रविवार, 24 जुलाई 2016

मोदी की गोदी में नामवर !

       नामवरजी के व्यक्तित्व से प्रभावित छात्र,शिक्षक और लेखकों का बड़ा समूह है। दिलचस्प बात है कि नामवरजी के गैर-साहित्यिक व्यक्तित्व और कारनामों को लेकर बहुत कम लोग जानते हैं।खासकर उनके जेएनयू में काम करने के दौरान किए गए अकादमिक फैसलों की जिनको पहचान है वे बेहतर ढ़ंग से जानते हैं कि जेएनयू में प्रोफेसर के रूप में काम करते हुए नामवरजी ने कभी भी छात्रों के हितों से जुड़े सवालों पर (मेरे सात साल के जेएनयू छात्रजीवन के दौरान) कभी कोई स्टैंड नहीं लिया, उलटे वे हमेशा जेएनयू प्रशासन के साथ और छात्रों के खिलाफ खड़े नजर आए।
       नामवरजी की रीतिकालीन मनोदशा का आदर्श नमूना है जेएनयू ।मैं उन दिनों छात्र राजनीति में सक्रिय था।मैं वहां पढ़ता था। नामवरजी खुलकर कभी छात्रों के पक्ष में न तो एकेडमिक कौंसिल में बोले और न बोर्ड़ ऑफ स्टैडीज में बोले, उलटे छात्रों को विक्टिमाइज करने में अपने विभाग में अग्रणी भूमिका निभाते रहे ।ये बातें इसलिए जानना जरूरी है क्योंकि नए सिरे से नामवरजी पर रीतिकाव्य लिखा जा रहा है।मुश्किल यह है कि जो लोग देश में खुलकर वाम के नाम से जाने जाते हैं और जेएनयू में प्रोफेसर हुआ करते थे उनमें से अधिकांश की जेएनयू प्रशासन के साथ और छात्रों के विरोध में सक्रिय भूमिका हुआ करती थी।कुछ ही शिक्षक थे जो आमतौर पर छात्रों के पक्ष में जेएनयू प्रशासन के खिलाफ बोलते थे,जो छात्रों के पक्ष में बोलते थे उनमें प्रोफेसर प्रभात पटनायक, उत्सापटनायक,हरवंश मुखिया, जी.पी.देशपांडे, प्रो.विमलकुमार,परिमल कुमार,जीएस भल्ला के नाम प्रमुख हैं।इन चंद शिक्षकों के अलावा कुछ नामी शिक्षक ऐसे भी थे जो छात्रहित के सवालों पर खुलकर स्टैंड लेते थे,अकादमिक जगत में उनका कद बहुत ऊँचा हुआ करता था।बाकी सभी प्रोफेसरों का हाल यह था कि वे खुलकर जेएनयू प्रशासन के अ-लोकतांत्रिक,छात्र विरोधी फैसलों के साथ आँख बंद करके खड़े रहते थे।

नामवरजी के जेएनयू संबंधी कार्य-व्यापार की हर हालत में मीमांसा करने की जरूरत है,क्योंकि उनकी भक्तमंडली बड़ी व्यापक है और नामवरजी अपने जेएनयू कारनामों के लिए झूठ बोलते रहे हैं।यह चीजें नए सिरे से उठाने की इच्छा इसलिए हुई है कि नामवरजी सारे एथिक्स तोड़कर आरएसएस के साथ इन दिनों खुलकर गलबहियां डाले घूम रहे हैं।नामवरजी रीतिकालीन अवगुणों के अलावा अनेक गुण भी हैं।लेकिन उनके गुणों की क्षमता अब चुक गयी है जिसके कारण वे इन दिनों खुलकर देश के सबसे बदनाम शासक नरेन्द्र मोदी के साथ खुलकर खड़े हैं।नामवरसिंह के नरेन्द्र मोदी के साथ चल रहे इस रीतिकालीन भावबोध की खुलकर आलोचना होनी चाहिए,साथ ही इस सवाल पर विचार करना चाहिए कि एक प्रोफेसर-लेखक-बुद्धिजीवी के कर्म और लेखन में साम्य और वैषम्य के समाज पर किस तरह के प्रभाव पड़ने की संभावनाएं होती हैं।


5 टिप्‍पणियां:

  1. तो क्या शिक्षक/प्राध्यापक का मूल्यांकन इस पैमाने पर भी होना चाहिए कि वह छात्रों के आन्दोलन के साथ खड़ा है या नहीं? (केवल जिज्ञासा है)

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  2. शिक्षक की जवाबदेही सिर्फ छात्रों और शिक्षकों के प्रति ही नहीं है बल्कि पूरे समाज के प्रति है।

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  3. नामवर भक्त मुझे माफ़ करें ..पता नहीं क्यों मुझे नामवर सिंह जी कभी न विस्वसनीय लगे न उत्तम दर्जे के साहित्यकार .हाँ ग्रुपबाज और अखाड़े बाज जरुर लगते रहे .

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