शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

कन्हैया कुमारः विभ्रम और यथार्थ

       कन्हैया कुमार,जेएनयूएसयू अध्यक्ष, काफी लंबे समय से छात्र राजनीति कर रहे हैं,लेकिन 9फरवरी 2016 की घटना ने उनको रातों-रात जेएनयू कैंपस के बाहर बेहद जनप्रिय बना दिया।इस घटना के पहले वह जेएनयू में जनप्रिय थे,लेकिन 9फरवरी की घटना के मीडिया कवरेज ने उनको राष्ट्रीय स्तर पर जनप्रिय बना दिया।इस जनप्रियता का श्रेय मीडिया,साइबर मीडिया और कन्हैया के वाम नजरिए को जाता है।कन्हैया कुमार ने ऐसा कुछ नहीं कहा जो वह पहले किसी वाम नेता ने नहीं बोला हो।इसके बावजूद किसी युवा वाम छात्रनेता को उतनी जनप्रियता नहीं मिली,जितनी कन्हैया कुमार को मिली।इस जनप्रियता के कारणों और प्रक्रिया की खोज की जानी चाहिए।

कन्हैया कुमार जो कुछ बोलता है, जिस मुहावरे में बोलता है वह वाम छात्र राजनीति की चिर-परिचित शैली है।इसे जेएनयूएसयू के किसी भी वाम छात्रनेता में सामान्यतौर पर देख सकते हैं।इसमें विलक्षण जैसी कोई चीज नहीं है।कन्हैया कुमार जब बोलता है तो सामान्य,सहज और जोशीली भाषा में बोलता है।यह खूबी वाम छात्रनेताओं की है।

उल्लेखनीय है युवा पीढ़ी नरेन्द्र मोदी और दूसरे नेताओं के भाषणों से विगत दो सालों से घिरी रही है,इस पीढ़ी ने कन्हैया कुमार में नएपन का अनुभव किया है।मोदी के केन्द्रीय राजनीति में आने के बाद उसके भाषणों का अहर्निश´फ्लो´ मीडिया और साइबर मीडिया के जरिए प्रवाहित हुआ है।यह सुनिश्चित, अनिवार्य और अपरिहार्य ´फ्लो´है जिससे सभी बोर हो चुके हैं,यह ´भाषण फ्लो´थमने का नाम नहीं ले रहा।जेएनयू और 9फरवरी की घटना को लेकर केन्द्रीय मंत्रियों से लेकर भाजपा के नेताओं, आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत आदि के अविवेकपूर्ण बयानों, आरएसएस और उसके प्रवक्ताओं की मीडिया मूर्खताओं ,कुतर्कों, ताबड़तोड़ हमला करके परास्त करने की शैली, कन्हैया कुमार आदि छात्रों को देशद्रोह के झूठे मुकदमे में पकड़वाने के षडयंत्र, और जेएनयू के बारे में जहरीले प्रचार अभियान ने हठात् कन्हैया कुमार की ओर सबका ध्यान खींचा है ।

मीडिया से लेकर साइबरमीडिया तक कन्हैया कुमार के भाषणों को बेहद सराहा गया,बहुत बड़ी संख्या में सुना गया।असल में,कन्हैया कुमार की लोकप्रियता की आग में घी का काम किया पीएम नरेन्द्र मोदी और संघ परिवार की विगत दो सालों की असफलताओं ने।यही वजह है कि कन्हैया कुमार के निशाने पर केन्द्र सरकार और उसकी जनविरोधी नीतियां हैं।इसके अलावा आरएसएस ने हिन्दू राष्ट्रवाद के नाम पर इसी दौरान जो आंदोलन शुरू किया उसने भी कन्हैया कुमार के लिए पर्याप्त ईंधन जुगाड़ करके दे दिया। आरएसएस और मोदी सरकार ने 9फरवरी की कैंपस स्तर की घटना को स्थानीय घटना की बजाय राष्ट्रीय घटना बना दिया और सारे मामले को जेएनयू कैंपस के बाहर संघ के हिन्दू राष्ट्रवाद की मुहिम का प्रमुख अंग बनाकर पेश किया और यह उनकी सबसे बड़ी भूल थी।यही वह मुख्य बिंदु है जहां से कन्हैया कुमार कैंपस के बाहर निकलता है और मीडिया से लेकर साइबर मीडिया तक नए संघ विरोधी-मोदी विरोधी आख्यान का नया नरेटिव बनाता है।

जबकि सच्चाई यह है जेएनयू छात्रसंघ और कन्हैया कुमार 9फरवरी की घटना के पहले लगातार अनेक मसलों को लेकर आंदोलन करते रहे हैं।इनमें प्रमुख हैं-पूना के फिल्म एवं टेलीविजन इंस्टीट्यूट के छात्रों के समर्थन में किया गया आंदोलन,यूजीसी के खिलाफ चलाया गया आंदोलन,हैदराबाद वि वि के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के खिलाफ चलाया गया आंदोलन।इन सभी आंदोलनों में जेएनयू के छात्रसंघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।इन सबमें कन्हैया कुमार की भी सक्रिय भूमिका रही है। लेकिन उसे राष्ट्रीय स्तर पर कोई नहीं जानता था।लेकिन 9फरवरी की घटना और उसे लेकर मीडिया-संघ के हमले ने हठात् कन्हैया कुमार को राष्ट्रीय क्षितिज पर लाकर खड़ा कर दिया।इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो कन्हैया कुमार 9फरवरी की घटना के पहले से सक्रिय था,लेकिन कैंपस तक जनप्रिय था। लेकिन 9फरवरी2016 की घटना ने उसे गुणात्मक रूप से भिन्न भूमिका में ले जाकर खड़ा कर दिया।आज कन्हैया कुमार सारे देश के छात्रों में बेहद जनप्रिय है।उसके बारे में आम लोग तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं,उसे राष्ट्रीयनेता बना रहे हैं।लेकिन कन्हैया कुमार राष्ट्रीय नेता नहीं है,वह तो जेएनयूएसयू का अध्यक्ष है,छात्रनेता है,छात्र है।वह छात्र के रूप में ही फिलहाल रहना चाहता है।लेकिन जेएनयू प्रशासन ने संघ के इशारों पर काम करते हुए कन्हैया कुमार सहित 14छात्रों के खिलाफ 9फरवरी की घटना को लेकर दण्डात्मक कार्रवाई करके साफ कर दिया है कि उनका लोकतंत्र,संविधान और न्यायपालिका में कोई विश्वास नहीं है।जेएनयू प्रशासन के इस फैसले का हर स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए।



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