अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा का मीडिया तूफान थम चुका है। इस यात्रा के कवरेज पर जो चैनल उछल रहे थे कम से कम वे अब शांति से बैठकर अपनी समीक्षा जरूर कर लें। ओबामा यात्रा के कवरेज से भारत की कमजोर टीवी पत्रकारिता उजागर हुई है। यह तथ्य सामने आया है कि भारत के चैनल किसी भी गंभीर विश्व समस्या या किसी बड़े विश्वनेता की यात्रा का संतुलित कवरेज प्रसारित करने में पूर्णतः असमर्थ हैं। वे जिन विषयों पर कवरेज दिखाते हैं उनके बारे में समझदार और जानकार टीवी पत्रकार इन चैनलों के पास नहीं हैं।
मजेदार बात यह है कि जो पत्रकार स्थानीय सनसनीखेज या सामान्य खबरों को कवर कर रहे थे वे ही पत्रकार ओबामा जैसे विश्व नेता की खबरों को कवर कर रहे थे। हम टीवी देखकर समझ सकते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति,अर्थनीति आदि बड़ी समस्याओं पर केन्द्रित समस्याओं के कवरेज के लायक योग्य टीवी पत्रकार अभी भारत के चैनलों के पास नहीं हैं। यह भी तथ्य उभरता है कि भारत के टीवी चैनल कम लोगों से ज्यादा काम कराते हैं।
टीवी पत्रकारों की सामान्य विशेषता है कि वे जो देखते हैं या जो उन्हें देखने के लिए कहा जाता है उसे दिखाकर अपने काम की इतिश्री समझ लेते हैं। इसमें ही वे अपने को महाज्ञानी और मीडिया का तीसमारखाँ समझने लगते हैं। इसके आधार पर ही वे यह दावा भी करते हैं कि उन्होंने फलां-फलां इवेंट को कवर किया था।
सच यह है कि वे किसी भी किस्म का होमवर्क किए बिना मैदान में कूद पड़ते हैं। वे यह मानकर चलते हैं उनके ज्ञान के अभाव की क्षतिपूर्त्ति स्टूडियो में बैठे विद्वान या विशेषज्ञ कर देंगे। उन्हें तो इवेंट के कुछ फोटोग्राफ भेज देने हैं। बाकी काम संपादक का है। टॉक शो में बैठे लोगों का है।
भारतीय चैनलों के द्वारा ओबामा यात्रा कवरेज की बुनियादी कमजोरी यह थी कि रिपोर्टर की खबरों से यह साफ आभास मिल रहा था कि रिपोर्टर भारत-अमेरिकी संबंधों के बारे में कुछ भी नहीं जानते। क्योंकि कवरेज से मसले पैदा कम हो रहे थे। इसके विपरीत टॉक शो के जरिए मसले बनाने की कोशिश की जा रही थी। अधिकतर मामलों में घटनास्थल से भेजी टीवी रिपोर्ट और टीवी टॉक शो के बीच कोई संबंध नहीं था। इसका सबसे बढ़िया नमूना था ‘टाइम्स नाउ’ चैनल का 6 नवम्बर 2010 को प्राइम टाइम में किया गया तथाकथित एक्यक्लूसिव सैन्य एक्सपोजर। इस ओर ध्यान कम दिया गया कि किन समस्याओं पर ओबामा यात्रा के दौरान वास्तव में बातें होंगी और उन समस्याओं की वस्तुगत पृष्ठभूमि क्या है ?भारत-अमेरिका का अब तक नीतिगत क्या रूख रहा है ? चैनल वाले यह मानकर चल रहे थे कि दर्शक पृष्ठभूमि के बारे में जानते हैं।
सीएमएस मीडिया लैब के अनुसार ओबामा की तीन दिवसीय यात्रा को सबसे दज्यादा कवरेज दिया गया। प्राइमटाइम शो में अब तक इतना व्यापक कवरेज किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष को नहीं दिया गया। लैब ने 1-8 नवम्बर और 6-8 नवम्बर 2010 के बीच की अवधि में आजतक,सीएनएन-आईबीएन,डीडी न्यूज,स्टार न्यूज,जी न्यूज और एनडीटीवी 24x7 चैनलों के कवरेज का सर्वे किया है। इस सर्वे से पता चलता है कि इस अवधि में इन चैनलों ने अपने प्राइमटाइम का 85-90 प्रतिशत समय ओबामा की यात्रा पर खर्च किया। ओबामा की 6-8 नवम्बर की यात्रा को कुल मिलाकर 2410 मिनट दिए गए जो इससे पहले आए राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की यात्रा को दिए गए समय से 70 फीसदी ज्यादा है। बुश की यात्रा को 1392 मिनट कवरेज मिला था। ओबामा की यात्रा की अवधि में टीवी चैनलों ने रिकार्ड़ तोड़ कवरेज दिया। इस दौरान 207 न्यूज स्टोरी को 845.4 मिनट और 49 विशेष कार्यक्रमों को 1565 मिनट दिए गए।
नवम्बर 1-8 के बीच में टीवी चैनलों ने 309 न्यूज स्टोरियां दिखाईं जिन्हें 1105 मिनट मिले और 64 विशेष कार्यक्रमों को 1892 मिनट दिए गए। इनमें सीएनएन -आईबीएन ने सबसे ज्यादा 636 मिनट,एनडीटीवी 24x7 ने 625 मिनट,जी न्यूज 575 मिनट,डीडी न्यूज 478 मिनट,आजतक 376 मिनट और स्टार न्यूज ने 307 मिनट का कवरेज दिया।
राष्ट्रपति बराक ओबामा के कवरेज की समीक्षा करते हुए सीएनएन-आईबीएन पर करन थापर ने एक कार्यक्रम 13 नवम्बर 2010 को दिखाया। इसमें बिजनेस स्टैंण्डर्ड के टी.एन नाइनन ने कहा कि टीवी कवरेज ऑब्सेसिब था। चंदन मित्रा ने कहा कि ज्यादातर टीवी पत्रकारों को अर्थशास्त्र का ज्ञान नहीं है। नाइनन ने कहा आउटसोर्सिंग के मसले पर जिस तरह ओबामा ने यू टर्न लिया था उसकी मीडिया ने आलोचना तक नहीं की। विज्ञापन गुरू प्रहलाद कक्कर ने कहा चीन की तुलना में भारत को अमेरिका से इस यात्रा से कुछ खास नहीं मिला। ‘फाइनेंशियल टाइम्स‘ के जेम्स लेमाण्द ने कहा मीडिया ने ओबामा के प्रति एंग्जाइटी का प्रदर्शन ज्यादा किया है । यह मनलुभावन कवरेज था। नाइनन का मानना था टीवी टॉक शो सस्ते होते हैं और इनमें विश्लेषण का अभाव था। संयुक्ति विज्ञप्ति में रेखांकित मूल मुद्दे को मीडिया पकड़ ही नहीं पाया।संयुक्त विज्ञप्ति में मूल मुद्दा था ईस्ट एशिया। वास्तव मुद्दा था चीन। पाक मूल मुद्दा नहीं था। मीडिया इसे पकड़ ही नहीं पाया। कवरेज गरम था जिससे दर्शकों को व्यस्त रखने में मीडिया सफल रहा।
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