रविवार, 22 जून 2014

दिल्ली विश्वविद्यालय का खेल - मोदी सरकार की पहली पराजय

       विश्वविद्यालय स्वायत्तता अपहरण का एक खेल दिल्ली में चल रहा है। इस खेल में संयोग से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ,माकपा और भाजपा एक ही मंच पर आकर मिल गए हैं। इस खेल की खूबी है कि ये तीनों खिलाडी संविधान,अकादमिक स्वायत्तता और बौद्धिक स्वतंत्रता इन तीनों का मखौल उडाने में लगे हैं।

विगत सप्ताह मोदी सरकार आने के बाद यूजीसी ने दिल्ली विश्वविद्यालय को सर्कुलर भेजकर चार साला बीए कोर्स बंद करने का निर्देश दिया ,वह पूरी तरह असंवैधानिक है। यूजीसी इस तरह का आदेश किसी भी विश्वविद्यालय को नहीं दे सकता। सवाल यह है कि यूजीसी ने जब यह कोर्स लागू किया गया उस समय यह राय क्यों नहीं दी ?

यूजीसी सुझाव दे सकती है.आदेश नहीं। यूजीसी के आदेशों की हकीकत यह है कि गुजरात में अभी तक कॉलेज-विश्वविद्यालयों में छठे वेतन आयोग के आधार पर बने वेतनमान लागू नहीं हुए हैं। पश्चिम बंगाल में शिक्षकों का छठे वेतनमान के आधार पर वेतन मिला लेकिन बकाया धन अभी तक नहीं मिल पाया है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो दिए जा सकते हैं। मूल बात यह है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता में हस्तक्षेप करने का कोई हक नहीं है। यहां तक कि संसद को भी हक नहीं है।विजिटर को भी हक नहीं नहीं है। विजिटर या शिक्षामंत्री किसी भी फैसले के एकमहिने के अंदर विरोध करता है तो वह विरोध विचारयोग्य होता है। यदि एक महिने के बाद राय आतीहै तो विचारयोग्य भी नहीं होता।

विश्वविद्यालय के फैसले अकादमिक परिषद लेती है,कार्यकारी परिषद लेती है। शिक्षामंत्री या यूजीसी नहीं । यूजीसी ने दिल्ली विश्वविद्यालय को चारसाला कोर्स को खारिज करने का आदेश देकर अपने संवैधानिक कार्यक्षेत्र का अतिक्रमण किया है। यूजीसी को जबाव देना होगा कि विगत समय में उसने और उसके अधिकारियों ने यही फैसला क्यों नहीं लिया ? क्यों दिविवि को कोर्स लागू करने को कहा ? क्या उन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई ? हमारे शासकों को नौकरशाही को उपकरण बनाकर काम करने से बाज आना चाहिए।

चारसाला कोर्स की गुणवत्ता और गुणहीनता, संवैधानिकता और असंवैधानिकता,प्रासंगिकता या अप्रासंगिकता पर बहस का समय खत्म हो चुका है क्योंकि कोर्स लागू हो चुका है। हजारों विद्यार्थी एक साल से पढ़ रहे हैं, नए दाखिले होने जा रहे हैं। रिव्यू ही करना है तो पहले बैच के निकलने पर रिव्यू करो। लेकिन यह काम अकादमिक परिषद करेगी न कि यूजीसी। चारसाला कोर्स प्रासंगिक है या नहीं यह तय करने का काम विश्वविद्यालय का है। यह कोर्स तय करते समय बहुमत से तय पाया गया कि कोर्स आरंभ किया जाय।सभी इस फैसले को मानने को बाध्य हैं। इस मामले में माकपा-भाजपा की हठधर्मिता विलक्षण है।

शिक्षक संघ इसके विरोध में था अनेक छात्रसंगठन भी विरोध में थे,कई राजनीतिक पार्टियां भी विरोध में थीं। लेकिन विश्वविद्यालय के फैसले अकादमिक परिषद में होते हैं और दिविवि की अकादमिक परिषद ने पक्ष-विपक्ष पर विचार करने के बाद यह कोर्स आरंभ किया। शिक्षा के फैसले सड़कों पर जुलूसों और धरना स्थलों या फेसबुक पर नहीं होते।

यह मसला कईबार यूजीसी में भी गया,अनेक ज्ञानीलोगों ने यूजीसी से लेकर शिक्षामंत्री,प्रधानमंत्री,संसद और राष्ट्रपति तक अपनी राय भेजी लेकिन कहीं से भी यह नहीं कहा गया कि दिविवि यह कोर्स बंद कर दे। सबने कहा यह विश्वविद्यालय का आंतरिक मामला है बाहरी राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

लेकिन भाजपा को जनादेश मिलतेही पहला हमला दिविवि की स्वायत्तता पर हुआ जो निंदनीय है। भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में चारसाला बीए कोर्स को खत्म करने का वायदा किया गया है। मोदी के सत्तारुढ़ होते ही निहित स्वार्थी लोग असंवैधानिक हथकंडों का इस्तेमाल करके यह कोर्स बंद कराना चाहते हैं जबकि इस मामले में नियमानुसार दिविवि प्रशासन एकदम सही मार्ग का अनुसरण कर रहा है। कल के अकादमिक परिषद के फैसले के बाद यह साफ हो चुका है कि भाजपा और माकपा के शिक्षक संगठनों के पास अकादमिक परिषद में समर्थन का अभाव है। मात्र 10 शिक्षक उनके पक्ष में थे बाकी सभी ने विवि के पक्ष का समर्थन किया। यह यूजीसी और प्रकारान्तर से भाजपा की पहली बड़ी पराजय है।यह मोदी सरकार के स्वायत्तता अपहरण अभियान की पहली बड़ी हार है।

इस प्रसंग में उल्लेखनीय है कि दिविवि को चारसाला कोर्स लागू करने पर पिछली सरकार का पूर्ण समर्थन था,संसद से लेकर पीएम तक,यूजीसी से लेकर शिक्षामंत्री तक सबने पिछले साल हस्तक्षेप करने से मना किया और दिविवि प्रशासन का साथ दिया। मोदी सरकार को पुरानी सरकार के इस फैसले का आदर करना चाहिए।



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