक बात यह है कि देश के सम्मानजनक अखबार संतुलन के नाम पर 'लव जेहाद' के पक्ष में लेख तक छाप रहे हैं। यह कौन सा संपादकीय संतुलन है जिसे वे निभा रहे हैं ? 'लव जेहाद' के पक्ष में लेखों को छापना या उसके प्रवक्ताओं को कवरेज में संतुलन के नाम पर टीवी में मंच देना सीधे स्वाधीनता के हमलावरों को स्थान देना है। हम यदि अभी नहीं संभले तो निकट भविष्य में जंगली मध्यवर्गीय संगठन हमारे घरों में घुसकर तय करेंगे कि घर में क्या पकेगा और क्या नहीं पकेगा ? कान पर किया बिकेगा और क्या नहीं बिकेगा ? अभी वे यह कह रहे हैं कि किससे शादी करोगे और किससे शादी नहीं करोगे? अभी वे कह रहे हैं कि किससे प्रेम करोगे ,किससे नहीं करोगे? ये वही लोग हैं जो कल तक खाप पंचायतों के जरिए हिन्दू युवाओं पर हमले कर रहे थे, ये ही वह इलाका है जहां पर 'लव जेहाद' के नाम समूची मशीनरी को फिर से सक्रिय कर दिया गया है। यही वे इलाके,शहर और कस्बे हैं जहां पर कल तक खाप पंचायतों के जरिए हमले किए गए,अब इन हमलों को 'लव जेहाद' के नाम संगठित किया जा रहा है। यह मध्यवर्गीय जंगलीपन है और इसका ग्राम्य बर्बरता से गहरा सम्बन्ध है।

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