शनिवार, 20 सितंबर 2014

इमेजों के विभ्रम में कैद मोदी

       नरेन्द्र मोदी के लिए चीन के राष्ट्रपति की यात्रा काफी असुविधाजनक रही है। इस यात्रा के दौरान मोदी इमेज युद्ध में ढ़ीले पड़ गए। पराजित भी हुए। मोदी फोटो सचेत रहे जबकि चीन के राष्ट्रपति ने अपने को स्वाभाविक रखा।मोदी की नजर कैमरे पर थी लेकिन चीन के राष्ट्रपति की नजर मोदी पर थीं।लगता है मोदी के सलाहकारों ने ठीक से कैमरा अभ्यास नहीं कराया या फिर मोदी सही ढ़ंग से सीख नहीं पाए।
फोटोसचेत नेता निष्प्रभावी होता है। इमेज युद्ध में जीनेवाले की इमेजों में ही विदाई होती है। वह आनंदमय क्षण था कि मोदी जब चीन के राष्ट्रपति से मिल रहे थे! साथ ही वे अपना विलोम भी रच रहे थे! लोकसभा चुनाव के समय उन्होंने इमेजों के जरिए "नायक" को रचा था!लेकिन चीन के राष्ट्रपति से मिलते हुए वे नायक कम फोटो सचेतक ज्यादा नजर आए। उनके कायिक इमेज संसार में सहजता-सरलता और स्वाभाविकता एकसिरे से नदारत थी और इसने मोदी की इमेज को नुकसान पहुँचाया है।इससे भारत की इमेज पर भी बुरा असर पड़ा है। हमें संदेह है कि मोदी के व्यक्तित्व से चीन के राष्ट्रपति प्रभावित हुए होंगे!
नेता कूटनीतिक क्षणों में मुसकराते हैं ,दांत नहीं दिखाते! मोदी भूल ही गए कि दाँत दिखाते हुए हँसना राजनयिक सभ्यता का उल्लंघन है।दूसरी भूल यह हुई कि वे बे-मौसम हँस रहे थे, कूटनीति गंभीर कार्यव्यापार है,यह बच्चों की हँसी -ठिटोली नहीं है!
मोदी को अपनी कायिक भाषा को रुपान्तरित करना होगा। उनका अनौपचारिक भाव इमेजों के जरिए विलोम रच रहा है। राजनयिक भावबोध के समय परंपरा ,सहजता ,नियम और सभ्यता का ख्याल रखा जाना चाहिए। भारत में इमेजों को लोग नहीं पढ़ते लेकिन चीन में पढ़ते हैं, चीन में मोदी का इमेज संदेश अच्छा नहीं गया है।मोदीजी आगे अमेरिका जाने वाले उनको कूटनीति के अनुरुप इमेज बनाने पर ध्यान देना होगा,वरना कैमरा उनको कहीं का नहीं छोड़ेगा।

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