शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

नवजागरण नहीं वैकल्पिकधारा के नायक हैं राधामोहन गोकुलजी


             राधामोहन गोकुलजी के बारे में पढ़ते समय यह महसूस हुआ कि वे नवजागरण के नहीं वैकल्पिक विचारधारा के नायक हैं,पता नहीं क्यों हिंदी के अनेक आलोचक उनको नवजागरण से जोड़ते हैं,जबकि नवजागरण तो बुर्जुआजी की विचारधारा का उत्थान है,यह बुर्जुआजी को नायक बनाने का प्रकल्प है,इसके विपरीत राधामोहन गोकुलजी के लेखन से यह तथ्य साफतौर पर निकलता है कि वे बुर्जुआजी को अपना नायक नहीं मानते,वे बुर्जुआ विचारधारा को अपनी स्वाभाविक विचारधारा नहीं मानते,इसके बावजूद हिंदी के आलोचकों ने उनको नवजागरण के साथ जोड़कर पेश किया है जो कि विचारधारा की दृष्टि से सही नहीं है। असल में हिंदी में एक गलत परंपरा चली आ रही है वह परंपरा है हर बेहतर विचार,लेखक,आंदोलन को येन-केन-प्रकारेण नवजागरण से जोड़ने की। यह नवजागरण के सरलीकरण के गर्भ से निकली समझ है। नवजागरण का प्रकल्प बुर्जुआ प्रकल्प है,यह मजदूरवर्ग का प्रकल्प नहीं है।जो लेखक विचारधारात्मक दृष्टि से बुर्जुआजी के नजरिए से भिन्न क्रांतिकारी नजरिया रखते हैं उन्हें नवजागरण के परिप्रेक्ष्य के साथ जोड़कर नहीं देखना चाहिए। समग्रता में देखें तो राधामोहन गोकुलजी के विचारों की यात्रा बुर्जुआ –सुधारवादी विचारों से गुजरती हुई समाजवादी दिशा ग्रहण करती है और वे बुर्जुआ विचारधारा का बहुत गहरा आलोचनात्मक विकल्प निर्मित करते हैं। यही विचारधारात्मक दिशा उनको आस्तिक से नास्तिक,कांग्रेसी से क्रांतिकारी तक बना देती है।

राधामोहन गोकुलजी का जन्म 15दिसंबर 1865 में इलाहाबाद के पास भदरी में हुआ,इनके पूर्वज जयपुर राज्य के खेतड़ी के रहने वाले थे। इनके पिता गोकुलचंद थे इनके चार संतान थीं इनमें गोकुलजी सबसे बड़े थे। कर्मेदु शिशिर ने लिखा है, “ उन दिनों भदरी के जो राजा थे,वे अत्यंत उदार और भोले-भाले इन्सान थे। उनकी रियासत के लोग अपनेपन से उन्हें ‘बौरह महाराज’ कहा करते थे।गोपालगंज में भी उनकी नवाबी थी।उससे चार मील दूर बौद्ध भिक्षुओं का आवास विहार भी उनकी तहसील में था।बाद में यह तहसील उठकर कुंडा चली आई। राधामोहनजी की प्रारंभिक शिक्षा इसी विहार में हुई थी। दो-तीन महिने में ही वर्णमाला और गणित की जानकारी कर वे स्कूल जाने लगे।’ यहीं पर उन्होंने फारसी और बही-खाता संबंधी ज्ञान प्राप्त किया।मात्र 13साल की उम्र में ही उनका विवाह हो गया,बाद में उन्होंने आगरा के सेन्ट जॉन्स कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लेकर अंग्रेजी की पढ़ाई की। कुछ साल बाद उनकी पत्नी का सन् 1883 में निधन हो गया। कालांतर में वे इलाहाबाद में बालकृष्ण भट्ट के संपर्क में आते हैं,कांग्रेस से जुड़ते हैं,हिन्दी-प्रदीप में लिखते हैं।यहीं पर उनकी पंडित मदनमोहन मालवीय से मुलाकात होती है। बाद में कानपुर आते हैं वहां पर प्रतापनारायण मिश्र के संपर्क में आते हैं,ब्राह्मण पत्र के मैनेजर के रुप में 1890-91 में काम करते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि विपत्तियों ने राधामोहनजी का सारी जिंदगी पीछा नहीं छोड़ा। उनके एकमात्र पुत्र का 16वर्ष की आयु में निधन हो गया। अपने जीवन के कष्टों से जूझते हुए वे देश के विभिन्न शहरों में रहे,इस क्रम में कलकत्ते में भी आकर रहे। इसके पहले आगरा में रहे। कलकत्ते में आकर उन्होंने ट्यूशन आदि के जरिए आजीविका के लिए कमाना आरंभ किया,यहीं पर वे मतमालामंडल से जुड़े,बंग-भंग आंदोलन से जुड़े,उस समय के क्रांतिकारियों से मिले,उस जमाने के प्रसिद्ध क्रांतिकारी आशुतोष लाहिड़ी से उनके सघन रिश्तों की बात कर्मेन्दु शिशिर ने लिखी है। क्रांतिकारियों से जुड़ने के कारण वे सब तरह के कामों में क्रांतिकारियों की मदद किया करते थे। यहीं से उनका भारत के क्रांतिकारियों के साथ जो संपर्क बना वह मरते दम तक बना रहा।

राधामोहनजी का मानना है , ‘ जहां शारीरिक हानि पहुँचाने के लिए अनेक नशेबाजी और दुराचार के अड्डे होते हैं,वहां मनुष्य को मानसिक हानि पहुँचाने और निकम्मा बनाने के लिए धार्मिक अड्डे-गिरजे,मंदिर और मस्जिदें भी हैं। यह सब काम काबू याफ्ता शासन और शासक मंडल के हित के लिए दलालों अर्थात् पुरोहितों द्वारा,सरकार की छत्रछाया में बसनेवाले गरीबों को लूटनेवाले अमीरों की मदद से हुआ करते हैं। मूर्ख ग्रामीणों के दिमाग में जहां एकबार कोई बेवकूफी घर कर गई,फिर मुश्किल से निकलती है।इन बेचारों में ज्ञान नहीं ,विवेक नहीं,समझ नहीं,विद्या नहीं,खाने को अन्न और पहनने को वस्त्र तक इनके पास नहीं। जो चाहे इन्हें पंडित,मौलवी,पादरी बनकर ठग सकता है,धोके में डाल सकता है और अपनी अर्थ-सिद्धि का साधन बना सकता है।’ इस प्रसंग में यही कहना है कि गोकुलजी के जमाने में धर्म की बीमारी गरीबों में ही नहीं थी मध्यवर्ग में भी थी,इन दिनों हमारे देश में मध्यवर्ग से लेकर गाँव के गरीबों तक यह बीमारी पैर पसार चुकी है। गोकुलजी इसे ठगी का जाल ही मानते हैं।उन्होंने लिखा है, ‘ ईश्वर कोई चीज नहीं है,सिवा इसके कि ग़रीबों को ठगने के लिए ठगी का जाल है।यह जाल जितनी जल्दी तोड़ दिया जाए उतना ही अच्छा । ’



1 टिप्पणी:

  1. राधामोहन गोकुलजी के बारे में बहुत अच्छी जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार!

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