कश्मीर पर ठंडे दिमाग से सोचने की जरूरत है,उग्रभाषा,मैं-तुम में विभाजित करके देखने से बचें। इकतरफा प्रचार ,निहितस्वार्थ और झूठ से बचें। इससे तनाव में इजाफा हुआ है। समस्या यह है कि पुलिसबल या खुफियातंत्र किसी भी झूठी खबर पर कार्रवाई करके जब किसी निर्दोष को मार दे तब जनता क्या करे ॽ मारे गए निर्दोष व्यक्ति के रिश्तेदार क्या करें ॽ राज्य में इस तरह की प्रशासनिक संरचनाएं नहीं हैं जो इन शिकायतों पर ध्यान दें। आज भी कश्मीर में सैंकड़ों निर्दोष नौजवानों की मौत को लेकर संदेह है जिनको पुलिस ने आतंकवादी होने के संदेह में मार दिया। राज्य सरकार से लेकर केन्द्र सरकार तक,यहां तक कि अदालतों तक से इस तरह के लोगों को न तो न्याय मिला और न मुआवजा। मसलन्,हाल की हिंसा में मारे गए 31लोग कम से कम आतंकवादी नहीं हैं।इस तरह के कश्मीर में बड़ी संख्या में और भी लोग मारे गए हैं।
कश्मीर पर जब भी बात हो तो कश्मीर के नजरिए से हो,मानवीय नजरिए से हो।उस तरह की प्रशासनिक संरचनाओं का निर्माण किया जाय जहां पीड़ित लोग निर्भय होकर अपनी तकलीफों को कह सकें और उस पर राज्य प्रशासन गंभीरता से कार्रवाई करे।पिछले दिनों राज्य सरकार ने पत्थरबाजी की घटनाओं में शामिल युवाओं के ऊपर चल रहे मुकदमों के बारे में फैसला लिया था,यह एक सही फैसला था।इसी तरह अन्य केसों पर भी सहानुभूति के साथ विचार करके युवाओं पर चल रहे मुकदमे तुरंत खत्म करने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है।वहां के युवा तेजी से सामाजिक विकास में सक्रिय भूमिका निभाएं और आतंकी समूहों से अलग रहें इसके लिए जरूरी है कि युवाओं को विभिन्न किस्म की विकास योजनाओं में शामिल करने के बारे में पहल की जाय ,सस्ते ब्याज पर नए कारोबार शुरू करने के लिए राष्ट्रीयकृत बैंकों से कर्ज मुहैय्या कराया जाय.
बुरहान वानी फिनोमिना से सबक लेने की जरूरत है। इन दिनों कश्मीर के युवाओं में आतंकी-पृथकतावादी संगठन हथियारों के जरिए नहीं विचारों और सामाजिकीकरण के जरिए स्वीकृति बनाने में लगे हैं।स्थानीय स्तर पर वे साइबर तकनीक और सामाजिक संबंधों के सहमेल के जरिए अपना जनाधार बना रहे हैं। दिलचस्प बात यह है पुलिस और सेना चप्पे -चप्पे पर लगी है लेकिन युवाओं में काम कर रहे आतंकी उनको नजर नहीं आ रहे। बुरहान वानी के चरित्र का चिन्ताजनक पहलू यह है कि वह हथियार से नहीं साइबर संपर्क के जरिए युवाओं को बांधे था। कश्मीर के युवाओं में लोकतांत्रिक आकांक्षाएं हैं और वे बड़े पैमाने पर उसे सोशलमीडिया आदि के जरिए व्यक्त कर रहे हैं,उनके स्थानीय स्तर पर समूह बने हुए हैं जो एक-दूसरे से जोड़ते हैं।कश्मीर के इन युवाओं का दिल जीतने के लिए आरएसएस मार्का साइबर प्रचार अपील नहीं कर सकता।उलटे उनके मन में भय-आशंका और अनास्था पैदा करता है। आरएसएस के लोग साइबर जगत में अपने साम्प्रदायिक लेखन के दूरगामी प्रभावों से अनजान हैं यह तो नहीं कह सकते।लेकिन उनके साइबर प्रचार अल्पसंख्यक,आदिवासी युवक आतंकित और चिन्तित हैं।मोदीजी कश्मीर को लेकर कितने फिक्रमंद हैं इसका अंदाजा उनके कश्मीर प्रचार से कर सकते हैं। मोदीजी के साइबर समूह की ओर से विगत दो सालों में कश्मीर के संदर्भ में कोई भी सकारात्मक प्रचार अभियान साइबर जगत में नहीं चलाया गया। इसके विपरीत आरएसएस के लोग बेगानों की तरह कश्मीर पर अ-यथार्थपरक टिप्पणियां करते रहते हैं,भाजपा और आरएसएस के जो लोग मीडिया से लेकर साइबर तक लिख रहे हैं वे जरा गंभीरता से सोचें कि बुरहान जैसा नौजवान स्थानीय स्तर पर साइबर के जरिए अपील बना लेता लेकिन मोदीजी या आरएसएस के किसी नेता की कश्मीर के युवाओं में कोई साइबर अपील नहीं है।जबकि सच यह है आरएसएस सबसे संगठित साइबर संगठन है।उसके प्रचार में कश्मीर कहीं पर भी नहीं है यदि चुनाव के मौके पर साइबर प्रचार नजर भी आया तो वह सिर्फ वोटों तक सीमित था।
इसके विपरीत बुरहान वानी ने मात्र साइबर प्रचार के जरिए अपने को युवाओं में जनप्रिय बना लिया,उसने स्थानीय स्तर पर इस तरह का संगठन खड़ा कर लिया जो उसके विचारों से सहमत युवाओं से भरा है ,यानी बिना बंदूक चलाए विचारों के जरिए उसने युवाओं को आतंकी संगठन के पीछे अपने सामान्य कम्युनिकेशन के जरिए जोड़ लिया। यह सच है बुरहान का आतंकी संगठन से संबंध था,मीडिया रिपोर्ट और स्थानीय पुलिस के बयान बताते हैं कि उसने कभी कोई एक्शन में भाग नहीं लिया,उसका नाम था,इसी बिना पर उसके ऊपर दस लाख का इनाम पुलिस ने घोषित कर दिया।
पहलीबार एक ऐसा आतंकी सामने आया है जिसने गोली नहीं चलाई लेकिन इलाके के लोगों का दिल जीत लिया,उसने बंदूक के भय के बिना,मात्र विचारों और संचार के जरिए अपने लिए स्थानीय जनता के दिलों में जगह बना ली।इससे हम साफ समझें कि विचारों की ताकत बंदूक की ताकत से ज्यादा प्रभावशाली होती है।यही वह बिंदु है जिसे समझने की जरूरत है। कश्मीर बदलने के लिए जरूरी है कश्मीर के बारे में पहले विचार बदलो।
कश्मीर पर जब भी बात हो तो कश्मीर के नजरिए से हो,मानवीय नजरिए से हो।उस तरह की प्रशासनिक संरचनाओं का निर्माण किया जाय जहां पीड़ित लोग निर्भय होकर अपनी तकलीफों को कह सकें और उस पर राज्य प्रशासन गंभीरता से कार्रवाई करे।पिछले दिनों राज्य सरकार ने पत्थरबाजी की घटनाओं में शामिल युवाओं के ऊपर चल रहे मुकदमों के बारे में फैसला लिया था,यह एक सही फैसला था।इसी तरह अन्य केसों पर भी सहानुभूति के साथ विचार करके युवाओं पर चल रहे मुकदमे तुरंत खत्म करने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है।वहां के युवा तेजी से सामाजिक विकास में सक्रिय भूमिका निभाएं और आतंकी समूहों से अलग रहें इसके लिए जरूरी है कि युवाओं को विभिन्न किस्म की विकास योजनाओं में शामिल करने के बारे में पहल की जाय ,सस्ते ब्याज पर नए कारोबार शुरू करने के लिए राष्ट्रीयकृत बैंकों से कर्ज मुहैय्या कराया जाय.
बुरहान वानी फिनोमिना से सबक लेने की जरूरत है। इन दिनों कश्मीर के युवाओं में आतंकी-पृथकतावादी संगठन हथियारों के जरिए नहीं विचारों और सामाजिकीकरण के जरिए स्वीकृति बनाने में लगे हैं।स्थानीय स्तर पर वे साइबर तकनीक और सामाजिक संबंधों के सहमेल के जरिए अपना जनाधार बना रहे हैं। दिलचस्प बात यह है पुलिस और सेना चप्पे -चप्पे पर लगी है लेकिन युवाओं में काम कर रहे आतंकी उनको नजर नहीं आ रहे। बुरहान वानी के चरित्र का चिन्ताजनक पहलू यह है कि वह हथियार से नहीं साइबर संपर्क के जरिए युवाओं को बांधे था। कश्मीर के युवाओं में लोकतांत्रिक आकांक्षाएं हैं और वे बड़े पैमाने पर उसे सोशलमीडिया आदि के जरिए व्यक्त कर रहे हैं,उनके स्थानीय स्तर पर समूह बने हुए हैं जो एक-दूसरे से जोड़ते हैं।कश्मीर के इन युवाओं का दिल जीतने के लिए आरएसएस मार्का साइबर प्रचार अपील नहीं कर सकता।उलटे उनके मन में भय-आशंका और अनास्था पैदा करता है। आरएसएस के लोग साइबर जगत में अपने साम्प्रदायिक लेखन के दूरगामी प्रभावों से अनजान हैं यह तो नहीं कह सकते।लेकिन उनके साइबर प्रचार अल्पसंख्यक,आदिवासी युवक आतंकित और चिन्तित हैं।मोदीजी कश्मीर को लेकर कितने फिक्रमंद हैं इसका अंदाजा उनके कश्मीर प्रचार से कर सकते हैं। मोदीजी के साइबर समूह की ओर से विगत दो सालों में कश्मीर के संदर्भ में कोई भी सकारात्मक प्रचार अभियान साइबर जगत में नहीं चलाया गया। इसके विपरीत आरएसएस के लोग बेगानों की तरह कश्मीर पर अ-यथार्थपरक टिप्पणियां करते रहते हैं,भाजपा और आरएसएस के जो लोग मीडिया से लेकर साइबर तक लिख रहे हैं वे जरा गंभीरता से सोचें कि बुरहान जैसा नौजवान स्थानीय स्तर पर साइबर के जरिए अपील बना लेता लेकिन मोदीजी या आरएसएस के किसी नेता की कश्मीर के युवाओं में कोई साइबर अपील नहीं है।जबकि सच यह है आरएसएस सबसे संगठित साइबर संगठन है।उसके प्रचार में कश्मीर कहीं पर भी नहीं है यदि चुनाव के मौके पर साइबर प्रचार नजर भी आया तो वह सिर्फ वोटों तक सीमित था।
इसके विपरीत बुरहान वानी ने मात्र साइबर प्रचार के जरिए अपने को युवाओं में जनप्रिय बना लिया,उसने स्थानीय स्तर पर इस तरह का संगठन खड़ा कर लिया जो उसके विचारों से सहमत युवाओं से भरा है ,यानी बिना बंदूक चलाए विचारों के जरिए उसने युवाओं को आतंकी संगठन के पीछे अपने सामान्य कम्युनिकेशन के जरिए जोड़ लिया। यह सच है बुरहान का आतंकी संगठन से संबंध था,मीडिया रिपोर्ट और स्थानीय पुलिस के बयान बताते हैं कि उसने कभी कोई एक्शन में भाग नहीं लिया,उसका नाम था,इसी बिना पर उसके ऊपर दस लाख का इनाम पुलिस ने घोषित कर दिया।
पहलीबार एक ऐसा आतंकी सामने आया है जिसने गोली नहीं चलाई लेकिन इलाके के लोगों का दिल जीत लिया,उसने बंदूक के भय के बिना,मात्र विचारों और संचार के जरिए अपने लिए स्थानीय जनता के दिलों में जगह बना ली।इससे हम साफ समझें कि विचारों की ताकत बंदूक की ताकत से ज्यादा प्रभावशाली होती है।यही वह बिंदु है जिसे समझने की जरूरत है। कश्मीर बदलने के लिए जरूरी है कश्मीर के बारे में पहले विचार बदलो।
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