सोमवार, 31 अगस्त 2015

अपराध और अपराधी मध्यवर्ग-


      अपराध और अपराधी का कोई वर्ग नहीं होता,इसके बावजूद यह जानना समीचीन होगा कि आखिरकार इस दौर में अपराधी किस वर्ग में सबसे ज्यादा पैदा हो रहे हैं और कानून का वे किस तरह दुरुपयोग कर रहे हैं। नए आंकड़ों और मीडियायथार्थ की रोशनी में हमें अपराधी के वर्गचरित्र को भी चिह्नित करना चाहिए। मसलन्,मध्यवर्ग में सबसे ज्यादा टैक्सचोर हैं,मध्यवर्ग  में सबसे ज्यादा ह्वाइटकॉलर अपराधी हैं,दहेज उत्पीड़न,स्त्री-उत्पीड़न और साइबर अपराधी सबसे ज्यादा मध्यवर्ग में है,स्थिति यह है कि आईपीएल से लेकर बीपीएलकार्ड स्कैंडल तक,मनरेगा से लेकर खनन माफिया तक, ड्रग माफिया से लेकर बर्बर क्राइम के क्षेत्रों तक मध्यवर्ग का जाल फैला हुआ है।आतंकवाद-साम्प्रदायिकता और पृथकतावादी हिंसाचार में भी मध्यवर्गीय युवाओं का एक बड़ा अंश लिप्त है।  मध्यवर्ग के इस व्यापक बर्बर-अपराधी चरित्र की अनदेखी करके भारत के बुर्जुआजी और उसके द्वारा निर्मित शिक्षा व्यवस्था की भूमिका को सही परिप्रेक्ष्य में समझना मुश्किल है।
     मध्यवर्ग के आपराधिक चरित्र का चरमोत्कर्ष है यूपीएससी निर्मित अफसरों की एक अच्छी-खासी तादाद का विभिन्न किस्म के क्राइम में लिप्त पाया जाना। उनके किस्से आए दिन मीडिया में हमारे सामने आते रहते हैं।इसके अलावा नए व्यापारियों के रुप में उभरते मध्यवर्ग में भी क्राइम दर तेजी से बढ़ी है। इस सबने मध्यवर्ग के आपराधिक चरित्र को पुख्ता किया है। आज स्थिति यह है कि अपराध का कोई क्षेत्र नहीं है जहां शिक्षित मध्यवर्ग का वर्चस्व न हो।
    अपराधी मध्यवर्ग तो मीडिया का सबसे बड़ा खाद्य है।  मीडिया में जब भी अपराधी मध्यवर्ग के किसी व्यक्ति का कवरेज आता है वह सबसे ज्यादा दर्शक खींचता है। यही वजह है अपराध कार्यक्रम सबसे अच्छी रेटिंग में चल रहे हैं। यही वह परिप्रेक्ष्य है जिसमें हमें शीना बोरा हत्याकांड के कवरेज को देखना चाहिए। अब तक का कवरेज हत्या किस तरह की गयी,कैसे की गयी इसके विवरण और ब्यौरों से भरा पड़ा है। मीडिया की दिलचस्पी हत्या की प्रक्रिया को बताने में है ,वह अन्य पहलुओं को उजागर करने में कोई रुचि नहीं दिखा रहा। हत्या के तरीकों का बार-बार रुयायन अंततः अपराध के प्रति सहिष्णुभाव पैदाकरता है,अपराध को नॉर्मल, सहज,सहनीय बनाता है। कायदे से न्याय और दण्ड पर जोर होना चाहिए लेकिन न्याय और दण्ड में किसी भी टीवी चैनल की दिलचस्पी नहीं है।     
     दिलचस्प बात यह है कि इस हत्या को किसी ने खोजा नहीं है,हत्या क्यों हुई और कैसे हुए,इसके बारे में ड्राइवर ने 3साल बाद थाने में जाकर बताया है। मीडिया से लेकर पुलिस तक सभी हत्या के पीछे निहित मंशा को खोज रहे हैं। उसके प्रमाण खोज रहे हैं। इस हत्या ने एकबार फिर से परिवार नामक संस्था को कलंकित किया है। इस घटना ने यह संदेश दिया है कि हमारा समाज और परिवार किस तरह बर्बर और मूल्यहीन हो गया है।  इस हत्या ने यह तथ्य भी उजागर किया है कि हमारा मध्यवर्ग किस तरह झूठ-फरेब और अपराधीकरण में मशगूल है और समाज में उसे सम्मान भी मिल रहा है। यह वह वर्ग है जो अपराध करने बावजूद अपराधी नहीं है,सम्मानित है,वह समाजीकरण की प्रक्रिया के जरिए समाज में सम्मान पा रहा है।हमारे अंदर इस वर्ग के प्रति,इसके सड़े हुए मूल्यों के प्रति घृणा पैदा नहीं हो री बल्कि किसी न किसी रुप में सम्मान का भाव है। इस तरहके अपराध की रिपोर्टिंग घृणा का संचार नहीं करती बल्कि जिज्ञासा का संचार करती है। फलतःवह वैधता प्राप्त कर लेती है।      
       शीना बोरा की मौत सामान्य नहीं है,बल्कि असामान्य है। कम से कम यह बात तो हम कह ही सकते हैं कि समाज में इस तरह का माहौल बन गया है लड़की अपने घरवालों के बीच में भी सुरक्षित नहीं है। सामान्यतौर पर घर को लड़की के लिए सबसे सुरक्षित स्थान माना जाता था लेकिन शीना की हत्या ने एकबार यह तथ्य पुष्ट किया है कि हमारे घर और परिवारीजन हत्यारे गिरोह बनकर रह गए हैं। इन हत्यारे गिरोहों को हम बार –बार अपराध करते देखते हैं और इसके बावजूद हमारे मन में परिवार जैसी संस्था को लेकर  सवाल पैदा नहीं हो रहे,परिवार हमारे लिए अभी भी परम-पवित्र संस्था बनी हुई है। परिवारीजन पुण्यात्मा बने हुए हैं। शीना की हत्या को हम यदि व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखकर देखें तो चीजें शायद बेहतर ढ़ंग से नजर आएं।

        परिवारीजननों के द्वारा लड़कियों की विभिन्न बहाने से हत्याएं,बलात्कार,शारीरिक उत्पीड़न और गुलामों जैसी अवस्था को देखकर भी हमें कभी भी गुस्सा नहीं आता,हम कामना नहीं करते कि यह परिवार और उसका क्रिमिनल ढ़ाँचा नष्ट हो। हम बार –बार इस क्रिमनल पारिवारिक ढ़ाँचे और क्रिमिनल पारिवारिक संबंधों को किसी न किसी बहाने बनाए और बचाए रखना चाहते हैं । यही वह बिन्दु है जहां पर सबसे ज्यादा प्रतिवाद करने की जरुरत है। 

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