गुरुवार, 24 नवंबर 2016

नोट बंदी यानी मोदी सरकार ठप्प है !

            पीएम नरेन्द्र मोदी ने 9नवम्बर से नोटबंदी की नीति लागू करते समय आम जनता से पचास दिन मांगे हैं।कहा है पचास दिन में यह नीति अभीप्सित लक्ष्य हासिल न कर पाए तो जनता पीएम को दण्डित कर सकती है।सवाल यह है नोट बंदी के पहले जो वायदे पूरे करने की बात थी उनका क्या हुआ ॽ क्या उन वायदों को भी 50दिन के लिए स्थगित कर दिया जाय ॽ सवाल यह है नोटबंदी की घोषणा के बाद सरकार ठप्प क्यों हो गयी ॽ

यह सच है नोटबंदी के कारण सब कुछ ठहर गया है। नोटबंदी के बारे में जो कुछ कहा गया उससे उलट परिणाम सामने आने शुरू हो गए हैं।मसलन् यह नहीं कहा गया कि नोटबंदी से कामगारों को बेकारी का सामना करना पड़ेगा,खासकर दैनिक मजूरी करने वालों को तत्काल रोजी-रोटी से हाथ धोना पडेगा।बाजार में सन्नाटा पसर जाएगा।बैंकिंग के नियमित कामकाज बंद हो जाएंगे।आयकर विभाग के नियमित काम ठप्प हो जाएंगे।पुराने नोटों का कालाधन धंधा शुरू हो जाएगा,मुद्रा दलालों की चाँदी ही चाँदी होगी।निर्माण कार्य,विकास कार्य,सरकारी योजनाओं का कार्यान्वयन ठप्प हो जाएगा।

नोटबंदी लागू करने के साथ यह कहा गया इससे काले धन पर रोक लगेगी।लेकिन व्यवहार में ठीक उलटा हुआ है।व्यवहार में मुद्रा दलालों ने बड़ी मात्रा में बैंकरों की मदद से करोड़ों रूपये का धंधा किया है।अभी तक किसी ने यह नहीं बताया कि पुराने खारिज नोट कितनी बड़ी संख्या में मुद्रा दलालों के जरिए बदले गए हैं।अभी तक जन-धन एकाउंट में 21हजार करोड़ रूपये जमा होने की बात केन्द्र सरकार ने मानी है।लेकिन दलालों ने अमान्य मुद्रा में से कितनी मुद्रा को परिवर्तित कराने में मदद की,इसका कोई आंकड़ा सरकार नहीं दे पायी है।जन-धन एकाउंट में अवैध पैसा जमा होने वाली बात भी इसलिए कही जा रही है जिससे ममता बनर्जी और राहुल गांधी को इस मुहिम से जोड़ा जाए,क्योंकि जन-धन एकाउंट में बड़े पैमाने पर पैसा सरकार के मुताबिक बंगाल और कर्नाटक में ही जमा हुआ है।

मोदी सरकार ने सब कुछ जानते हुए भी कि किनके पास अवैध कालाधन कैश में घरों रखा हुआ है उनके यहां घरों पर छापे न मारकर नोटबंदी का रास्ता चुना।सरकार यदि कालेधन के मगरमच्छों को पकड़ना चाहती तो आसानी से पकड़ सकती थी लेकिन उसने यह सब करना जरूरी नहीं समझा,उलटे उनको जन-धन एकाउंट के जरिए धन जमा करने की सुविधा मुहैय्या करायी।जिस तरह अनाप-शनाप तरीकों से जन-धन एकाउंट खुलवाए गए थे उस समय अनेक लोगों ने इन खातों के दुरूपयोग होने की ओर ध्यान खींचा था लेकिन सरकार ने एक भी बात नहीं मानी।आज यही जन-धन एकाउंट कालेधन को बैंकों में जमा करने के सबसे बड़े स्रोत बनकर सामने आए हैं।

नोटबंदी के बाद बैंकों में पारदर्शिता दिखनी चाहिए। केन्द्र सरकार तुरंत अब तक छापे गए और बैंक से दिए गए नोटों का हिसाब सार्वजनिक करे और बताए कि नए नोट कितनी संख्या में जारी किए गए हैं ॽइस समूची प्रक्रिया की गहराई में जाकर जांच करने की जरूरत है।दिलचस्प बात है मोदी सरकार नोटबंदी की नीति लागू होने के बाद एक भी मुद्रा दलाल को अवैध मुद्रा के लेन-देन के चक्कर में पकड़ नहीं पायी है।इसका प्रधान कारण हमारे यहां अवैध,खारिज,फटे-पुराने नोट आदि का कारोबार करने वाले पचासों वर्षों से यह धंधा कर रहे हैं और वैध ढ़ंग से वे अपना काम करते रहे हैं। सवाल यह है जब उनका धंधा वैध है तब आप कालेधन वाले को पकड़ेंगे कैसे ॽ

दूसरा सवाल यह है जुलाई से सितम्बर माह 2016 के बीच में बैंकों में जमा पूंजी में जबर्दस्त उछाल आया है,वे कौन लोग हैं जिन्होंने अचानक बैंकों में बड़ी मात्रा में धन जमा किया है ॽ बैंकों के सारे खातों को खंगालने की जरूरत है, साथ ही राजनीतिक दलों के खातों को भी खंगालने की जरूरत है। इस अवधि के बीच में जिन लोगों ने पांच लाख ,दस लाख,पचास लाख या उससे ऊपर धन जमा किया है उन लोगों कि शिनाख्त की जानी चाहिए,उनसे आय के स्रोतों की जानकारी देने के लिए कहा जाना चाहिए।इसके अलावा दो लाख से ऊपर के गहने खरीदने वालों की जांच हो।खासकर उन लोगों की जिन्होंने हठात् 8नवम्बर के बाद से महंगे दाम पर सोना खरीदा है, विगत 15दिनों में सोना खरीदने वालों के नाम तो सरकार जारी कर ही सकती है।यह कैसे संभव है कि जिन लोगों ने पहले सोना नहीं खरीदा अचानक 8नवम्बर की 8बजे की घोषणा के बाद ही सोना खरीदा ! उन कंपनियों और ठेकेदारों की भी खोज की जाए जिन्होंने एडवांस में अपने मजदूरों को कई महिने की पगार दे दी और अपना कालाधन सफेद कर लिया। ये बातें उस गोरखधंधे की एक झलक देती हैं जो नोटबंदी के नाम पर विगत 15 दिनों से हो रहा है और मोदी सरकार की इसे रोकने में कोई दिलचस्पी नजर नहीं आती,उलटे हुआ यह है कि नोट बंदी के बाद सरकार के सभी विभाग ठप्प हो गए हैं। नोटबंदी को यदि अचानक लागू करना था तो सरकारी विभाग ठप्प क्यों हो गए ॽ







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