शनिवार, 6 अगस्त 2016

नामवरजी के हिमायती राजनाथ सिंह-महेश शर्मा के बयानों पर चुप क्यों हैं ॽ

        नामवरजी की 28जुलाई के फैसले को जायज ठहराना किसी भी तर्क से उचित नहीं है।इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में संघियों के जरिए अपना जन्मदिन मनवाकर नामवरजी ने अपने साम्प्रदायिकताविरोधी लेखन को मोदीजी के चरणों में समर्पित कर दिया है।आज ´सत्याग्रह´बेवसाइट पर अपूर्वानंद का लेख पढ़ा।पढ़कर मजा आ गया!!

नामवरजी विद्वान हैं,असाधारण हैं,लेकिन राजनीतिक तौर पर भटक गए हैं।यह बात पहचानने में देरी क्यों हो रही है ॽ नामवरजी की विद्वत्ता कम नहीं हो जाती यदि वे संघियों के साथ जन्मदिन न मनाते ! यह सिर्फ विद्वान का सम्मान नहीं है,यह मोदी सरकार द्वारा अपने लिए कवच-कुण्डल जुटाने की कोशिश है,अफसोस है उनको ये कवच-कुंडल ऐसे व्यक्ति से मिले हैं जो आलोचना में बेमिसाल है, साम्प्रदायिकता विरोध में उसका शानदार रिकॉर्ड रहा है,लेकिन सत्तामोह का भी शानदार रिकॉर्ड रहा है !

मोदीजी की सरकार आज गिर जाए और भविष्य में आने के चांस न हों और केजरीवाल के आने के चांस हों तो नामवरजी उसके हाथों सम्मान लेना पसंद करेंगे! लेकिन अभी उसकी आलोचना करते हैं! लोकसभा चुनाव में उन्होंने केजरीवाल की सीधे आलोचना की थी,यह तय उसी समय हो गया था कि नामवरजी किधर जा रहे हैं !

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के कार्यक्रमों में शिरकत का सवाल प्रमुख नहीं है,सवाल है जन्मदिन किसके साथ मनाएं ॽ क्या फासिस्टों के साथ जन्मदिन मनाने की पहले कोई मिसाल नामवरजी ने कायम की है अथवा भारत में किसी मार्क्सवादी ने ॽ नामवरजी को इस रूप में पेश करना कि वे राजनीतिक चूक नहीं करते ,एकदम गलत है,राजनीति में नामवरजी ने साहित्य के बहाने हमेशा गलत दिशा पकड़ी है और वह दिशा तय हुई है सरकार से!

नामवरजी का राजनाथ सिंह और महेश शर्मा ने जिस तरह अ-सम्मान किया वह सम्मान से भी घटिया है जिसे अभी अपूर्वानंद देख नहीं पा रहे हैं।

नामवरजी हमेशा अपने पाले में रहते हैं,वे संघ में नहीं गए,वे कभी कांग्रेस में नहीं गए,वे कभी वीपी सिंह की पार्टी में भी नहीं गए,लेकिन नामवरजी अपने पाले में ही खड़े रहकर उनके साथ गए।इस समय भी नामवरजी अपने पाले में ही खड़े हैं,सवाल यह है नामवरजी के पाले की कोई राजनीति,लेखकीय नैतिकता आदि भी है या नहीं अथवा उसे भी अवसरवाद के हवाले कर दिया गया है ॽ नामवरजी ने विगत दो साल में जिस तरह अपने पाले की राजनीति परिभाषित की है और आचरण किया है वह स्वयं में प्रमाण है कि नामवरजी के पाले में संघ की राजनीति का असर है।राजनाथ सिंह के मंच से हमले ऐसे नहीं थे जिनका उत्तर नामवरजी नहीं दे सकते थे ,लेकिन उन्होंने उत्तर नहीं दिया।क्योंकि नामवरजी के पाले को आरएसएस ने परिभाषित किया! नामवरजी उस कार्यक्रम (28जुलाई2016)के बाद आज तक नहीं बोले कि राजनाथ सिंह और महेश शर्मा के बयानों पर उनकी क्या राय है,हम जानना चाहते हैं नामवरजी अब तक चुप क्यों हैं ॽ स्वयं अपूर्वानंद भी बताएं कि राजनाथ सिंह और महेश शर्मा के बयान पर उनका मंतव्य क्या है ॽदिलचस्प बात यह है अपूर्वानंदजी को भी इन दोनों मंत्रियों के बयानों में कोई आपत्तिजनक बात नजर नहीं आई ! इसे कहते हैं संघ का अप्रत्यक्ष असर !



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