रविवार, 27 नवंबर 2016

फिदेल की औरतें और चंडूखाने के चंडूबाज


            हिन्दू फंडामेंटलिस्टों और समाजवाद विरोधियों का जनप्रिय धंधा है चरित्र-हनन अभियान चलाना। पहले ये लोग स्वायत्त ढ़ंग से यह काम करते थे, लोकल थे,लेकिन मोदी के उभार के बाद हिन्दू फंडामेंटलिस्टों ने भी तालिबानियों की तरह साइबर तरक्की की है, वे अब लोकल नहीं रहे,साइबर में आते ही ग्लोबल हो गए हैं। हिन्दू फंडामेंटलिस्टों का फेसबुक पर प्रिय धंधा है कम्युनिस्टों के खिलाफ मिथ्या प्रचार करना,समाजवाद के बारे में,समाजवादी नेताओं और विचारकों के बारे में कपोल-कल्पित कहानियां प्रचारित-प्रसारित करना।ये सल में चंडूबाज हैं।

फिदेल कास्त्रो की मौत के बाद सारी दुनिया में फिदेल के चरित्र-हनन की आंधी चल रही है।इस आंधी में अनेक रंगत के लोग शामिल हैं,इनमें जेएनयू के पुराने प्रतिक्रियावादी और मोदीभक्त भी शामिल हैं।ये लोग जब जेएनयू में पढ़ते थे,तब भी इनको समाजवाद और साम्यवाद से एलर्जी थी,आज भी है,कहने को ये शिक्षित हैं,लेकिन साम्यवाद को लेकर ये लोग किताब,विचार,विमर्श,तथ्य और सत्य किसी से संबंध नहीं रखते,सिर्फ चंडूबाजों की तरह फेसबुक पर लिख रहे हैं।इनके अलावा अनेक आरएसएस के सक्रिय कार्यकर्ता भी हैं जो आए दिन अपनी साम्यवाद विरोधी चंडू आवाजें सुनाते रहते हैं। हाल में इन लोगों ने फिदेल कास्त्रो के निजी जीवन को लेकर घटिया किस्म की चंडूखाने की खबरें प्रसारित की हैं।इनमें कोई सच्चाई नहीं है।

यह सच है फिदेल कास्त्रो की निजी जिंदगी के बारे में दुनिया बहुत कम जानती है।स्वयं जिन परिस्थितियों में कास्त्रो जैसे क्रांतिकारी काम करते रहे हैं उसमें सब कुछ सार्वजनिक करके रखकर सत्ता चलाना बहुत ही मुश्किल काम है,खासकर जब सामने सीआईए और बहुराष्ट्रीय मीडिया घराने जहर उगलने के लिए खड़े हों। इस स्थिति से निबटने का सबसे बेहतर तरीका यही होता कि स्वयं कास्त्रो अपने परिवार,पत्नी,बच्चे,माँ-बाप,भाई आदि के बारे में स्वयं ही कुछ लिखते,इससे विभ्रम पैदा नहीं होता।

मेरा मानना है क्रांतिकारियों को अपने परिवार और परिवारीजनों के बारे में स्वयं लिखना चाहिए,इससे तथ्य और सत्य के बीच किसी तरह के विभ्रम की संभावनाएं नहीं रहतीं।इसके बावजूद यह सच है कि फिदेल कास्त्रो अनुशासित क्रांतिकारी थे।निजी और सार्वजनिक जीवन में औरतों के प्रति उनके मन में गहरा सम्मान था और समानता का भाव था।इस नजरिए को क्यूबा के सामाजिक यथार्थ की रोशनी में देखना चाहिए,न कि सीआईए के प्रचार अभियान के नजरिए से।

सवाल यह है क्यूबा में क्रांति के पहले औरतों का जीवन स्तर क्या था और आज क्या है ॽ अथवा फिदेल कास्त्रो के जमाने में क्या था ॽ जो फिदेल की 25हजार रखैलों का फेसबुक पर बार-बार जिक्र कर रहे हैं वे यह नहीं बताते कि उनकी सूचना का स्रोत क्या है ॽ उलेखनीय है सीआईए के फिदेल के खिलाफ जब सारे मिथ्या प्रचार अभियान धराशायी हो गए तब अंतिम अस्त्र के रूप में 25हजार रखैलों की खबर को चंडूबाजों ने मीडिया में प्रसारित किया।

क्यूबा और फिदेल पर बातें करते समय यह ध्यान रखें कि अमेरिका में एक बहुत बड़ा तंत्र है जिसको फिदेल और क्यूबा के खिलाफ मनगढ़ंत कहानियां गढ़ने के लिए ही अरबों रूपये दिए जाते हैं। इन मनगढ़ंत कहानियों को सबसे पहले सीआईए के चंडूबाज तैयार करते हैं और उसके बाद सारी दुनिया में मीडिया एक ही झटके में प्रचारित-प्रसारित कर देता है। फिदेल की 25 हजार रखैलों की कहानी इसी सीआईए के कारखाने की देन है।इस कहानी का जन्मस्थान है मियामी।

ध्यान रहे फिदेल की मौत के बाद फिदेल के किलाफ सबसे ज्यादा घृणाभरे जुलूस और नारे मियामी में लगे हैं।मियामी उन तमाम क्यूबाईयों का बसेरा है जो क्यूबा को छोड़कर चले आए या फिर जिनके क्यूबा के प्रशासन से मतैक्य नहीं था या फिर जिनको क्यूबा में मानवाधिकार हनन नजर आ रहा था,इस तरह के लोगों को अमेरिका ने क्रांति के बाद के समय से ही हर स्तर पर प्रलोभन देकर प्रोत्साहित किया और उनको फिदेल और क्यूबा की क्रांति के खिलाफ प्रचार के औजार की तरह इस्तेमाल किया। सीआईए किस मनगढ़ंत कहानियां बनाता रहा है इस पर फिर कभी चर्चा करेंगे।





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