शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

संघ प्रमुख के डीडी प्रसारण और मोदी के ट्वीट से उठे सवाल

         आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के विजयादशमी सम्बोधन के दूरदर्शन से प्रसारण को लेकर काफी आलोचनाएं सामने आई हैं ,आलोचकों ने जो सवाल उठाए हैं वे सही हैं।लेकिन वे सभी प्रसारण को राजनीतिक पहलू से देख रहे हैं। समस्या प्रसारण की नहीं है समस्या दूरदर्शन की समाचार नीति या संहिता के उल्लंघन की है। समाचार संपादक ने समाचार संहिता का उल्लंघन करके अपराध किया है और उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।सवाल उठता है दूरदर्शन अब तक जो समाचार नीति अमल में लाता रहा है क्या वह बदल गयी ?यदि बदली है तो कब और उसमें क्या संशोधन लाए गए हैं ? दूरदर्शन के द्वारा जो समाचार नीति अमल में लायी जाती है उसमें साम्प्रदायिक-पृथकतावादी-धार्मिक संगठनों के लाइव प्रसारण के लिए कोई स्थान नहीं है। यह निर्विवाद तथ्य है कि संघ का चरित्र साम्प्रदायिक है और इस पर संसद से लेकर सड़कों तक अधिकांश राजनीतिकदल एकमत हैं। संघ के विजयादशमी जलसे का इससेपहले मेरी जानकारी में दूरदर्शन से लाइव प्रसारण कभी नहीं हुआ है। जबकि यह संगठन 90 साल पुराना है। यदि दूरदर्शन ने साम्प्रदायिक-आतंकी-पृथकतावादी-धार्मिक संगठनों के नेताओं के भाषणों के लाइव प्रसारण का फैसला ले ही लिया है तो इसके स्वाभाविक दुष्परिणामों के लिए देश को तैयार रहना होगा। संचार माध्यमो से इस तरह के प्रसारण सद्भाव और लोकतांत्रिक राजनीति का प्रसार नहीं करते अपितु समाजतोड़क संगठनों को वैधता प्रदान करते हैं।

टीवी चैनलों की खुली प्रतिस्पर्धा में इस तरह के नेताओं के प्रसारणों को रोकना संभव नहीं है। लेकिन सार्वजनिक प्रसारण सेवा होने के कारण दूरदर्शन की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह साम्प्रदायिक-आतंकी-पृथकतावादी-धार्मिकनेताओं के लाइव प्रसारण से बचे। ये संगठन चाहे कितना ही देशभक्ति का दावा करें या इनके नेता अच्छी बातें कहें,इनके प्रसारण से विभाजक मानसिकता को वैधता मिलती है और इस काम में दूरदर्शन ने शिरकत करके अपनी ही बनायी समाचार नीति का उल्लंघन किया है। इस मामले में सभी दलों के सांसदों को दूरदर्शन के महानिदेशक को सीधे आपत्ति पत्र भेजना चाहिए।
    दूरदर्शन कोई निजी उपक्रम नहीं है जिसका मनमाने ढ़ंग से इस्तेमाल किया जाय। दूरदर्शन की देश की जनता ,संसद और संविधान के प्रति जबावदेही है। दूसरी बात यह कि दूरदर्शन के प्रसारण को सत्ता बदल के साथ देखना सही नहीं है। महानिदेशक और समाचार संपादक की यह जिम्मेदारी है कि वे सुनिश्चित करें कि समाचार नीति का वस्तुगत ढ़ंग से पालन हो। जो लोग सोनिया-राहुल आदि के प्रसारण के बारे में सवाल कर रहे हैं,वह एकदम गलत है। लोकतांत्रिक नेता के प्रसारण(चाहे वह किसी भी दल का हो) को दिखाने या न दिखाने का फैसला समाचार संपादक अपने विवेक से कर ही सकता है। लेकिन साम्प्रदायिक-आतंकी-पृथकतावादी-धार्मिक नेता के लाइव प्रसारण की उसे पेशेवर आजादी न तो नीति देती है और न परंपरा ही देती है। दूरदर्शन के समाचार संपादक ने सीधे समाचार नीति का उल्लंघन किया है और इसके लिए उसके फैसले की पहले जांच की जाय और तय किया जाय कि संघ प्रमुख के लाइव प्रसारण का फैसला किसने और क्यों लिया ? संघ को यदि सामाजिक संगठन मानकर फैसला लिया गया है तो अभी तक किसी सामाजिक संगठन के प्रसारण के बारे में पहल क्यों नहीं की गयी ? संघ को अदालतों से लेकर दर्जनों कमीशनों ने साम्प्रदायिक संगठन के रुप में चिह्नित किया है।यह भी खुलासा होना चाहिए कि क्या समाचार संपादक पर प्रधानमंत्री कार्यालय से कोई दबाव रहा है ?प्रधानमंत्री मोदी ने समस्त परंपराएं तोड़कर संघ के इस कार्यक्रम के मौके पर अपना ट्वीट करके साफ कर दिया है कि वे भारत सरकार की संचारनीति को नहीं मानते और यह संविधान का अपमान भी है। मोदी को यह याद रखना होगा कि वे भारत के प्रधानमंत्री हैं और भारत संचारनीति के अनुपालन की जिम्मेदारी उनके कंधों पर है यदि वे ही संचारनीति का उल्लंघन करेंगे तो फिर किसी अफसर या नागरिक से संचारनीति के उल्लंघन करने पर वे और उनके लगुए-भगुए आपत्ति नहीं कर सकते।मोदी ने ट्वीट करके साफ संदेश दिया है कि वे साम्प्रदायिक संगठनों के प्रति नरम रुख रखते हैं और इस तरह के संगठन अपनी मनमानी करने के लिए स्वतंत्र हैं।मजेदार बात है कि टीवी चैनलों पर मोहन भागवत के प्रसारण की आलोचना हो रही है लेकिन मोदी के अलोकतांत्रिक ट्वीट पर बातें बंद हैं।यानी पीएम सही और दूरदर्शन गलत के फार्मूले के तहत प्रसारण जारी है ,जो कि गलत है।असल में मोदी और समाचार संपादक दोनों ही समाचार नीति के उल्लंघन के लिए सीधे जिम्मेदार हैं।

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