शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

इलाहाबादकुंभ धर्मनिरपेक्षता और फेसबुक


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कुंभ में सबकुछ है। रेडियो है।टीवी है।कैमरे हैं।मोबाइलहै। अखाड़े हैं।संत हैं।जनता है।दुकानें हैं।पुलिस है।प्रशासन है। लेकिन इन सबकी पहचान कुंभ में समाहित हो गयी है।मुझे तो न धर्म नजर आ रहा है और न ढोंग नजर आ रहा है। मैं तो कुंभ में आनंद रस देख रहा हूँ। संभवतः शास्त्रों में आनंद को ही अमृत कहते हैं।

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इलाहाबाद कुंभमेले को संतों-महंतों के परे जाकर जनोत्सव के रूप में देखें। बिना किसी विज्ञापन और मीडिया कवरेज के लाखों-करोडों लोगों का कुंभपर्व में शामिल होना सुखद बात है। इससे यह भी पता चलता है कि भारत में अभी भी मासकम्युनिकेशन से ज्यादा प्रभावशाली परंपरागत कम्युनिकेशन है।

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इलाहाबाद कुंभमेले की खूबी है कि यह मेला टीवी कैमरे का पीछा नहीं कर रहा बल्कि टीवी कैमरे इसका पीछा कर रहे हैं। संतों को कवरेज नहीं चाहिए ,टीवी को संत बाइटस चाहिए।

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इलाहाबाद में आयोजित होने वाले कुंभ मेले की ड्यूटी में लगे राज्य व निकाय कर्मियों को विशेष भत्ता मिलेगा।



नगर विकास विभाग के इस संबंध में जारी आदेश के मुताबिक मेले में कार्यरत सरकार के विभिन्न विभागों, मेला अधिष्ठान व मेला क्षेत्र में स्थित नागर निकायों के ऐसे अराजपत्रित अधिकारी-कर्मचारी जिनका अधिकतम वेतनमान रुपये 9300-34800 व ग्रेड पे 4800 रुपये है उन्हें पहली जनवरी से 28 फरवरी तक की अवधि के लिए विशेष भत्ता मिलेगा। विशेष भत्ता कर्मियों के मूलवेतन एवं ग्रेड पे के 20 फीसदी के बराबर होगा यद्यपि उसकीअधिकतम सीमा 2400 रुपये होगी।



विशेष भत्ता उन्ही अधिकारियों-कर्मचारियों को दिया जाएगा जो मेला क्षेत्र में सीधे तैनात किए गए हैं और जिनकी तैनाती के बारे में कुंभ मेलाधिकारी ने प्रमाण पत्र दिया है। जिन अधिकारियों-कर्मचारियों को नियमानुसार विशेष वेतन, यात्रा भत्ता या फिर दैनिक भत्ता अनुमन्य है वे इस विशेष भत्ते को पाने के पात्र नहीं होंगे। संबंधित विभागों को अपने कोष से विशेष भत्ते का भुगतान करना होगा। शासन द्वारा इसके लिए कोई धनराशि नहीं मुहैया करायी जाएगी। नगरीय निकायों के केवल उन्हीं को विशेष भत्ता मिलेगा जो निकायों की नियमित सेवा के हैं और मेला कार्य से सीधे संबद्ध हैं। ऐसे कर्मियों को कुंभ मेलाधिकारी के प्रमाण पत्र के आधार पर निकाय निधि से भत्ते का भुगतान किया जाएगा।



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उत्तर प्रदेश सरकार ने घोषणा की थी कि कुंभ मेले में ड्यूटी करने वाले कर्मचारियों को विशेष भत्ता दिया जाएगा।

दरअसल, सरकारी सेवकों को संगम की सेवा के लिए प्रोत्साहित करने की यह परंपरा 152 साल पुरानी है। 1860 के माघ मेले की बेहतर व्यवस्था को देखते हुए अंग्रेजी हूकूमत ने मेला प्रभारी को 300 रुपये की खिलअत (सम्मान राशि) दी थी। बाद में यह परंपरा बन गई जो आज तक चली आ रही है। इस बार कुंभ मेले में ड्यूटी कर रहे कर्मचारियों को वेतन का बीस फीसदी तक विशेष भत्ता दिया जाएगा। क्षेत्रीय अभिलेखागार इलाहाबाद में संरक्षित एक दस्तावेज से पता चला है कि 1860 के माघ मेले की व्यवस्था बेहतर करने के लिए तत्कालीन मेला प्रभारी रतन सिंह को प्रोत्साहन राशि दिए जाने की घोषणा की गई थी। इलाहाबाद के मजिस्ट्रेट ने रतन सिंह को मेले के राजस्व में से कुछ हिस्सा दिए जाने के लिए उच्च अधिकारियों को पत्र लिखा था। पत्र में कहा गया था कि रतन सिंह द्वारा 1858 के कुंभ और 1859 के माघ मेले में वसूला गया टैक्स भी संतोषजनक रहा है। मजिस्ट्रेट के इस पत्र के जवाब में अधिकारियों ने कहा कि देश की शासन व्यवस्था ईस्ट इंडिया कंपनी के बजाए ब्रिटिश सरकार द्वारा चलाई जा रही है इस तरह सभी कर्मचारी ब्रिटिश हुकूमत के कर्मचारी हैं। ब्रिटिश सरकार में कर्मचारियों को कमीशन देने का प्रावधान नहीं है इस कारण कर्मचारियों का प्रोत्साहित करने के लिए कमीशन नहीं दिया जा सकता। बजाए इसके रतन सिंह को 300 रुपये की खिलअत (सम्मान) दी जा रही है। इसी तरह 1870 के कुंभ आयोजन के बाद तहसीलदार शीतला बख्श सिंह को 150 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी गई थी।

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केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2012-13 के कुम्भ मेला के लिए केंद्रीय पूल से उत्तरप्रदेश सरकार को 16,200 टन गेहूं और 9,600 टन चावल के आवंटन को मंजूरी दी है। यह आवंटन बीपीएल दरों (गरीबी रेखा के नीचे परिवारों को दी जाने वाली दर) पर किया जाएगा।



आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में यह फैसला किया गया। बैठक के बाद जारी एक विज्ञप्ति के मुताबिक सब्सिडी प्राप्त दरों पर खाद्यान्नों के इस आवंटन से पर्यटकों, श्रद्धालुओं, कल्पवासियों, साधुओं, धार्मिक एवं वहां सेवाएं देने वाले गैर-सरकारी संगठनों के लोगों, मेले में तैनात सुरक्षा बलों के जवान एवं अधिकारियों को सस्ती दर पर राशन सुलभ होगा।



बीपीएल दरों पर खाद्यान्न की उक्त मात्रा के आवंटन पर 40.60 करोड़ रुपए की सब्सिडी राशि बैठती है।



उत्तरप्रदेश सरकार ने पत्र के जरिए भारत सरकार से कुंभ मेला 2012-13 के लिए बीपीएल दरों पर 16,200 टन गेहूं और 9,600 टन चावल के आवंटन का अनुरोध किया था।



कुम्भ मेला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध प्राचीन धार्मिक उत्सव है जो इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम पर हर 12 वर्ष के अंतराल पर मनाया जाता है। इस मेले में करीब सात लाख कल्पवासी एवं साधुजन के भाग लेने की उम्मीद है। इस मेले में भारी संख्या में अंतरराष्ट्रीय पर्यटक भी भाग लेते हैं। (भाषा)

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इलाहाबाद कुंभमेला क्षेत्र से लेकर शहर भर में 100 विशेष सीसी कैमरे लगाए गए हैं। इसके अलावा दर्जनों निगरानी टॉवर बनाए गए हैं। मेले में 42 टॉवर तो सिर्फ कैमरे लगाने के लिए बनाए गए हैं। इसके अलावा 59 वॉच टॉवर पर तैनात पुलिसकर्मी सड़क से गुजरते लोगों की निगरानी करेंगे।

संगम पर बन रहे 32 ऊंचे टॉवर से लगभग पूरे मेला क्षेत्र पर दूरबीन और विशेष कैमरों की मदद से नजर रखी जा रही है। सड़क पर गुजर रहा हर शख्स कैमरे की जद में है।

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इलाहाबाद कुंभमेले में इसबार महिला संतों ने महिलासशक्तिकरण से प्रेरित होकर जूना अखाड़े के तहत स्वतंत्र रूप से व्यवस्था करने का मुद्दा उठाया। इसे जूना अखाड़े ने मान लिया। जूना अखाड़े में दस हजार से अधिक महिला साधु-संन्यासी हैं। इसे दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा नाम दिया गया है। लखनऊ के श्री मनकामनेश्वर मंदिर की प्रमुख महंत दिव्या गिरी को संन्यासिनी अखाड़े का अध्यक्ष बनाया गया है।

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इलाहाबाद के कुंभ मेले में श्रद्धालु इस बार गंगा, यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी में बने पक्के घाटों पर डुबकी लगाएंगे साथ ही वहीं पर सरकर ने पूजा-पाठ का इंतजाज करवाया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने चार पक्के घाट 100 कच्चे घाटों का इंतजाम किया है। कुंभ मेले में कुल 14 सेक्टर बनाए गए हैं।

इलाहाबाद में संगम और उसके नजदीक जो चार पक्के घाट बनाए गए हैं वह सभी यमुना नदी पर हैं। कुंभ मेले के सेक्टर-13 और 14 में बने अरैल में बने पक्के घाट से सीधे संगम में डुबकी लगाई जा सकेगी। जबकि बाकी तीन घाटों पर यमुना में स्नान हो सकेगा।

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इलाहाबाद कुंभमेले की तैयारियों को देखकर यह महसूस होता है कि गंगा में साफ पानी की आवश्यकता बनी हुई है। बीते अर्धकुंभ में तीन करोड़ लोगों ने गंगा में स्नान किया था और इस बार इनकी तादाद तीन गुना से ज्यादा बढ़ जाएगी. ऐसे में गंगा को कम-से-कम 5,000 क्यूसेक अतिरिक्त पानी की जरूरत पड़ेगी।

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इलाहाबाद कुंभ मेले के मद्देनजर केंद्र की ओर से उत्तरप्रदेश का योजना खर्च 21 प्रतिशत बढ़ा दिया गया है। योजना आयोग ने यूपी के लिए 57 हजार करोड़ रुपए मंजूर किए।

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कुंभ का मेला हो या कोई भी मेला हो, उससे हमेशा बाजार की शक्तियों को लाभ मिलता है। धार्मिकमेले तो और भी ज्यादा आर्थिक लाभ देते हैं। इस नजरिए से देखें तो कुंभमेला एक धार्मिक आयेोजन के साथ विशाल आर्थिकयज्ञ भी है। इससे बड़ी मात्रा में आर्थिकलाभ होने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। जागरण अखबार के अनुसार मात्र 1150 करोड़ की लागत से आयोजित होने जा रहा कुंभ मेला 2013 केंद्र व राज्य सरकार को मालामाल करने जा रहा है। टूर आपरेटर, एयरलाइंस, होटल आदि भी इसमें हिस्सेदार होंगे। दि एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने शनिवार को यह आकलन जारी किया है।

एसोचैम के अनुसार कुंभ मेला 2013 बारह से 15 हजार करोड़ की कमाई कराएगा। एसोचैम ने महाकुंभ मेला 2013- उप्र के लिए राजस्व अर्जन का संभावित स्रोत नामक एक दस्तावेज तैयार किया है। इस दस्तावेज को अपनी वेबसाइट पर भी जारी किया है। इसके अनुसार कुंभ मेला उप्र व देश में मेडिकल व इको टूरिज्म में जोरदार इजाफा करेगा। इस मेले के मद्देनजर देश में दस लाख से अधिक विदेशी सैलानी आने जा रहे हैं। देशी-विदेशी मीडिया इंडस्ट्री के सदस्य भी बड़ी संख्या में आ रहे हैं। यह सभी सैलानी 20 से 30 दिन भारत में रहेंगे। इनकी वजह से सारे होटल सौ प्रतिशत भरे रहने का अनुमान है। साथ ही इनकी आय में 25 प्रतिशत की दर से इजाफा होने की संभावना है। इनकी वजह से एयरलाइंस इंडस्ट्री को भी खासा फायदा होगा। कुंभ मेला इलाहाबाद के साथ-साथ आगरा व उप्र के अन्य हिस्सों, राजस्थान, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश आदि को भी खासा फायदा पहुंचाने जा रहा है क्योंकि देश में आने वाले अधिकांश टूरिस्ट एक से अधिक स्थानों को देखना पसंद करेंगे। टूर आपरेटर्स को इसमें अच्छा फायदा मिलेगा। उप्र के निजी अस्पताल, व्यापारी, रेलवे आदि इस दौरान 1500 करोड़ रुपये अर्जित करेंगे। इसके साथ ही कुंभ आने वाली भारी भीड़ से सीधे या प्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी भारी भरकम कमाई करेंगे। कुल मिलाकर मेला दो माह के दौरान 12 से 15 हजार करोड़ रुपये की कमाई कराएगा। इससे शासन की आय में भारी इजाफा होगा। अपनी गणित को पुख्ता करते हुए एसोचैम की ओर से जारी आकलन में कहा गया है कि दस लाख विदेशी सैलानियों में से कम से कम पांच लाख जरूर एक से ज्यादा स्थल देखेंगे। इसमें एक पर कम से कम 25 हजार का खर्च आएगा। इस तरह से अकेले टूर आपरेटर्स 1250 करोड़ रुपये अर्जित करेंगे। आकलन के मुताबिक मात्र दो माह तक चलने वाला कुंभ मेला छह लाख से अधिक रोजगार सृजित करेगा। इसमें एयरलाइंस व एयरपोर्ट सेक्टर में डेढ़ लाख, होटल इंडस्ट्री में ढाई लाख, टूर आपरेटर्स में 45 हजार, इको टूरिज्म में 50 हजार व निर्माण कार्यो में 85 हजार रोजगार शामिल है।

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देवता और राक्षसों में जब अमृत पाने के लिए संघर्ष हो रहा था तो उस दौरान अमृत की कुछ बूँदे जिन शहरों पर गिरीं उन शहरों में कुंभमेला लगाया जाता है। इलाहाबाद,नासिक,हरिद्वार और उज्जैन वे शहर हैं जहां अमृत की बूंदें गिरी थीं। इन चारों शहरों में 12 वर्ष के अंतराल के बाद कुंभमेला लगता है। सवाल यह है कुंभस्नान का कुंभमेले में रूपान्तरण कब हुआ ?

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हमारे समाज में साधु-संयासी निरीह और अधिकारहीन नागरिक हैं। ये वे लोग हैं जो निजीतौर पर समाज से बाहर हैं। जो समाज से बाहर है उसे समाज से बाहर जाने से कैसे रोका जाय ,इस पहलू पर हमारे नीति निर्धारक कभी नहीं सोचते। वे समाज से ज्यादा से लोगों को बाहर रखनेवाली नीतियां बनाते रहे हैं। उनकी नीतियों ने आदिवासियों,दलितों,औरतों,अल्पसंख्यकों ,अपाहिजों को समाज से बहिष्कृत करके रखा।इसी कोटि में संयासी भी आते हैं। राज्य की संयासीभक्ति ढोंग है।

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कुंभमेले में संयासियों की बेशुमार भीड़ देखकर बड़ा कष्ट होता है। मन में सवाल उठता है कि मेरे देश में हजारों-लाखों लोग संयासी क्यों हो जाते हैं ? हम आज तक ऐसी सामाजिक व्यवस्था क्यों नहीं बना पाए जिसमें लोग संयासी न बनें । हमने कभी गंभीरता के साथ संयासियों की सामाजिक प्रोफाइल नहीं बनायी और न उन कारणों को दूर करने का प्रयास किया जिसके कारण लोग संयासी हो जाते हैं। संयासी होने के अनेक कारण हैं लेकिन प्रधान कारण है दुख।

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