कांग्रेस पार्टी को गुलाम बुद्धिजीवी अच्छे लगते हैं। बुद्धिजीवियों को पालतू बनाने में वह माहिर है। भारत में बौद्धिक उत्थान की संभावनाओं को पंक्चर करने के लिए वह तरह-तरह के हथकंडे़ अपनाती रही है। इसके बावजूद बुद्धिजीवियों का एक समूह ऐसा भी पैदा हुआ है जो कांग्रेस के हाथों बिकने को तैयार नहीं है। हमें ऐसे बुद्धिजीवियों की अभिव्यक्ति की आजादी की हमेशा रक्षा करनी चाहिए।
आज के ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के कोलकाता संस्करण में एक खबर छपी है कि जो बुद्धिजीवी माओवादियों का समर्थन कर रहे हैं उन्हें तुरंत यूएपीए नामक काले कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया जाए। इस संदर्भ में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल सरकार को एक सर्कुलर भेजा है। इसमें कहा गया है जिन बुद्धिजीवियों की माओवादियों के साथ सहानुभूति है उन्हें तुरंत गिरफ्तार करो,जो माओवादियों का मदद कर रहे हैं उन्हें भी गिरफ्तार करो।
इस प्रसंग में पहली बात यह है कि माओवादियों को पकड़ने और दण्डित करने का केन्द्र और राज्य सरकारों को संवैधानिक अधिकार है। उन्हें कोशिश करके माओवादियों के ठिकानों को खासकर जंगी ठिकानों को तुरंत नष्ट करना चाहिए। माओवादी संगठनों के द्वारा की जा रही हिंसा की हम निंदा करते हैं।
लेकिन माओवाद के नाम पर बुद्धिजीवियों पर की जा रही किसी भी किस्म की कार्रवाई को प्रत्येक दृष्टि से अनैतिक और अवैध ही माना जाएगा। विचारों की पक्षधरता और अपने विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति के लिए किसी भी बुद्धिजीवी के खिलाफ कारवाई असंवैधानिक है।
हमें विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और हत्या करने की स्वतंत्रता में फ़र्क करना ही होगा। माओवादियों के हिंसाचार को किसी भी तर्क से सही नहीं ठहराया जा सकता, इसके बावजूद कोई बुद्धिजीवी माओवादियों के विचारों का समर्थक है तो उसे कानून के नाम पर पकड़ना नग्न फासीवाद है।
महाश्वेता देवी आदि बांग्ला के सैंकड़ों बुद्धिजीवी माओवादियों के प्रति वैचारिक सहयोग और समर्थन करते रहे हैं। लेकिन माओवादी हिंसा का उन्होंने कभी समर्थन नहीं किया। जबसे माओवादियों के खिलाफ निषेधात्मक कदम उठाए गए हैं तब से उन्होंने माओवादियों से दूरी बनाए रखने की कोशिश की है।
माओवाद के नाम पर बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी की खबर पहले भी कईबार आयी है। ऐसी खबरें सरकारी स्रोतों के जरिए बौद्धिक अनुशासन लागू करने की सॉफ्ट साजिश है। इस तरह की खबरें गुलाम मानसिकता का वातावरण बनाने का काम करती हैं। बुद्धिजीवियों को सच बोलने से रोकती हैं। उनमें भय पैदा करती हैं। हमें सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर चल रही उन सभी साजिशों को बेनकाब करना चाहिए जो बुद्धिजीवियों में भय पैदा करती हो,निर्भीक अभिव्यक्ति को बाधित करती हो।
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