शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

आतंकवाद,साम्प्रदायिकता और मीडिया

        आतंकवाद और साम्प्रदायिकता जुड़वाँ भाई हैं। इसलिए उनको संक्षेप में ´आ –सा´ कहना समीचीन होगा।इन दोनों में साझा तत्व है कि ये दोनों मीडिया कवरेज के बिना जी नहीं सकते।इनके लिए मीडिया कवरेज संजीवनी है।वे गिनती में कम होते हैं लेकिन टीवी और समाचारपत्र में कवरेज को लेकर पगलाए रहते हैं। वे मीडिया कवरेज के सहारे ही अपना विकास करते हैं। मीडिया कवरेज के जरिए ही ये भारतीय मध्यवर्ग तक अपनी पैठ बनाने में सफल हो जाते हैं।इनके मीडिया कवरेज का अल्पकालिक और दीर्घकालिक दो तरह का असर होता है।ये अपने को राष्ट्र-राज्य के संरक्षक के रूप में पेश करते हैं,उनकी यह छवि मध्यवर्ग को अपील करती है।खासकर पश्चिमी जीवनशैली से प्रभावित मध्यवर्ग को अपील करती है,क्योंकि यह वर्ग भारतीय समाज में अपने को राष्ट्र संरक्षक के रूप में पेश करता है। उनके इस नजरिए का पत्रकारों पर गहरा असर होता है और वे भी अपने मीडिया कवरेज के लिए राष्ट्र संरक्षकों को खोजने लगते हैं और यही वह प्रस्थान बिंदु है जहं पर टीवी बहसों से लेकर समाचारपत्रों तक साम्प्रदायिक लेखक,प्रवक्ता ,नेता आदि राष्ट्र संरक्षक के रूप में हमारे सामने पेश किए जाते हैं। ये वे लोग हैं जो राष्ट्र के प्रति अंधभक्ति का प्रचार करते हैं और राष्ट्र के बारे में किसी भी किस्म के विवेकपूर्ण विमर्श,बहस आदि को एकसिरे से खारिज करते हैं।


      ´आ-सा´के प्रवक्ताओं का मीडिया में मुख्य लक्ष्य होता है ´भय´ के फ्रेमवर्क में हर चीज को पेश करना।दूसरा लक्ष्य है विवेकवान और विवेक को निशाना बनाना,मनमाने ढ़ंग से उनकी हत्या करना,उन पर हमले करना,बोलने न देना आदि।वे शुरूआत किसी एक से करते हैं लेकिन उनके निशाने पर असल में पूरा समाज होता है। वे तकनीकी कौशल,परंपरागत नैतिकता,हिंसा और प्रभुत्वशाली भाषा इन चारों का अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए इस्तेमाल करते हैं।

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