मंगलवार, 29 नवंबर 2016

नंगे का अर्थशास्त्र

         मोदीजी ने जब से नोटबंदी लागू की है,उसने हम सबके अंदर के डरपोक और अज्ञानी मनुष्य को एकदम नंगा कर दिया है।कहने के लिए हम सब पढ़-लिखे,शिक्षित लोग हैं लेकिन हम सबमें सच को देखने के साहस का अभाव है।सच कोई आंकड़ा मात्र नहीं होता,सच तो जीवन की वास्तविकता है और जीवन की वास्तविकता या यथार्थ को तब ही समझ सकते हैं जब जनता के जीवन को अपने मन,सुख और वैभव को मोहपाश से मुक्त होकर नंगी आंखों से देखें।

हम सबमें एक बड़ा वर्ग है जो मान चुका है कि मोदीजी अच्छा कर रहे हैं,कालेधन पर छापा मार रहे हैं,कालाधन सरकार के पास आएगा तो सरकार सड़क बनाएगी ,स्कूल खोलेगी,कारखाने खोलेगी,बैंकों से घरों के लिए सस्ता कर्ज मिलेगा,महंगाई कम हो जाएगी,हर चीज सस्ती होगी,सब ईमानदार हो जाएंगे,चारों ओर ईमानदारी का ही माहौल होगा,इत्यादि बातों को आम जनता के बहुत बड़े हिस्से के दिलो-दिमाग में बैठा दिया गया है,अब जनता इंतजार कर रही है कि कालेधन की मुहिम पचास दिन पूरे कर ले,फिर हम सब ईमानदारी के समुद्र में तैरेंगे ! ये सारी बातें फार्मूला फिल्म की तरह आम जनता के बीच में संप्रेषित करके उनको मोदी-अफीम के नशे में डुबो दिया गया है।

तकरीबन इसी तरह का नशा एक जमाने में नव्य-आर्थिक उदारीकरण की नीतियों को लागू करते समय सारे मीडिया ने हम सबके मन में उतारा था,वह नशा कुछ कम हो रहा था कि अचानक मोदी अफीम के नशे में जनता को फिर से डुबो दिया गया है। हम विनम्रतापूर्वक कहना चाहते हैं जो नीति जनता के विवेक का अपहरण करके लागू की जाती है वह कभी भी जनहित में नहीं हो सकती। जनता के विवेक को दफ्न करके मोदीजी जिस नीति को लागू कर रहे हैं वह सारे देश के लिए समग्रता में विध्वंसक साबित होगी।

फिदेल कास्त्रो ने ऐसे ही नशीले माहौल को मद्देनजर रखकर कहा था ,´ हममें से जो विद्वान नहीं हैं उनको भी साहस की खुराक चाहिए। दुनिया में जो कुछ हो रहा है उसे अधिकाधिक जान लेने की कोशिश के बावजूद कभी-कभी हमारे पास यह जानने के लिए समय नहीं होता कि हम जिस अद्वितीय इतिहास प्रक्रिया से गुजर रहे हैं उसके बारे में क्या नए तथ्य और विचार उभरकर सामने आ रहे हैं और हमारे सामने खड़ा अनिश्चित भविष्य कैसा होगा? ´

कालेधन को बाहर निकालने के प्रयास पहले भी विभिन्न सरकारों ने किए हैं,मोदीजी इस मामले में नया कुछ नहीं कर रहे। उन्होंने जो नया काम किया है वह है नोटबंदी।नोटबंदी से कालेधन वालों पर कोई खास असर नहीं होगा।यही वजह है कि उन्होंने नोटबंदी के 20दिन बाद अचानक स्वैच्छिक आय घोषणा योजना-2 की घोषणा की है उसके लिए आयकर कानून में कुछ संशोधन सुझाए हैं। ये संशोधन लागू हो जाने पर भी कालेधन पर कोई अंकुश नहीं लगेगा और कालाधन बाहर नहीं आएगा।

इस प्रसंग मे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था कम से कम कालेधन से नहीं चल रही,कालाधन समानान्तर अर्थव्यवस्था जरूर है लेकिन देश की मूल अर्थव्यवस्था नहीं है।मोदी सरकार आने के बाद सबसे बड़ी समस्या यह हुई है कि मूल अर्थव्यवस्था पंगु हो गयी है।कहीं पर कोई परिणाम नजर नहीं आ रहे।बेकारी और विकास में कोई परिवर्तन नहीं आया।इससे ध्यान हटाने के लिए मोदी सरकार ने नोट नीति की घोषणा की और 500 और 1000 के नोट अमान्य घोषित कर दिए। अब समस्या यह है वे इस नोटबंदी पर सवाल उठाने वालों को देशद्रोही,कालेधन के समर्थक आदि के तमगे लगा रहे हैं। हम जानना चाहते हैं यह कौन सा अर्थशास्त्र है जिसमें सवाल नहीं खड़े कर सकते ॽ

मोदीजी ने जो नोट नीति बनायी है उस पर समानता के आधार पर विभिन्न मतों के अनुसार सवाल उठाने की इजाजत सरकार दे, नीति पर बहस की बजाय सरकार और मीडिया मिलकर नोट नीति के खिलाफ सवाल खड़े करने वालों को अपमानित कर रहे हैं ,सवाल उठाने को ही देशद्रोह और कालेधन की हिमायत कह रहे हैं।यह तो देश की प्रतिभा और जनतांत्रिक मतभिन्नता का अपमान है,यह तानाशाही है और अल्पविवेक का शासन है।

मोदीजी को मालूम होना चाहिए भारत में अर्थशास्त्र की बड़े पैमाने पर पढायी होती है और हमारे यहां सभी किस्म के मत पढाए जाते हैं,विभिन्न किस्म के मतों का अध्ययन करके आने वाले लोगों की यह पहली जिम्मेदारी बनती है कि वे नोट नीति पर खुलकर बोलें,विभिन्न राजनीतिक दलों की भी यह जिम्मेदारी है वे अपने मतों को खुलकर व्यक्त करें। मीडिया और सरकार दोनों मिलकर मतविभन्नता का गला घोंटकर खत्म कर देना चाहते हैं।यह पारदर्शिता का हनन है।



मोदी-मीडिया मिलकर प्रचार कर रहे हैं कि नीति के मामले में हर हालत में अनुशान पैदा करने की जरूरत है,नीति से विचलन और मत-भिन्नता मोदी के लेखे अनुशासनहीनता है,यह देशद्रोह है,कालेधन की सेवा है।इस तरह के तर्क बुनियादी तौर पर फासिस्ट तर्क हैं।किसी भी नीति पर बहस के लिए अनुशासन की शर्त लगाना गलत ही नहीं अ-लोकतांत्रिक भी है।पारदर्शिता और खुलेपन के लिए अनुशासन की विदाई करना पहली जरूरत है।सरकार ने जो नीति जारी की है तो उससे संबंधित सूचनाएं भी जारी करे,नीति पर विभिन्न दृष्टियों से बहस हो,विभिन्न विचारों की रोशऩी में नीति को परखा जाए,विभिन्न कसौटियों पर कसा जाए,यह किए बिना नोट नीति को सीधे लागू करना तानाशाही है। सब जानते हैं मीडिया पर सरकार का संपूर्ण वर्चस्व है और वह इस वर्चस्व का खुला दुरूपयोग कर रही है।नोट नीति लागू करते समय सरकार की शर्त है हमारी बात मानो,नहीं मानोगे तो देशद्रोही कहलाओगे।यह बुनियादी नजरिया लोकतंत्र विरोधी है।

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