सोमवार, 30 जून 2014

कोलकाता और मिथ भंजन

       
मैं पहलीबार कोलकाता एसएफआई कॉफ्रेंस में शामिल होने आया था। संभवतः1981-82 की बात है।अनेक मित्र थे जो जेएनयू से इस कॉफ्रेस में डेलीगेट के रुप में आए थे । मुझे याद है कॉफ्रेंस को बीच में आधा दिन का अवकाश करके डेलीगेट को फुटबाल का मैच दिखाने की व्यवस्था की गयी। मैं और अजय ब्रह्मात्मज दोनों मैच देखने की बजाय धर्मतल्ला घूमने चले आए,हमने मैच नहीं देखा। एक मजेदार हादसा हुआ और उसने कोलकाता और वाम राजनीति का पहलीबार एक मिथ तोड़ा। मिथ यह था कि वामदल जहां होते हैं वहां समाज बहुत ही सुंदर और नैतिक दृष्टि से अव्वल होता है।

हम दोनों धर्मतल्ला में मद्रास होटल के आसपास नीचे घूम रहे थे अचानक एक दलाल आया और मेरे कान में धीरे कहने लगा 'छोरी चाहिए छोरी चाहिए'-'चोरी का माल चाहिए ,चोरी का माल चाहिए' , वह लड़कियों का सप्लायर था। अजय मुझसे थोड़ा दूर मूडी बनवा रहा था, मैं घबड़ाकर उसके पास गया और कहा कि सामने जो आदमी देख रहे हो वो यह सब कह रहा है, अजय ने कहा वो मुझसे क्यों नहीं कहता,कुछ देर बाद वो आदमी फिर पास से गुजरा और वही पंक्तियां दोहरा गया। इस घटना ने पहलीबार वाम का मिथ तोड़ा।

ताकतवर वाम आंदोलन के होते हुए सड़क पर सरेआम औरतों को वेश्यावृत्ति कराने वाले छुट्टा घूम रहे थे,इस धंधे में शामिल औरतें वहीं कहीं पर मौजूद थीं,यह हमारे लिए चौंकाने वाली चीज थी। सड़क पर सरेआम धंधेबाजी बिना पुलिस की मदद के संभव नहीं थी, साथ ही कोलकता में जहां पर हर गली-मुहल्ला वाम के दखल और निगरानी में था वहां पर इस तरह का कांड़ निरंतर धंधे के रुप में चल रहा हो तो इसमें राजनीतिक दलों के संरक्षण से भी इंकार नहीं किया जा सकता।



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