गुरुवार, 4 अगस्त 2022

आवारा और क्रिमिनल हिटलर


                      




               हिटलर  ने जवानी में जिस समय कदम तब वह कम्प्लीट आवारा था। यह वाक़या है उस उम्र का जब वह २० से २४ साल का था।विएना का उसका जीवनानुभव एक आवारा युवा का अनुभव है।एक ऐसा युवा जिसके पास कोई काम नहीं,जिसमें श्रम करने की आदत नहीं।

         यही वह दौर है जिसमें उसने युद्ध के महिमामंडन और हमलावर के गुणगान का मंत्र  उसने सीखा।उसका मानना था कि मनुष्य की सबसे अच्छी चीज है युद्ध और हमलावर मनोवृत्ति।विदेशियों पर हमला करने पर वह बहुत खुश होता था।उसका मानना था  शांति सबसे बुरी चीज है।वह मनुष्य को भ्रष्ट और कमजोर बनाती है।हिटलर अपनी आँखों से प्रथम विश्वयुद्ध की विभीषिका देख चुका था।उसमें लाखों लोग मारे गए। लाखों अकल्पनीय कष्टों में जी रहे थे।लेकिन हिटलर के मन में इन लोगों के प्रति कोई दया, ममता,मानवता व्यक्त नहीं हुई।वह उनके दुखों के प्रति एकदम आँखें बंद किए रहा।उसने कभी उनके दुखों को महसूस नहीं किया, उलटे युद्ध की वकालत की।इनमें हज़ारों ऐसे लोग भी थे जो अपंग हो गए थे, अंधे हो गए थे, स्वयं हिटलर की आँखों में गहरी चोट लगी थी।लेकिन हिटलर को इनके बारे में कभी एक वाक्य बोलते नहीं सुना गया।वह क्रूरता के साथ यही कहता था यह तो उनके जीवन का फल है।

          हिटलर कठोर हृदय और क्रूर था।विएना में  आवारा की तरह जीवन व्यतीत करते हुए ही उसने यह जाना कि जर्मन सर्वश्रेष्ठ नस्ल है।वह विश्व के सब लोगों में श्रेष्ठ है।वह अमेरिकन, इटालियन रशियन और ब्रिटिश लोगों से हर स्तर पर श्रेष्ठ हैं।जर्मन उनसे अधिक बुद्धिमान हैं।उसके अनुसार जर्मन सब नस्लों में श्रेष्ठतम नस्ल है।अन्य लोग तो उसके गुलाम बनने के लिए पैदा हुए हैं।

       उन दिनों अधिकांश जर्मन यह मानते थे कि हिटलर तो ऑस्ट्रियन है, अनेक ऑस्ट्रियन यह मानते थे वे तो जर्मन हैं।ख़ासतौर पर जो आस्ट्रियन ,जर्मनी में रहते थे वे यह मानते थे कि वे जर्मन हैं।

     आवारा युवा हिटलर के विएना में रहते हुए अनेक विचारों को सीखा और फिर उसने जर्मनी में अपने राजनीतिक जीवन में लागू किया।उसने यह भी देखा कि राजनीतिक दल बड़े ही सफल हैं वे अपनी ओर हज़ारों लोगों को आकर्षित कर लेते हैं।इसके लिए ज़रूरी है कि प्रचार की कला आए।प्रौपेगैंडा का वह अर्थ जानता था। प्रौपेगैंडा का अर्थ है झूठ।उसका मानना था कि जितना बड़ा झूठ बोलोगे उतना ही बेहतर होगा।क्योंकि बड़े झूठ पर जनता जल्दी विश्वास कर लेती है।छोटे झूठ पर जनता विश्वास नहीं करती।उसका यह भी मानना था कि राजनीतिक दल को आतंक का इस्तेमाल करना आना चाहिए।आतंक का इस्तेमाल किए वगैर विस्तार संभव नहीं है। आतंक माने विपक्ष के सिर पर सीधे हमला किया जाय।कभी कभी उनकी हत्या भी की जाय।

     हिटलर ने राजनीति में भाषणकला के मूल्य को महत्वपूर्ण माना और इसे सिद्ध भी किया।जनता को सम्मोहित वही कर सकता है जो शानदार भाषण दे।भाषण देते समय वह हमेशा धार्मिक-राजनीतिक बातों से आरंभ करता था।बार बार इतिहास को नए सिरे से बताने और लिखने की बातें कहता था, उसका मानना था शब्दों में जादू होता है।

          भाषणकला में वह उस्ताद था और हर बात भाषण के ज़रिए ही कहता था।वह बहुत ही कम समय में पूरे यूरोप में चर्चित भाषणबाज बन गया।उन दिनों यूरोप में कोई ऐसा भाषणबाज नहीं था जो उसका मुक़ाबला कर सके।उसके मुक़ाबले में प्रभीवशाली भाषण एकमात्र विंस्टन चर्चिल ही दे पाते थे।अमेरिका में उसके मुक़ाबले का कोई भाषणबाज नहीं था।

       विएना में अपने आवारगी के दिनों में ही हिटलर ने यहूदियों के प्रति घृणा को विकसित किया।उसने अपनी आत्मकथा मेरा जीवन संघर्ष में लिखा है कि एक बार विएना में रास्ते में चलते हुए एक व्यक्ति ने उसकी ड्रेस की ओर विलक्षण ढंग से देखा।उसने यह आभास दिया कि मैं पागल हूँ।बस उसी क्षण से मेरे मन में यहूदियों के प्रति नफ़रत पैदा हो गई।हिटलर ने लिखा है मैं जहां भी जाता और वहाँ यदि कोई यहूदी नज़र आता तो मेरी आँखें उनको मानवता में अलग से ही पहचान लेतीं।मैं उनको देखकर बीमार हो गया।उसका पेट ख़राब हो गया। उनसे नफ़रत करने लगा। यहूदी विरोधी हो गया। ताजिंदगी उनके प्रति अंधा और उन्मादी बना रहा।यहूदियों के प्रति उसके पूर्वाग्रह बढ़ते गए।इसके कारण उसने लाखों यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया।उसके नरसंहार में कुछ जर्मन भी मारे गए।लेकिन जर्मनी के अधिकांश यहूदी उसने मौत के घाट उतार दिए।समूचे यूरोप में आधी यहूदी आबादी को उसने मौत के घाट उतार दिया।हिटलर ने यहूदी विरोधी होने का जो कारण लिखा है, वह सही नहीं है।असल में उसके विएना निवास के दौरान यहूदी विरोधी विचारों का उसके मन पर व्यापक असर हुआ जिसने उसे घनघोर यहूदी विरोधी बना दिया।

      हिटलर ने १९१३ में आस्ट्रिया को छोड़ा।आस्ट्रिया छोड़ने के उसने जितने भी कारण बताए हैं वे सब सही नहीं हैं।असल में आस्ट्रिया छोड़ने का प्रधान कारण था वहाँ तीन साल के लिए सेना में वह काम करना नहीं चाहता था।उन दिनों प्रत्येक युवा को सेना में तीन साल काम करना अनिवार्य था, हिटलर यह नहीं चाहता था।उसने जिस समय विएना (ऑस्ट्रिया) छोड़ा और जर्मनी आया, उसकी उम्र २४ साल थी।असल में वह कायर था, अपने देश की सेना के लिए काम करना नहीं चाहता था।वहां २१साल की उम्र में ही सेना में जाना होता था।विएना में चारों ओर यहूदी ही यहूदी थे।विएना मिश्रित संस्कृति और मिश्रित जाति का शहर था।उसे मिश्रित समाज अच्छा नहीं लगता था।वह कहता था मेरा हृदय तो जर्मन है।वह जब  जर्मनी आया तो उसके पास एक भी पैसा नहीं था। उसका जर्मनी में कोई मित्र, रिश्तेदार,घर, संभावना आदि कुछ भी नहीं थे।लेकिन उसमें आत्मविश्वास कूट कूटकर भरा हुआ था।वह यही सोचता था कि वह कुछ कर गुजरेगा लेकिन नहीं जानता था कि क्या कर गुजरेगा।

      हिटलर ने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान बावेरिया के डाकिया के रुप में सैन्य मोर्चे पर काम किया था।वह १६वीं बावेरियन बटालियन के साथ जुड़ा था।यह काम उसने १९१४-१८ तक किया।इस दौरान वह घायल हुआ था।



           हिटलर जिस समय जर्मनी की राजनीति में आया उस समय देश में भयानक अशांति थी, मात्र पाँच साल में ही लोकतंत्र का दिवाला निकल गया।सन् १९२३ में ही जर्मनी में भयानक जन अशांति पैदा हो गई।मज़दूरों को ख़ासकर औद्योगिक शहरों में काम करने वाले मज़दूरों को पगार और पहले का बकाया वेतन नहीं मिला।खासकर रूह में स्थापित फ़ैक्ट्री मज़दूरों को उनकी राजवंश के दौर की बकाया मज़दूरी का भुगतान चुनी हुई सरकार नहीं कर पाई।ऊपर से वेतन बंद हो गए।मजदूर अपनी जमा पूँजी को निकालकर खा रहे थे।लाखों मज़दूरों को नौकरियों से निकाल दिया गया।भयानक मंदी गई।व्यापार एकदम ठप्प हो गया।जर्मन मुद्रा का पूरी तरह अवमूल्यन हो गया।

          एक ज़माना एक मार्क का मूल्य था २५ सेंट,लेकिन मात्र पाँच साल में ही सन्१९२३ में एक मार्क का रेट हो गया चार विलियन डॉलर।इसका अर्थ था कि चालीस विलियन मार्क का मूल्य था मात्र एक सेंट।इस सबके परिणाम बड़े भयानक निकले।प्रत्येक परिवार की जमा पूँजी ख़त्म हो गई।मजदूरों को जो वेतन मिलता था उसकी कोई क्रय शक्ति नहीं थी।लोग अपने को ज़िंदा रखने के लिए मुश्किल से कोई खाद्य सामग्री ख़रीद पा रहे थे।यही वह असंभव अवस्था थी जिसमें जर्मन लोग किसी नायक की खोज कर रहे थे जो उनको संकट की अवस्था से बाहर निकाले।

               हिटलर स्वभाव से अहंकारी था।उसका  मानना था कि वह इस संकट से देश को निकाल सकता है।असल में वह हमेशा अति विश्वास और अपनी क्षमता का अतिरंजित मूल्यांकन करता था।उसकी नाजी पार्टी सिर्फ़ बावेरिया में ताकतवर थी लेकिन जर्मनी में कहीं पर उसका नामोनिशान नहीं था।लेकिन नवम्बर१९२३ में उसने जर्मनी में तानाशाही स्थापित करने के प्रयास आरंभ किए। ८नवम्बर१९२३ को उसकी पार्टी के ३४ सदस्य बुईर्गरकेल्लेर (म्यूनिख के बाहर) एक वीयर हॉल में  एकत्रित हुए।इस मीटिंग में शामिल होने वाले सब सेना के हमलावर सैनिक थे।उसके बाहर एक रैली भी हो रही थी। जिसमें तीन हज़ार बावेरियन सरकार के समर्थक शामिल हुए।इस रैली को उन तीनों लोगों ने आयोजित किया था जो बावेरिया पर शासन करते थे।ये थे- गुस्ताव वन क़हर,स्टेट कमिश्नर,जरनल ऑटो वन लोसोव , ये बावेरिया में जर्मनी की सेना के कमांडर थे,तीसरे व्यक्ति थे कर्नल हंस वन सिइस्सिर,ये बावेरियन राज्य पुलिस के मुखिया थे।इस रैली में क़हर जब भाषण दे रहे थे, अचानक उनके भाषण के दौरान रिवाल्वर से गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी, रैली में भगदड़ मच गई।अचानक इसी दौरान हिटलर ने भाषण की टेबिल पर छलांग दी और सबका ध्यान अपनी ओर खींचा और अपनी पिस्तौल से फ़ायर किए ,क़हर ने अपना भाषण रोक दिया और देखने लगे कि हंगामा क्यों हो रहा है।कहर के सैनिकों ने तुरंत हिटलर को घेर लिया और क़हर को सुरक्षित घेरे में ले लिया।हिटलर ने हल्ला किया और नारे लगाए राष्ट्रीय क्रांति ज़िंदाबाद ,यह कहा कि राष्ट्रीय क्रांति शुरु हो गई है। 

          हिटलर के पास गोलियों से भरी पिस्तौल थी, लेकिन इसने तीनों अफ़सरों पर गोली नहीं चलाई।वह गोली चलाकर जर्मन सेना की पराजय नहीं करना चाहता था बल्कि जर्मन सेना का दिल जीतना चाहता था।उसने तीनों अफ़सरों को कोई धमकी नहीं दी, वहीं तीनों अफ़सरों ने उसके इस एक्शन के सामने झुकने से मना कर दिया।उन्होंने हिटलर की क्रांति में शामिल होने से इंकार कर दिया, उसे कोई धमकी भी नहीं दी।जबकि उसने उनके सीने पर पिस्तौल तानकर धमकी दी और कहा कि उसकी क्रांति का समर्थन करो।बावेरिया के तीनों अफ़सरों ने उसकी धमकी के आगे झुकने से इंकार कर दिया।इस घटना के तत्काल बाद हिटलर रोने लगा।उसकी यह खूबी थी कि नाटकबाजी बहुत अच्छी करता था।वह तुरंत ठंडा हो गया।इस तरह के व्यवहार से वह अपने विरोधी का भी मन जीत लेता था।इस घटना के तुरंत बाद हिटलर अपनी मीटिंग में लौटकर आया उसने अपने साथियों में घोषणा की कि उसकी क्रांति को बावेरिया के तीन शीर्षस्थ अधिकारियों ने समर्थन दिया है और वे क्रांति में शामिल हो गए हैं।वे जर्मनी में राष्ट्रीय सरकार बनाने में शामिल हो गए हैं।और वह स्वयं उस सरकार का मुखिया होगा।जनरल इरिक लुडेनडोरफ  का उस समय,जो कि प्रथम विश्व युद्ध के हीरो और फ़ील्ड मार्शल वन हीन्डेनबर्ग के बाद उनका दूसरा स्थान था, उन इरिक लुडेनडोरफ को हिटलर ने जर्मन सेना का प्रमुख घोषित कर दिया।

             इसे कहते हैं बड़ा झूठ,इसमें एक साथ दो सफ़ेद झूठ बोले गए।किंतु ये दोनों झूठ काम कर गए.बावेरिया के तीनों प्रमुख लोग हिटलर के साथ नहीं थे, उन्होंने उसका समर्थन नहीं किया था।वे उस समय सभा स्थल पर मंच पर ही थे और उन्होंने हिटलर का साथ देने से साफ़ इंकार कर दिया था।लेकिन भीड़ तो यह बात नहीं जानती थी।भीड़ ने तुरंत क्रांति का समर्थन किया।यहां तक कि जनरल लुडेनडोरफ यह नहीं जानते थे कि सेना ने बग़ावत कर दी है।लेकिन हिटलर ने लुडेन डोरफ को संदेश भिजवा दिया।मुश्किल यह थी कि लुडेन की जर्मनी में बड़ी इज़्ज़त थी लेकिन हिटलर को तो कोई जानता नहीं था,लुडेन अपने घर से निकलकर सीधे सभा स्थल आए और उन्होंने बावेरिया के तीनों बड़े नेताओं को समझाया और उनका समर्थन लेने में वे सफल हो गए।जनरल  लुडेन इस बात से ख़फ़ा थे कि उनसे सलाह किए ग़ैर हिटलर ने क्रांति की घोषणा कर दी।वह भी वीयर हॉल में।उसी वीयर हॉल में हिटलर ने जनरल को शामिल होने के लिए निमंत्रण भेजा था।जनरल के आने से हिटलर की इज़्ज़त बच गई।वरना तो बदनामी तय थी।जनरल के आने के बाद बावेरिया के तीनों नेताओं के साथ उन्होंने बातचीत की और तीनों को वहाँ से रिहा कर दिया गया।बाद में हिटलर और बाक़ी लोग सभा मंच पर गए और सभा मंच पर पाँच लोगों ने वहाँ संक्षिप्त भाषण दिए और नई क्रांति को समर्थन देने की सौगंध ली।लेकिन क्रांति की घोषणा करना पहला कदम था।सत्ता के प्रतिष्ठानों पर हिटलर का कब्जा होना बाक़ी था, शहर के रणनीति के लिहाज से प्रमुख स्थानों पर अभी हिटलर का क़ब्ज़ा नहीं हुआ था।यहां तक कि दूरसंचार भवन पर भी हिटलर का क़ब्ज़ा नहीं हुआ था।लेकिन इस घटना के बाद सारे शहर और देश में यह ख़बर तेज़ी से फैल गई कि देश में सत्ता पर किसी ने क़ब्ज़ा कर लिया है।यह ख़बर ज्यों ही फैली सत्ता के शिखर से इसे कुचलने के आदेश दे दिए गए।बावेरिया के तीनों बड़े नेता -क़हर,लोस्सोव और सिइस्सर तुरंत वीयर हॉल से निकलकर भाग खड़े हुए।क्योंकि वीयर हॉल को सेना और पुलिस ने घेर लिया था।सेना ने बाग़ियों को तुरंत सरेंडर करने को कहा,बागियों ने तुरंत सरेंडर किया,हिटलर ने अपनी पिस्तौल की गोलियाँ निकाल फेंकी।नाजी पार्टी को तुरंत भंग करने की घोषणा की।९नवम्बर तक आते आते हिटलर महसूस करने लगा कि वह बाज़ी हार चुका है।इस घटना के बाद उसने तय किया कि क्रांति करनी है तो सेना और पुलिस के ख़िलाफ़ नहीं,बल्कि उनको साथ में लेकर क्रांति करनी होगी।हिटलर ने सेनाध्यक्ष से कहा कि वे इस्तीफ़ा देकर गाँव चले जाएँ, जनरल इसके लिए राज़ी नहीं हुआ, उसने कहा हम सबको म्यूनिख में मुख्य केन्द्र की ओर मार्च करना चाहिए, कोई प्रतिरोध नहीं करेगा, सेना भी नहीं रोकेगी।जनरल पीछे हटने को तैयार नहीं था।जनरल का मानना था कि हमें क्रांतिकारी सरकार का गठन करना चाहिए।अंत में हिटलर ने जनरल के सुझाव को मान लिया।कुछ ही समय बाद ९नवम्बर की शाम ख़त्म होते होते जनरल के साथ कुछ बाग़ी सैनिक भी मिले।जनरल लुडेन डोर्फ ,हिटलर और गोइरिंग के नेतृत्व में बाग़ियों ने म्यूनिख की मुख्य बिल्डिंग की ओर मार्च आरंभ कर दिया। इस दौरान सैकड़ों सैनिकों और पुलिस वालों ने तटस्थ रूख अपना लिया,उन्होंने कहीं पर भी इन लोगों को रोकने-पकड़ने की कोशिश नहीं की।दोनों ओर से इंतज़ार कर रहे थे कि पहले गोली कौन चलाता है।

          एक चश्मदीद गवाह ने कहा कि हिटलर ने जब  पुलिस इंचार्ज अफ़सर को आदेश दिया कि वह सरेंडर कर दे। उसने आदेश मानने से मना कर दिया तो हिटलर ने उसके ऊपर रिवाल्वर से गोली चलाई।इसके बाद दोनों ओर से तकरीबन ६० सैकिण्ड तक फ़ायरिंग होती रही।इसमें १६नाजी और तीन पुलिस वाले मारे गए।बाकी बचे हिटलर और उनके साथी पास के गलियारे की ओर भाग खड़े हुए और उन्होंने अपनी जान बचायी।इसके बाद अकेले सेना के जनरल लुडेनडोफ्फ ने मार्च किया और उनके साथ कोई नाजी मार्च करते हुए नहीं गया।जनरल ने अकेले ही चौराहे को पार करते हुए मार्च किया।यहां तक कि फ्यूहरर और एडोल्फ हिटलर भी उनके साथ नहीं गए।इस मुठभेड़ में १६ नाजी मारे गए, अनेक घायल हुए इनमें गोयरिंग भी थे जो घायल अवस्था में वहीं पर पड़े थे।हिटलर इनको उठाकर लेकर गए।वे पास में इंतजार कर रही कार तक उनको उठाकर लेकर सीधे नाजी ऑफिस लेकर गए।उसके बाद ये लोग कई दिनों तक अपने ऑफिस के बाहर नहीं निकले।बहुत सारे लोग उस समय यह सोच रहे थे कि नाजी और हिटलर का  अंत हो गया है।लेकिन ऐसा नहीं हुआ।नाजी पार्टी को भंग कर दिया गया, उसके अनेक नेता गिरफ्तार कर लिए गए।बड़े देशद्रोह के आरोप में उनको बंद कर दिया गया।लेकिन अन्य सर्वोच्च नेता भागने में सफल रहे।वह सबसे पहले गोली से घायल हुआ था।हिटलर ने अपनी भाषणकला के ज़रिए इस गिरफ़्तारी को आम जनता को आकर्षित का एक बहाना बना लिया।इस चक्कर में वह राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो गया।आम जनता के बीच में वह राष्ट्रीय हीरो और देशभक्त बन गया,क्योंकि उस समय लाखों जर्मनों के मन में लोकतंत्र के प्रति गहरी नफ़रत भरी हुई थी।मुकदमे में उसने मुक़दमे की ख़ुद ही पैरवी की।अदालत में उसके तर्कों का किसी के पास कोई जवाब नहीं था।वह पूरे मुक़दमे में हावी रहा और विश्व प्रेस की हेडलाइन बन गया।इस मुकदमे में हिटलर को राजद्रोह के लिए दोषी पाया गया और १अप्रैल१९२४ को सज़ा सुनाई गई।उसे लैंडसबर्ग के क़िले में बड़े सम्मान और सुविधाओं के साथ अतिथि के रुप में रखा गया।इस तरह की आरामदेह अवस्था में हिटलर और उनके साथियों ने शांति के साथ भावी योजनाओं पर विचार किया।उसी दौरान हिटलर ने जर्मनी के भविष्य का ब्लू प्रिंट तैयार किया और तय किया कि आगामी बीस साल में जर्मनी कैसा होगा।उसे विश्वास था कि उसे सरकार बनाने का मौक़ा ज़रूर मिलेगा।इस सबको उसने एक किताब में रुप में दर्ज किया।लेकिन जर्मन शासकों ने यह किताब  जब प्रकाशित हुई तो उसे पढ़ने की कोशिश ही नहीं की या उसे गंभीरता से नहीं लिया।कोई यह नहीं कह सकता कि हिटलर ने जर्मन समाज को आने वाली बर्बरता की चेतावनी नहीं दी थी।उसने साफ़ घोषित किया कि वह सत्ता में आएगा तो बर्बरता का प्रदर्शन करेगा।

         उल्लेखनीय है  हिटलर को पाँच साल की सज़ा दी गई। लेकिन क्रिसमस के पहले ही उसकी सज़ा माफ़ करके उसे जेल से रिहा कर दिया गया। इस तरह उसने एक साल से कुछ कम समय जेल में गुज़ारे।वह जेल से बाहर आने के बाद खुश था।उसे बाहर आने पर क्रिसमस में कोई मज़ा नहीं रहा था,भविष्य अंधकारमय नज़र रहा था।नाजी पार्टी ने ऐसा कुछ खड़ा नहीं किया था,उस पर पाबंदी लगी हुई थी।हिटलर स्वयं सार्वजनिक तौर पर कुछ भी बोलने से कन्नी काट रहा था।उसे जर्मनी से ऑस्ट्रिया जबरिया भेजने की धमकी भी दी गई।उस समय सब सोच रहे थे कि हिटलर ख़त्म हो गया है।यहां तक कि उसके कट्टर समर्थक यह मान रहे थे कि हिटलर ख़त्म हो गया है।चारों ओर हिटलर का मज़ाक़ उड़ रहा था।

        हिटलर ने जो किताब लिखी थी उसका नाम था मेरा संघर्ष(मैन कैम्फ) यह किताब जर्मनी में बाइबिल के बाद सबसे अधिक पढ़े जाने वाली किताब थी।सन्१९३३ में उसकी रॉयल्टी से हिटलर लखपति बन गया।इस पुस्तक में अपने विएना के आवारा जीवन के अर्जित कच्चे विचारों को पेश किया है। बाद में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर के विचारों परिपक्वता आई।








































 









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