बुधवार, 28 अप्रैल 2010

कम्प्यूटर क्रांति का महान विज़नरी वन्नेबर बुश -समापन किश्त -

        वन्नेबर बुश की जीवनी 'एण्डलेस फ्रंटियर' में जचेरी ने लिखा है कि ''साधारण करदाताओं को यह समझना चाहिए कि शोधकर्ताओं को करदाताओं के धन की शांति के समय भी दरकार होती है।''जचेरी ने रेखांकित किया है कि बुश का रूजवेल्ट से विशेष संबंध और उसके वैज्ञानिक कार्यकलाप यह तथ्य संप्रेषित करते हैं कि विज्ञान के बारे में लगातार वे विशेषज्ञ निर्णय ले रहे थे जो जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की सत्ता के बाहर थे।विज्ञान के विकास का फैसला नागरिक नहीं ले रहे थे।सैन्य अधिकारी फैसला नहीं ले रहे थे। बल्कि बुश जैसे वैज्ञानिक फैसला ले रहे थे।इनकी किसी के प्रति जबावदेही नहीं थी।
     जचेरी ने लिखा है कि ''मुक्त दिमागों पर बढ़ती हुई निर्भरता के फायदे थे किंतु पेशेवर लोगों और जनता के लिए खतरा था।... ये लोग जनता के फंड का लाभ उठाते हुए जनता के जीवनस्तर के प्रति बेखबर थे।'' रूजवेल्ट की मौत के बाद बुश का प्रभामंडल कमजोर हुआ। किंतु शोध को उसने जिस ऊँचाई पर पहुँचा दिया था वहां से नीचे लाना किसी के लिए संभव नहीं था। वह प्रयोगशाला को सूचना युग तक ले गया।
       बुश का विचार था कि जिस तरह मानव मस्तिश्क अपने संबधों के आधार पर अपनी स्मृति बनाता है वैसे ही यह तकनीकी मशीनी संबंधों ,एसोसिएशन के आधार पर अपनी मेमोरी स्मृति बनाती है। 'मिमिक्स' के जरिए डाकूमेण्ट के साथ संपर्क (लिंक ) बनता है। बुश ने इसे पूर्वाभ्यास के रूप में पेश किया। इसके लिए बुश ने अंग्रेजी की बजाय तुर्किश भाषा के प्रतीकों का इस्तेमाल किया। 
        बुश ने 'मिमिक्स' में अनेक किस्म की सामग्री का संचय किया हुआ था। इसमें अनेक लेख और पुस्तकें थीं। इस मशीन में उसे लेख खोजने में काफी मजा आया।यहां तक कि उसने इन्साइक्लोपीडिया में भी खोजना शुरु किया। इसके अच्छे परिणाम निकले। बाद में वह 'हिस्ट्री' में गया। वहां जाने पर उसे कुछ और मिला। अब उसने इन सबको मिला दिया। इस तरह वह काम करता चला गया। कहीं-कहीं अपनी टिप्पणियां भी लिखता चला गया। यही पद्धति कालान्तर में टेड नेल्सन रचित हाइपर टेक्स्ट की धारणा का आधार बनी। नेल्सन ने बुश के ऋण को स्वीकार किया।
      वन्नेवर बुश का 30जून 1974 को निधन हुआ।यही वह दौर है जब इण्टरनेट जनप्रिय हो रहा था। वर्ल्ड वाइड वेब का जन्म हो चुका था।उल्लेखनीय है कि इटरनेट का जन्म 1969 में Arpanet के गठन के साथ हुआ। इंटरनेट का विचार 1968 में वन्नेवर बुश और जे.सी.आर. लाइकिल्डर के दिमाग में आया। अस्सी के दशक में यह अमेरिका के सभी विष्वविद्यालयों और संस्थानों में छा गया।जबकि डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू की धारणा के निर्माण का श्रेय टिम बर्नर्स ली को जाता है। टिम बर्नर्स ली,विंट किर्फ,एवं फिल बरेट ने इंटरनेट की भावी परिकल्पना पर आपस में विचार विमर्श किया।ये लोग शुरू से ही उन कंपनियों में काम कर रहे थे जो कंपनियां इंटरनेट के कारोबार से जुड़ी थीं।
      बुश के विचारों से तीन दशक बाद प्रभावित होकर टेड नेल्सन,डगलस इंगवर्ट, एंद्रीज वान दाम आदि ने कम्प्यूटर के हाइपर टेक्स्ट की सैध्दान्तिकी रची।इसमें ब्राउन यूनीवर्सिटी के इन्स्टीटयूट फॉर रिसर्च इन इंफोर्मेशन एंड स्कॉलरशिप ग्रुप की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।इन लोगों ने ही इण्टरमीडिया को जन्म दिया। बुश ने ही सबसे पहले लिंक,लिंकेज,ट्रायल्स,वेब आदि पदबंधों का नए किस्म की पाठात्मकता (टेक्स्चुएलिटी) के लिए निर्माण किया।
        बुश के विवेचन में पाठात्मकता से जुड़े अनेक क्रांतिकारी विचार निहित थे।ये सारे विचार रीडिंग या पठन और लेखन के क्षेत्र में नए किस्म के प्रयासों की मांग करते हैं। ये दोनों गतिविधियां एक-दूसरे से जुड़ी हैं। एक-दूसरे के साथ हैं।इसे बुक टैक्नोलॉजी में देख सकते हैं।बुश ही पहला व्यक्ति था जिसने वर्चुअल पाठात्मकता की परिकल्पना सबसे पहले पेश की। पहला सवाल यह है कि 'हाईपर टेक्स्ट' क्या है ?
          वन्नेवर बुश ने सबसे पहले इस अवधारणा का प्रयोग किया।बुश को ही इस धारणा का आविष्कर्त्ता माना जाता है।बुश ने 1945 में 'अटलांटिक मंथली' पत्रिका में हाइपर टेक्स्ट के बारे में सबसे पहले लेख लिखा।इस लेख में उसने तकनीकी आधारित सूचना देने वाली मशीन की चर्चा की।
      उसने लिखा कि यह मशीन सूचना विस्फोट के युग में स्कॉलरों और फैसले लेने वालों के लिए विशेष रूप से मददगार साबित हो सकती है।प्रत्येक क्षेत्र में जिस तरह के व्यापक अनुसंधान हो रहे हैं,शोधार्थियों को जिस तरह की जटिल समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।उनसे निबटने में यह मशीन खास तौर पर मददगार साबित होगी। आज अनेक प्रकाशन हैं। ये हमारी पहुँच के परे हैं। तमाम ऐसे दस्तावेज हैं जो हमारे लिए जरूरी हैं किंतु उन तक पहुँचना मुश्किल है। वे हमारी क्षमता के बाहर हैं।
         आज जितने विराट पैमाने पर मानवीय अनुभवों और ज्ञान के साथ हम जी रहे हैं,उन सब तक पहुँचना मुश्किल हो गया है। आज मुख्य समस्या चयन की है,सूचना को खोजने की है। जो सूचना खोजना चाहते हैं, जिन्हें सूचना की जरूरत है,उन्हें सूचना खोजने,संचय करने, क्रमबद्ध करने आदि के काम में दिक्कतें आ रही हैं।हम इण्डेक्स व्यवस्था में जी रहे हैं। डाटा को स्टोरेज में अकारादि क्रम से रखते हैं। नम्बर से रखते हैं।सूचनाएं उपवर्ग दर उपवर्ग में वर्गीकृत करके रखते हैं।वहीं से हासिल करते हैं। सारी सूचनाएं एक ही जगह होती हैं।जब तक कि कोई उन्हें डुप्लीकेट रूप में अन्यत्र ले जाना न चाहे। इसके नियम भी खुले हैं।यदि आप एक आइटम खोज लेते हैं तो इसे सिस्टम से ही आना होगा।नए 'पथ' पर जाना होगा।बुश के श्रेष्ठ अनुयायी टेड नेल्सन ने लिखा कि ''वर्गीकरण में कुछ भी गलत नहीं है। क्योंकि उसकी प्रकृति रूपान्तरणकारी है। वर्गीकरण, सिस्टम की आधी जिन्दगी है।कुछ वर्षों के बाद यह वर्गीकरण भी मूर्खतापूर्ण लगने लगेगा।कुछ अर्से बद सार्वभौम रूपों का जन्म हो जाएगा।''
       मुद्रण और तत्संबंधित सूचना प्रबंधन व्यवस्था एकदम कठोर और पक्की है।उसमें कायिक तौर पर जिस रूप में चीजें दर्ज हैं उसे कोई बदल नही सकता।हमें ऐसे सूचना माध्यम की जरूरत है जो मनुष्य के दिमाग की तरह सामंजस्य बिठा सके,आत्मसात् कर सके।ज्ञान को स्टोर कर सके।ज्ञान का वर्गीकरण कर सके।बुश ने शिकायत की है कि मनुष्य का दिमाग वैसे काम नहीं करता जैसा हम सोचते हैं।दिमाग स्वत: स्फूर्त्त फोटो खींचता है। आगे आने वाले विचार और संबंध को बताता है।मनुष्य के दिमाग में ऐसे सैल होते हैं जो अंतर्गृथित ढ़ंग से यह कार्य करते हैं।हाइपर टेक्स्ट वर्गीकरण की अधूरी व्यवस्था के सीमित दायरे को तोड़ देता है।सीमित दायरे से मुक्त करता है। एसोसिएशन के आधार पर संबंध बनाने पर जोर देता है।न कि इडेक्सिंग पर।इन्हीं सब बातों को मद्देनजर रखते हुए बुश ने 'मिमिक्स' की धारणा का प्रतिपादन किया।'मिमिक्स' तकनीकी तौर पर ज्यादा प्रभावी है,ज्यादा मानवीय ढ़ंग से तथ्यों को मेनीपुलेट कर सकता है।कल्पना को मेनीपुलेट कर सकता है।'मिमिक्स' वह है जिसमें व्यक्ति अपनी पुस्तक, रिकॉर्ड आदि के संप्रेषण को तकनीकी तौर पर स्टोर कर सकता है।उसका संवाद और सलाह के लिए तीव्रगति और उदारता के साथ इस्तेमाल कर सकता है।अपनी याददाश्त को विस्तार दे सकता है। 
      उल्लेखनीय है कि वन्नेवर बुश के दिमाग में 'मिमिक्स' के बारे में पहलीबार चालीस के दशक में विचार आया। बुश के अनुसार एक डेस्क,जिसमें पारदर्शी स्क्रीन हो, लीवर्स और मोटर्स हों।जिससे जल्दी से सूक्ष्म स्तर पर सर्च किया जा सके। बुश के साथ 'मिमिक्स' पर पॉल कान्ह और एलन एडलमैन ने काम किया।इसमें उन्होंने ऐसे गतिशील डायग्राम और विकसित एनीमेशन तकनीकी की खोज की जिसके जरिए आप अन्य साइड से डाउनलोड कर सकते हैं। सर्च और सूचना की खोज के काम के अलावा 'मिमिक्स' ने पाठक को यह मौका भी दिया कि वह चाहे तो पाठ में छोटी टिप्पणी लिख सके,नोट्स ले सके। इसके लिए यह संभव है कि शुष्क किस्म की फोटोग्राफी का इस्तेमाल करे। इस फोटोग्राफी को स्टायल में समाहित कर लिया जाए।
      बुश की 'मिमिक्स' की अवधारणा के दो प्रमुख बिन्दु हैं। पहला बिन्दु रीडिंग से जुड़ा है।यह ऐसी खुली और विराट प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अकेला दाखिल होता है।विचारों और प्रतिक्रियाओं को पारदर्शी पाठ में देखता है। बुश का यहां पर मुख्य जोर ग्रहणशील पठन या रीडिंग पर है।ग्रहणशील रीडिंग सक्रिय प्रक्रिया है।जिसमें लेखन शामिल है।इस धारणा का दूसरा मुख्य बिन्दु है कि पाठक सक्रिय होता है।हस्तक्षेप कर सकता है।पाठ पर टिप्पणी लिख सकता है।क्योंकि कायिक रूप में पृष्ठ उसके सामने मौजूद है।यह वस्तुत: कायिक की बजाय वर्चुअल पाठ की आवश्यकता को स्वीकार करना है। यह पाठ की एकदम नई धारणा है।'मिमिक्स' का बुनियादी तत्व 'खोज' और 'टिप्पण' पर ही निर्भर नहीं है। बल्कि इसमें इण्डेक्सिंग भी शामिल है।






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