उन्हें लंबे समय से किसी ने नहीं देखा। उन्हें कोई खोजने नहीं जाता। वे जाते हैं तो कभी लौटकर नहीं आते। उनके बीबी-बच्चे और परिवार के अन्य सदस्य सालों से उनके आने का इंतजार कर रहे हैं,उन्हें कोई खबर नहीं है कि वे कहां हैं किस दशा में हैं। उनके बारे में पुलिस,न्यायालय,राज्य सरकार आदि कोई कुछ भी नहीं बताता।
आखिर ऐसा क्यों होता है कि आतंकी दौर में लोग ज्यादा गायब होते हैं ? लोग गायब होते हैं तो जाते कहां हैं ? कोई उनके बारे में लिखता क्यों नहीं है ? अखबारों में ,मीडिया की सुर्खियों में इन गायब लोगों का आख्यान कभी नजर क्यों नहीं आता ? मीडिया के खोजी पत्रकार इनके बारे में विशेष रिपोर्ट प्रकाशित क्यों नहीं करते ? बड़े मीडिया घरानों के संपादकों की कलम की स्याही क्यों सूख जाती है ? सामान्य हत्या की खबर पर सनसनी पैदा करने वाले स्टार न्यूज और आजतक में कभी इन गायब लोगों पर कोई रिपोर्ट नजर क्यों नहीं आई ? व्यापक मानवाधिकार हनन के मसलों पर कारपोरेट मीडिया चुप्पी क्यों साधे रहता है ?
कश्मीर में मानवाधिकारों का जिस तरह हनन हो रहा है उसका कवरेज मीडिया से गायब क्यों है ? कसाव को सजा देने के मामले पर उन्माद की हद तक प्रचार करने वाले राजदीप सरदेसाई,अर्णव गोस्वामी,बरखा दत्त आदि को अभी तक एक भी बार कश्मीर के गायब लोगों की सुध क्यों नहीं आई ?
कश्मीर में गायब होने वाले लोगों की सूची लगातार बढ़ रही है। हाल ही में एक गैर सरकारी संगठन Association of Parents of Disappeared Persons के द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि कश्मीर में सन् 1989 से गायब लोगों की संख्या आठ से दस हजार के बीच है। इन लोगों के घरवाले नहीं जानते कि इन लोगों को पुलिस बलों के द्वारा कहां रखा गया है, किस अवस्था में रखा गया है,ये लोग जिंदा हैं या नहीं, यदि जिंदा हैं तो पुलिस इनके बारे में ठोस सूचनाएं इनके रिश्तेदारों को क्यों नहीं देती ?
विभिन्न राजनीतिक दलों के द्वारा कभी इन गायब लोगों का मसला संसद में क्यों नहीं उठाया गया ? कश्मीर को भारत का हिस्सा मानने वालों का गायब कश्मीरियों के प्रति यह बेरुखी वाला भाव बेहद खतरनाक अवस्था की सूचना है। यह इस बात की भी सूचना है कि समस्त प्रधान राजनीतिक दलों में मुस्लिम विरोधी भावनाएं जड़ें जमा चुकी हैं। यह इस बात का भी संकेत है कि हमारा समाज अन्यों के प्रति बेगानेपन का शिकार हो गया है।
ध्यान रहे आज अगर हमारा समाज गायब कश्मीरियों के मसले पर नहीं जागता है तो कल हम पर भी पुलिसबलों का हमला हो सकता है और वैसी अवस्था में हमारे पक्ष में कोई नहीं बोलेगा।
कश्मीर में पुलिस और सैन्यबलों के द्वारा आम कश्मीरी के गायब होने की बात को हमने सीधे पीडितों की समस्या के रुप में उन पर ही छोड़ दिया है। गायब कश्मीरियों की समस्या लोकल समस्या नहीं है। रुटिन समस्या नहीं है। बल्कि मानवाधिकार हनन की राष्ट्रीय समस्या है। इस पर सुप्रीम कोर्ट को निजी पहल पर सक्रिय होकर राज्य सरकार से गायब लोगों की आधिकारिक सूची मांगनी चाहिए। उसे यह पता करना चाहिए कि गायब लोग कहां गए ? इस मामले में राज्य स्तर पर आधिकारिक डाटा उपलब्ध कराया जाना चाहिए। यह बताया जाना चाहिए कि आखिर क्यों और किस प्रसंग में गायब व्यक्ति को पुलिस उठा ले गयी और बाद में उसका क्या किया ? पुलिस का दसियों सालों से गायब लोगों के बारे में चुप्पी लगाए रखना स्वयं अपराध हे।
कौन कहता है कि गायब होते हैं? जी नहीं साहब, सिर्फ़ घूमने-फ़िरने सीमा-पार जाते हैं…
जवाब देंहटाएंऔर बिलकुल वापस भी आते हैं जी, बाकायदा झोले लटकाये, बादाम-पिस्ते लिये, आँखो में 72 हूरों के सपने लिये…
लेकिन आपको दिखाई नहीं देंगे… :)
समस्त प्रधान राजनीतिक दलों में मुस्लिम विरोधी भावनाएं जड़ें जमा चुकी हैं,और उन्ही के प्रभाव में भोले भाले लोग भी होते जा रहे.
जवाब देंहटाएंसमस्त प्रधान राजनीतिक दलों में मुस्लिम विरोधी भावनाएं जड़ें जमा चुकी हैं,और उन्ही के प्रभाव में भोले भाले लोग भी होते जा रहे.
जवाब देंहटाएंसर , आप किन कश्मीरियों की बात कर रहे हैं ? आम कश्मीरी या .... / अगर आम कश्मीरी सैन्य - बल या पुलिस के द्वारा गायब हो रहे हैं तो यह अवश्य चिंता की बात है / इस पर त्वरित कार्यवाही होनी चाहिए / पर कश्मीर को लेकर हमारी सरकारें एक विचित्र प्रकार की उहापोह की स्थिति में रहती हैं / असल में हमारी सरकारों के लिए कश्मीर बहुत ही संवेदनशील मुद्दा के रूप में खड़ा रहा है / अफ़सोस की बात यह है किसत्ता की राजनीति के चलते कश्मीर और उलझता चला गया है / अब देख लीजिए आज भी कश्मीरी पंडितों के लिएकश्मीर में कोई राह नहीं निकल पाई है /
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