अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की तीन दिन की यात्रा का सारा मीडिया कवरेज देखकर लगता है कि ओबामा को भारत के बारे में कम मालूम है। ओबामा ने अपने भाषणों में सारा ध्यान व्यापारियों,सरकारी संस्थानों,मध्यवर्ग और भारत की विकासशील दशा पर केन्द्रित किया। एक तरह से यह भारत के एक वर्ग विशेष को सम्बोधित यात्रा थी। ओबामा की नजर सारे समय भारत की सभ्यता,उन्नति और विशाल मध्यवर्ग पर टिकी रही । ओबामा बताएं भारत की सभ्यता और उन्नति में किसान की भी कोई भूमिका है या नहीं ?
सवाल उठता है ओबामा को एकबार भी भारत के अन्नदाता किसान की याद क्यों नहीं आयी ? ओबामा को हरितक्रांति की याद आयी लेकिन हरित क्रांति में पिस गए किसान की याद क्यों नहीं आयी ?हरित क्रांति के साथ पंजाब में जो दिक्कतें आयी हैं उनके बारे में उन्होंने एक वाक्य भी नहीं कहा।
बराक ओबामा संभवतः पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जो भारत की इतने व्यापक ऱूप में प्रशंसा करके गए हैं। इसमें सत्य का अंश कम है,प्रौपेगैण्डा ज्यादा है, मिथ्या बातें ज्यादा हैं। ओबामा की वक्तृता से किसान अचानक गायब नहीं था बल्कि सुचिंतित कारणों की वजह से गायब था।
बराक ओबामा जानते हैं नव्य उदारवादी ग्लोबल अमरीकी नीतियों के कारण भारत का किसान सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। उसे विगत 30 सालों में जिस कष्ट ,उत्पीड़न और विस्थापन से गुजरना पड़ा है उसकी पहले कभी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी।
हरित क्रांति के बाद गांवों में तबाही आयी है और गांवों में एक लाख से ज्यादा किसानों मे आत्महत्याएं की हैं और तकरीबन चार करोड़ से ज्यादा लोग गांवों से विभिन्न कारणों की वजह से पलायन करके या विस्थापित होकर महानगरों की ओर आए हैं। हाल के बर्षों में हजारों एकड़ जमीन सेज के नाम पर दी गई है और उससे भी लाखों किसानों को विस्थापन का सामना करना पड़ा है।
पंजाब के जो इलाके हरित क्रांति के कारण हरे-भरे दिखते थे उनमें भयानक प्राकृतिक असंतुलन पैदा हो गया है। गांवों में पानी सैंकड़ों फीट नीचे चला गया है। हरित क्रांति के कारण भारत की भुखमरी कम हुई या बढ़ी यह विवाद का विषय है।
जो लोग कहते हैं हरित क्रांति भारत की महान उपलब्धि है उनसे पूछना चाहिए जिन इलाकों में हरित क्रांति हुई वहां आतंकवादी आंदोलन क्यों पैदा हुआ ? सिख आतंकवादियों को विदेशों में खासकर अमेरिका और कनाडा में शरण किसने दी ? हरित क्रांति का अर्थ महज गेंहूँ -चावल उत्पादन नहीं है उसके साथ और भी बहुत कुछ पैदा हुआ है।
भारत सरकार द्वारा गठित स्वामीनाथन कमीशन के अनुसार आज पंजाब में बड़े पैमाने पर गेंहूँ और चावल पैदा किया जाता है। सारे देश की पैदावार का 50 फीसद हिस्सा इसी राज्य से आता है। उसका असर यह हुआ है कि मिट्टी और पानी की गुणवत्ता में ह्रास हुआ है। पर्यावरण और भूमि की गुणवत्ता में भी ह्रास हुआ है।
आज पंजाब 2.2 करोड़ टन का योगदान कर रहा है। इसका लगभग 50 प्रतिशत बफर भंडार के लिए अधिप्राप्त किया जाता है। पंजाब के आम किसानों में गरीबी और ऋणग्रस्तता बढ़ी है। पंजाब में भूजल का स्तर कम हो जाने के कारण कृषि के लिए पानी जुटाने में किसान को ज्यादा खर्चा करना पड़ रहा है। उसकी उपज के सही दाम नहीं मिल रहे।
दूसरी ओर नव्य उदारीकरण ने किसानों की सब्सीडी घटा दी है। पंजाब में सूखे चारे की कमी के कारण पशुओं के पालन-पोषण पर बुरा असर हुआ है। हरित क्रांति के नाम पर राज्य के प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण का भयानक दोहन किया गया। इसके कारण प्राकृतिक असंतुलन पैदा हुआ है। स्वामीनाथन कमीशन ने रेखांकित किया है पंजाब के 45 प्रतिशत किसान आर्थिक तौर पर पूरी तरह अक्षम हैं उन्हें ऋण न मिले तो वे खेती नहीं कर सकते। वे असल में ऋण पर गुजारा करते हैं और ऋण के आधार पर ही खेती करते हैं। आप ही बताएं ओबामा यह उन्नति है या अवनति ?
स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट में पंजाब के सरकारी प्रतिनिधियों का बयान भी शामिल है। उसमें पंजाब के अधिकारियों ने बताया है कि पंजाब के किसानों के सभी कर्ज भी माफ कर दिए जाएं तब भी 45 प्रतिशत किसान कुछ भी करने में सक्षम नहीं हैं। पंजाब के किसानों में उच्चतर शिक्षा का अभाव है जिसके कारण वे अन्यत्र किसी कामकाज में भाग नहीं ले पाते। कमीशन ने माना है सन् 2001-05 के बीच में पंजाब के किसानों की आय में गिरावट आयी है।
‘नेशनल सेंपिल सर्वे’ के अनुसार भारत में 72 फीसद गांव हैं जहां पर प्राथमिक स्कूल हैं।66 प्रतिशत गांवों में पूर्व-प्राथमिक स्कूल है। मात्र 10 प्रतिशत गांवों में औषधि की दुकान है। मात्र 20 प्रतिशत गांवों में प्राइवेट क्लिनिक या डाक्टर है।
एक किलोमीटर के अंदर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र मात्र 46 प्रतिशत गांवों में है। डाकघर मात्र 22 प्रतिशत गांवों में है। नलके का पानी मात्र 18 प्रतिशत गांवों में सप्लाई किया जाता है।किसी खास किस्म की नाली की व्यवस्था 30 प्रतिशत गांवों में है।
ओबामा साहब आप जानबूझकर हरित क्रांति के नाम पर झूठ बोल रहे हैं। नव्य उदारीकरण के दौर में भारत में पशुधन और फसल उत्पादन के क्षेत्र में निरंतर गिरावट आई है। सन् 1996-97 से किसान की वास्तविक फार्म आय में कोई वृद्धि नहीं हुई है। कृषि आय की क्रयशक्ति,सतत कीमतों पर जीडीपी की तुलना में भी कम हो गई है। फसलों का उत्पादन घटा है।
बराक ओबामा साहब आप भारत की ज्ञानक्रांति से बड़े अभिभूत हैं । हम समझ नहीं पा रहे हैं आपको असली भारत क्यों नजर नहीं आया ? आप सिर्फ मध्यवर्ग को ही क्यों देख रहे हैं ,आई टी कम्पनियों और उद्योग की तरक्की को ही क्यों देख रहे हैं ? आपके भाषणों का भारत के सत्य और ज्ञानसमाज के सत्य से कोई संबंध नहीं है। आपके भाषण जनसंपर्क कंपनियों के इशारे पर लिखे गए स्टीरियोटाईप भाषा और भावबोध से भरे हुए थे। अमेरिका में वे बिकते हों,भारत में नहीं बिकते।
हम कितने ज्ञान सम्पन्न हैं यह बात आपको कुछ तथ्यों की रोशनी में समझ में आ जाएगी। आज भारत में सबसे अधिक संख्या में अल्प-पोषित बच्चे,महिलाएं और पुरूष हैं। मातृ और भ्रूण अल्प-पोषण के कारण बच्चे जन्म के समय कम भार के पैदा होते हैं ऐसे कम भार वाले बच्चे जन्म के समय मस्तिष्क विकास से बाधित होते हैं जो असमानता का सबसे भयंकर रूप है। इसके बाबजूद आपने भारत को ज्ञान की महाशक्ति के रूप में चित्रित किया इससे यही लगता है आपको भारत के बारे में सही जानकारी नहीं दी गयी।
कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन ने अमेरिकी नव्य उदारीकरण की नीतियों की सामाजिक परिणतियों को ध्यान में रखकर कहा है भारत को आज कृषि विकास के शब्दों में कहें तो ‘भीख का कटोरा’ उठाना होगा । जहां भूख रहती है वहां शान्ति कायम नहीं रह सकती।
इस सामयिक आलेख के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंAchha Aalekh
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग की समीक्षा आज हिन्दुस्तान मे भी देखी। बधाई।
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