शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और फेसबुक

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर मंदिरों से मूर्ति औरउत्सव की इमेज वर्षा जिस तरह हो रही है, उसने श्रीकृष्ण को डिजिटल कृष्ण बना दिया है। डिजिटल होने का मतलब आभासी है। आभासी कृष्ण अंतत: जो संदेश देता है - जो डिजिटल है वह अनुपस्थित है। इस तरह की इमेज वर्षा अपील करती है ,जनता को एक्टिव करती है, लेकिन कृष्ण को ज़ीरो बनाती है। कृष्ण का ज़ीरो बन जाना भगवान की डिजिटल त्रासदी है।यह पूँजीवाद की परम विजय की अवस्था है।

श्री कृष्ण को गोपियों में जनप्रिय नायक क्यों बनाया गया ? गोपियों का नायक बनाकर सर्जक असल में किसे चुनौती देता है ?

कृष्ण के साथ गोपियों का संसार सामंतकाल में जुड़ता है। श्रीकृष्ण और गोपियों का प्रेम वस्तुत: सामंती बंदिशें और नियमों का निषेध है।

सवाल यह है इतने ताक़तवर आख्यान को रचने के बाद भी ब्रज के इलाक़े में सामंती मूल्य ध्वस्त क्यों नहीं हुए? आज भी जो जय हो जय हो कर रहे हैं वे सामंती मूल्यों के मोह में क्यों बँधे हैं? यह भक्ति का ग़ैर -यथार्थवादी रूप है।



श्रीकृष्ण कल्पना है ,कल्पना को सत्य बनाने में हमारा समाज महान है।फिर श्रीकृष्ण की कल्पना मनोहर,मनोरंजक और ज्ञान से भरी है।संभवतः खृष्म पहले ऐसे विचारक हैं जो गीता के जरिए विकसित समाज व्यवस्था की परिकल्पना पेश करते हैं।गीता जब लिखी गयी तो उसमें वर्गहीन,आदिम समाज व्यवस्था से आगे बढ़ी हुई नई चातुर्वण्य व्यवस्था की ओर ले जाने का सपना पेश किया गया।यानि आने वाला व्यवस्था के प्रति ऐतिहासिक आकांक्षा व्यक्त की गयी।यह वर्गहीन समाज से वर्गों वाले समाज के रूपान्तरण की दिशा में बड़ा ऐतिहासिक परिवर्तन था।

कृष्ण का चरित्र ग़ैर-परंपरागत है। ग़ैर- परंपरागत चरित्र और आचरण किस तरह सिस्टम में तनाव पैदा कर सकता है , आनंद, प्रेम और युद्ध का नायक बन सकता है यह सीखना चाहिए कृष्ण से।

श्रीकृष्ण पहले विचारकों में हैं जो संसार मिथ्या है ,इस धारणा का खंडन करते हैं,वे कहते है संसार विमुख होकर कोई पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता।निष्काम कर्मयोग उनकी ही देन है,जिसका कालांतर में शासकवर्गों ने जमकर उपयोग किया।लेकिन इस धारणा का प्रगतिशील ताकतों ने नए समाज के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया।

श्रीकृष्ण ऐसा चरित्र है जो भगवान के रूप में कम चरित्र रूप में ज़्यादा लोकप्रिय है।लोकप्रिय कहानियों के ज़रिए सबसे ज्यादा जनप्रिय है।



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