कश्मीर में आप मुहल्लों में जाएं और आम लोगों से बात करें तो पाएंगे कि वहां जितने आतंकी आऱंभिक दिनों में आतंकी टोलियों में शामिल हुए उनमें से अधिकांश जानते तक नहीं थे कि वे आतंकी टोली में क्यों शामिल हो रहे हैं।अनेक मर्तबा ऐसे युवा भी आतंकी टोली में शामिल हुए जो किसी न किसी रूप में सैन्यबलों के उत्पीड़न के शिकार रहे हैं।अनेक इस तरह के युवा भी थे जो बंदूक या पिस्तौल चलाना जानते तक नहीं थे और आतंकियों की बंदूक-पिस्तौल लेकर घूमते रहते थे,हथियार चमकाकर इलाके में दादागिरी करते थे। किस तरह मूर्खताएं करते थे और पाकप्रेरित आतंकी संगठनों के जाने-अनजाने एजेंट बन गए।एक सच्चा किस्सा पढ़ें-एक कश्मीरी युवा देखने में सुंदर और छरछरे किस्म का था, नाम था उस्मान।एक दिन उसको आतंकियों ने एक ग्रेनेड दे दिया और उसको कहा कि जाकर नशाने पर फेंक दो।वह जानता नहीं था उसका किस तरह इस्तेमाल करें।ग्रेनेड में एक पिन होता है,उस पिन को निकालते ही उसे सात सैकिण्ड में निशाने पर फेंक देना होता है लेकिन वह युवा पिन निकालकर देख रहा था कि कहां फेंकूँ,वह जानता ही नहीं था कि उसे कितनी देर में फेंकना है,वह युवक सोचता रह गया सात सैकिण्ड के बाद ग्रेनेड उसी युवक के हाथ में फट गया।फलतःवह उसी क्षण मर गया।लेकिन आतंकियों ने प्रचारित कर दिया कि सैन्यबलों ने मार दिया।यह श्रीनगर के डाउन टाउन की सच्ची कहानी है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
सोमवार, 11 जुलाई 2016
कश्मीर के फायरब्राँण्ड आतंकी
कश्मीर में आप मुहल्लों में जाएं और आम लोगों से बात करें तो पाएंगे कि वहां जितने आतंकी आऱंभिक दिनों में आतंकी टोलियों में शामिल हुए उनमें से अधिकांश जानते तक नहीं थे कि वे आतंकी टोली में क्यों शामिल हो रहे हैं।अनेक मर्तबा ऐसे युवा भी आतंकी टोली में शामिल हुए जो किसी न किसी रूप में सैन्यबलों के उत्पीड़न के शिकार रहे हैं।अनेक इस तरह के युवा भी थे जो बंदूक या पिस्तौल चलाना जानते तक नहीं थे और आतंकियों की बंदूक-पिस्तौल लेकर घूमते रहते थे,हथियार चमकाकर इलाके में दादागिरी करते थे। किस तरह मूर्खताएं करते थे और पाकप्रेरित आतंकी संगठनों के जाने-अनजाने एजेंट बन गए।एक सच्चा किस्सा पढ़ें-एक कश्मीरी युवा देखने में सुंदर और छरछरे किस्म का था, नाम था उस्मान।एक दिन उसको आतंकियों ने एक ग्रेनेड दे दिया और उसको कहा कि जाकर नशाने पर फेंक दो।वह जानता नहीं था उसका किस तरह इस्तेमाल करें।ग्रेनेड में एक पिन होता है,उस पिन को निकालते ही उसे सात सैकिण्ड में निशाने पर फेंक देना होता है लेकिन वह युवा पिन निकालकर देख रहा था कि कहां फेंकूँ,वह जानता ही नहीं था कि उसे कितनी देर में फेंकना है,वह युवक सोचता रह गया सात सैकिण्ड के बाद ग्रेनेड उसी युवक के हाथ में फट गया।फलतःवह उसी क्षण मर गया।लेकिन आतंकियों ने प्रचारित कर दिया कि सैन्यबलों ने मार दिया।यह श्रीनगर के डाउन टाउन की सच्ची कहानी है।
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