बुधवार, 1 सितंबर 2010

इंटरनेट पर हिन्दी वालों में भाषायी विभ्रम

    समझ में नहीं आता कहां से बात शुरू करूँ,शर्म भी आती है और गुस्सा भी आ रहा है। वे चाहते हैं संवाद करना लेकिन जानते ही नहीं हैं कि क्या कर रहे हैं,वे मेरे दोस्त हैं। बुद्धिमान और विद्वान दोस्त हैं। वे तकनीक सक्षम हैं । किसी न किसी हुनर में विशेषज्ञ हैं। उनके पास अभिव्यक्ति के लिए अनगिनत विषय हैं।
    वे हिन्दी जानते हैं । हिन्दी अधिकांश की आजीविका है। वे कम्प्यूटर भी जानते हैं। वे यह भी जानते हैं कि गूगल में अनुवाद की व्यवस्था है। इसके बाबजूद वे इंटरनेट पर हिन्दी फॉण्ट में नहीं लिखते अपनी अभिव्यक्ति को अंग्रेजी में हिन्दी के जरिए व्यक्त करते हैं। मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं ? लेकिन मैं विनम्रता के साथ हिन्दी भाषी इंटरनेट यूजरों से अपील करना चाहता हूँ कि वे नेट पर हिन्दी में लिखें। इससे नेट पर हिन्दी समृद्ध होगी।
    नेट पर हिन्दीभाषी जितनी बड़ी मात्रा में रमण कर रहे हैं और वर्चुअल घुमक्कड़ी करते हुए फेसबुक और अन्य रूपों में अपने को अभिव्यक्त कर रहे हैं यह आनंद की चीज है। मैं साफतौर पर कहना चाहता हूँ कि हिन्दी का अंग्रेजी के जरिए उपयोग उनके लिए तो शोभा देता है जो हिन्दी लिखने में असमर्थ हैं। लेकिन जो हिन्दी लिखने में समर्थ हैं उन्हें हिन्दी फॉण्ट का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
     यूनीकोड फॉण्ट की खूबी है वह यूजर को अंधभाषाभाषी नहीं बनाता। आप ज्योंही यूनीकोड में गए आपको भाषायी फंडामेंटलिज्म से मुक्ति मिल जाती है। हिन्दी के बुद्धिजीवी, फिल्म अभिनेता-अभिनेत्री,साहित्यकार और पत्रकार नेट पर हिन्दी में ही लिखें तो इससे हिन्दी की अंतर्राष्ट्रीय ताकत बढ़ेगी।
    अंग्रेजी में हिन्दी लिखने वाले नेट यूजर यह क्यों सोचते कि उन्हें जो हिन्दी में नहीं पढ़ सकता वह गूगल से अनुवाद कर लेगा। आप ईमेल हिन्दी में लिखें,फेसबुक पर हिन्दी में लिखें,ब्लॉग पर हिन्दी में लिखें।
    यूनीकोड फॉण्ट लोकतांत्रिक है। यह सहिष्णु बनाता है। मित्र बनाता है। दूरियां कम करता है। संपर्क-संबंध को सहज बनाता है। इस फॉण्ट के इस्तेमाल का अर्थ है कि आप अपनी अभिव्यक्ति को विश्व भाषा संसार के हवाले कर रहे हैं। यूनीकोड फॉण्ट मित्र फॉण्ट है आप कृपया इसका इस्तेमाल करके तो देखें आपकी अभिव्यक्ति की दुनिया बदल जाएगी।
   दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि भाषा को तकनीक के सहारे नहीं बचा सकते। कुछ लोग सोचते हैं कि भाषा को गूगल के अनुवाद के सहारे हम बचा लेंगे तो वे गलत सोचते हैं। भाषा को सीखकर और लिखकर ही बचा सकते हैं। भाषा अनुवाद की चीज नहीं है। अनुवाद से भाषा नहीं बचती।
    मुझे यह खतरा महसूस हो रहा है कि हिन्दी का नेट यूजर यदि हिन्दी में लिखना नहीं सीखता या उसका व्यवहार नहीं करता तो एक समय के बाद हिन्दी को पढ़ाने वाले भी नहीं मिलेंगे। हिन्दी हमारी भाषा है और यह गर्व की बात है कि हम हिन्दी में लिखते हैं। हमारी अंग्रेजियत हिन्दी के प्रयोग से कम नहीं हो जाती। अंग्रेजियत में जीने वाले लोग अंग्रेजी में लिखें लेकिन कृपा करके हिन्दी को अंग्रेजी में न लिखें। यह भाषा का अपमान है। उसकी अक्षमता की तरफ इशारा है। नेट पर हिन्दी तब तक अक्षम थी जब तक हिन्दी का यूनीकोड फॉण्ट नहीं था लेकिन आज ऐसा नहीं है। यूजर जब अपनी स्वाभाविक भाषा,परिवेश की भाषा का प्रयोग भ्रष्ट ढ़ंग से करता है तो अपने भाषायी विभ्रम को प्रस्तुत करता है। अंग्रेजी में हिन्दी लिखना भाषायी विभ्रम है। भाषायी विभ्रम निजी अस्मिता की मौत है। हम गंभीरता से सोचें कि हम भाषायी विभ्रम के सहारे क्यों मरना चाहते हैं ?      



2 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. कुमार विश्वबन्धु1 सितंबर 2010 को 12:10 pm बजे

    इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...