कल मातृ दिवस था और माँ के नाम पर भावुकता की कृत्रिम धारा को यहां से वहां तक मीडिया के प्रत्येक कोने में पूरी कृत्रिम आभा के साथ देखा गया। हमारा मध्यवर्ग निजी भावनाओं, पीड़ाओं और निज की इमेजों में इस तरह गुम हो गया है कि उससे ‘अन्य’ और ‘अन्या’ के दर्शन ही नहीं हो रहे हैं। निजता का ऐसा ताण्डव समाज के ह्रास की निशानी है।
हमारे समाज में माँ बनना अभिशाप है। माँ की पीड़ा को सुनने के लिए समाज के पास कान नहीं हैं। माँ के आँसू तो कभी-कभार दिख भी जाते हैं,लेकिन माँ के अन्तर्मन को हम देख ही नहीं पाते हैं,यह भी कह सकते हैं कि माँ के मन में झांकना ही नहीं चाहते। पहले माँ संबंध था,धीरे-धीरे बड़े हुए तो संबंध की जगह सहानुभूति ने लेली,शादी हुई तो सहानुभूति की जगह औपचारिक खोजखबर ने ले ली। अब हम माँ की खबर लेने लगे।
माँ का खबर बनना पूंजीवाद की सबसे बड़ी विजय है। अब माँ एक खबर है, विज्ञापन है और हमें खबर से ही पता चला कि मातृदिवस है। खबर और विज्ञापनों से ही हमें पितृदिवस की खबर मिलती है। यानी पूंजीवाद ने मानवीय संबंधों को खबरों की कतरनों में तब्दील कर दिया गया है।
मातृ दिवस पर सबसे भयानक खबर अमेरिका से आई,खबर यह है कि अमेरिका में गरीब औरतों को सबसे ज्यादा एबॉर्सन कराने पड़ते हैं या सबसे ज्यादा गर्भ गरीब औरत के ही गिरते हैं।
अमेरिकी संस्था The Guttmacher Institute के ताजा सर्वे से पता चला है कि गरीब औरतों को एबॉर्सन ज्यादा कराने पड़ते हैं। गरीब औरतों में गर्भपात के बढ़ते आंकड़ों का उनकी गरीबी से गहरा संबंध है। भारत में तकरीबन यही स्थिति है। आंकड़े बताते हैं कि तुलनात्मक तौर पर गरीब औरतों में गर्भपात की दर में 60 पर्तिशत की बढ़ोतरी हुई है। जबकि इसी वर्ग की औरतों में गर्भपात का दर सन् 2000 में 27 प्रतिशत और 2008 में 40 प्रतिशत बढ़ा है, उसकी तुलना में 2009 में 60 प्रतिशत की बढोतरी हुई है।
अमेरिका में काले और लातिना गरीब औरतों में गर्भपात की दर सबसे ज्यादा दर्ज की गयी है। यह भी दर्ज किया गया है कि 2008 में इसवर्ग की औरतों में गर्भपात में 200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
भारत में 1972 में 24300,सन् 1975 में 214197,सन् 1980 में 388405,सन् 1985 में 583704,सन् 1990 में 58215,सन् 1995 में 570914 और 2000 में 723142 गर्भपात के केस दर्ज किए गए।
संयुक्तराष्ट्र संघ के आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रतिवर्ष 50 मिलियन औरतें गायब हो जाती हैं। ऐसा सुनियोजित भ्रूण हत्या के जरिए हो रहा है। सारी दुनिया में प्रति 100 लड़कों की तुलना में 105 लड़कियां जन्म ले रही हैं। भारत में प्रति 100 लड़कों की तुलना में मात्र 93 लड़कियां पैदा हो रही हैं। भारत में प्रति वर्ष 60-70 लाख अवैध गर्भपात होते हैं। प्रत्योक राज्य में औसतन प्रति वर्ष पांच लाख गर्भपात होते हैं।
ये एक कड़वा सच है. आपने अच्छा लिखा है.
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