यह सच है नरेन्द्र मोदी से नामवरजी मिल चुके हैं। एक-दूसरे को आंखों में तोल चुके हैं! इनकी ज्ञाननीठ पुरस्कार समारोह में मुलाकात हो चुकी है।यही वह मुलाकात थी जिसे नामवरजी को प्रगतिशील परंपरा से भिन्न आरएसएस की परंपरा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की! वे दोनों जब मिले तो विलक्षण दृश्य था एक तरफ जनप्रसिद्धि के नायक मोदी थे तो दूसरी ओर साहित्येच्छा के नायक नामवरजी थे।यह असल में ´जनप्रियता´ और ´इच्छा´का मिलन था।यह मिलन का सबसे निचला धरातल है। कलाहीन मोदी ,नामवरजी की प्रशंसा कर रहे थे !
कलाहीन नायक जब किसी लेखक की प्रशंसा करे तो कैसा लगेगा ॽ मोदीजी जब प्रशंसा कर रहे थे तो वे जानते थे कि नामवरजी भी साहित्य में वैसे ही ´जनप्रिय´हैं जैसे वे राजनीति में ´जनप्रिय´हैं,दोनों की ´जनप्रियता´की ऊँचाई बनाए रखने के लिए पेशेवर प्रचारक अहर्निश काम करते रहते हैं। इन दोनों का पेशेवर प्रचारकों के बिना कोई भविष्य नहीं है। दोनों को नियोजित और निर्मित प्रचार कला का हीरो माना जाता है। दोनों के पास अपने-अपने प्रशंसकों के समूह हैं।दोनों से लोग डरते हैं, महसूस करते हैं पता नहीं कब और कहां से पत्ता कटवा दें!
दोनों के चाटुकार प्रशंसक हैं!दोनों के पास कोई विशिष्ट किस्म की गतिविधि नहीं है।दोनों इसलिए ´महान्´ हैं क्योंकि सत्ता का अंग हैं!इनकी कोई राजनीतिक और साहित्यिक विशिष्टता नहीं है जिसकी वजह से ये दोनों जाने जाते हों! दोनों के पास प्रायोजित जनता है,स्वाभाविक जनता नहीं है।दोनों का प्लेटो के शब्दों में कहें तो ´प्रायोजित संसार´है।दोनों सत्ता की निर्मिति हैं,शासकवर्गों की निर्मिति हैं।दोनों यह जानते हैं कब क्या बोलना चाहिए और कब चुप रहना चाहिए।दोनों का साहित्यिक-राजनीतिक आस्वाद मौजूदा संसार से मेल नहीं खाता।दोनों अधूरे मनुष्य हैं,दोनों में गुलाम भाव है,दोनों कारपोरेट जगत के प्रशंसक हैं,दोनों सत्ता के औजार हैं,दोनों अहंकारी हैं,दोनों आस्था के आदी हैं।
दोनों ऊपर से देखने में ´भद्र´और अंदर से ´क्रूर´हैं।दोनों का मानना है ´विशिष्ट´व्यक्ति की ´क्रूरता´की नहीं ´भद्रता´की बातें करो।यही हाल इन दोनों के भक्तों का है,आज मैं यदि नामवरजी और मोदीजी की प्रशंसा करूँ तो ये लोग बड़े खुश होंगे,लेकिन यदि इनकी गलत चीजों की आलोचना करूँ तो मेरे ऊपर व्यक्तिगत हमले शुरू कर देंगे! दोनों में हजम कर जाने,आहत करने,कमजोर पर वर्चस्व जमाने,दबाकर रखने,शोषण करने की आदतें हैं।दोनों को समाज में वही घटना पसंद है जिसमें उनका संदर्भ रहे।
इसके अलावा नामवरजी की ´साहित्यिक अनैतिकता´ और मोदी की ´राजनीतिक अनैतिकता´में गहरा संबंध है।मध्यवर्ग के एक बड़े हिस्से को इस ´अनैतिकता´से कोई परेशानी नहीं है.वे इसको स्वाभाविक मानकर चल रहे हैं।इस ´अनैतिकता´ के गर्भ से समाज में साहित्य और राजनीति में ´अनैतिकता´का ही प्रसार होगा और यही मूल चिंता है जिसके कारण मैं इतना विस्तार में जाकर नामवरजी पर लिखने को मजबूर हुआ हूँ।
कलाहीन नायक जब किसी लेखक की प्रशंसा करे तो कैसा लगेगा ॽ मोदीजी जब प्रशंसा कर रहे थे तो वे जानते थे कि नामवरजी भी साहित्य में वैसे ही ´जनप्रिय´हैं जैसे वे राजनीति में ´जनप्रिय´हैं,दोनों की ´जनप्रियता´की ऊँचाई बनाए रखने के लिए पेशेवर प्रचारक अहर्निश काम करते रहते हैं। इन दोनों का पेशेवर प्रचारकों के बिना कोई भविष्य नहीं है। दोनों को नियोजित और निर्मित प्रचार कला का हीरो माना जाता है। दोनों के पास अपने-अपने प्रशंसकों के समूह हैं।दोनों से लोग डरते हैं, महसूस करते हैं पता नहीं कब और कहां से पत्ता कटवा दें!
दोनों के चाटुकार प्रशंसक हैं!दोनों के पास कोई विशिष्ट किस्म की गतिविधि नहीं है।दोनों इसलिए ´महान्´ हैं क्योंकि सत्ता का अंग हैं!इनकी कोई राजनीतिक और साहित्यिक विशिष्टता नहीं है जिसकी वजह से ये दोनों जाने जाते हों! दोनों के पास प्रायोजित जनता है,स्वाभाविक जनता नहीं है।दोनों का प्लेटो के शब्दों में कहें तो ´प्रायोजित संसार´है।दोनों सत्ता की निर्मिति हैं,शासकवर्गों की निर्मिति हैं।दोनों यह जानते हैं कब क्या बोलना चाहिए और कब चुप रहना चाहिए।दोनों का साहित्यिक-राजनीतिक आस्वाद मौजूदा संसार से मेल नहीं खाता।दोनों अधूरे मनुष्य हैं,दोनों में गुलाम भाव है,दोनों कारपोरेट जगत के प्रशंसक हैं,दोनों सत्ता के औजार हैं,दोनों अहंकारी हैं,दोनों आस्था के आदी हैं।
दोनों ऊपर से देखने में ´भद्र´और अंदर से ´क्रूर´हैं।दोनों का मानना है ´विशिष्ट´व्यक्ति की ´क्रूरता´की नहीं ´भद्रता´की बातें करो।यही हाल इन दोनों के भक्तों का है,आज मैं यदि नामवरजी और मोदीजी की प्रशंसा करूँ तो ये लोग बड़े खुश होंगे,लेकिन यदि इनकी गलत चीजों की आलोचना करूँ तो मेरे ऊपर व्यक्तिगत हमले शुरू कर देंगे! दोनों में हजम कर जाने,आहत करने,कमजोर पर वर्चस्व जमाने,दबाकर रखने,शोषण करने की आदतें हैं।दोनों को समाज में वही घटना पसंद है जिसमें उनका संदर्भ रहे।
इसके अलावा नामवरजी की ´साहित्यिक अनैतिकता´ और मोदी की ´राजनीतिक अनैतिकता´में गहरा संबंध है।मध्यवर्ग के एक बड़े हिस्से को इस ´अनैतिकता´से कोई परेशानी नहीं है.वे इसको स्वाभाविक मानकर चल रहे हैं।इस ´अनैतिकता´ के गर्भ से समाज में साहित्य और राजनीति में ´अनैतिकता´का ही प्रसार होगा और यही मूल चिंता है जिसके कारण मैं इतना विस्तार में जाकर नामवरजी पर लिखने को मजबूर हुआ हूँ।
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