कांग्रेस में इन दिनों जबर्दस्त घमासान चल रहा है। मीडिया उसके ऊपर पर्दा ड़ालने का काम कर रहा है। भ्रष्टाचार के नाम पर नेताओं को हटाकर इस घमासान को भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में तब्दील करने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस में भ्रष्टाचार का सवाल तब ही उठता है जब आंतरिक सांगठनिक संकट सामने हो।
सोनिया-राहुल -मनमोहन सिंह की ‘ईमानदार’ इमेज के जरिए वोटों की आंधी का ख्बाब देखने वाली कांग्रेस भ्रष्टाचार के तूफान में फंस गयी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्शन लेकर ये लोग आम लोगों में यह संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस भ्रष्टाचार विरोधी,संगठित और अनुशासित दल है। लेकिन सच यह है कांग्रेस में आज जितना विभाजन है उतना इतिहास में पहले कभी नहीं था। यह भ्रष्टों का विभाजन है।
सोनिया वगैरह के नेतृत्व का आम लोगों पर क्या असर है ,यह बात कांग्रेस के पास केन्द्र में निजी बहुमत के अभाव से आसानी से समझ सकते हैं। नेतृत्व की ईमानदार छवि कितना आम कांग्रेसी नेता को प्रभावित किए हुए है इसे भी चह्वाण-कलमाणी प्रकरण के जरिए आसानी से देख सकते हैं।
इस प्रसंग में मुक्तिबोध की कांग्रेस पर लिखी टिप्पणी याद आ रही है। मुक्तिबोध ने लिखा था कांग्रेस में जो एकता है वह लूट की एकता है। इसे त्याग की एकता समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। मुक्तिबोध ने कांग्रेस के नेताओं के बारे में लिखा ‘‘ बहुतसों ने सन्त-गीरी का बाना धारकर बुराई से शिष्ट समझौता कर लिया है। वे अजातशत्रु बनने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी ओर समाज के भ्रष्टाचारीवर्ग कांग्रेस में प्रवेश कर चुके हैं।’’
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