मंगलवार, 26 जुलाई 2016

नामवरजी ऐसा न करें-


          नामवरजी ने इधर राजनीति बदली है,वे लेखक बिरादरी के साथ सबसे बड़ा धोखा करने जा रहे हैं।इंदिरा गांधी कला संग्रहालय द्वारा उनका जन्मदिन नहीं मनाया जा रहा,यह संग्रहालय तो पहले से है,कभी उनका जन्मदिन वहां नहीं मनायागया।रामबहादुर राय भी दिल्ली में पहले से हैं उनको कभी नामवरजी के जन्मदिन की याद नहीं आई,आरएसएस भी पहले से है लेकिन आरएसएस वालों ने कभी उनका जन्मदिन नहीं मनाया,लेकिन 90साल में पहलीबार नामवरजी का जन्मदिन आरएसएस मना रहा है , आड़ है इंदिरा गांधी कला संग्रहालय।यह सामान्य घटना नहीं है।

यहां से नामवर सिंह के साम्प्रदायिकता विरोधी लेखन का अंत होता है।फासिस्ट विचारकों के द्वारा जब उनका जन्मदिन उनकी मौजूदगी में ,उनकी स्वीकृति के बाद मनाया जाएगा,तो नामवरजी के साम्प्रदायिकता विरोधी लेखन की प्रासंगिकता खत्म हो जाती है।कोई यदि यह सोचता है कि लेखक आचरण कुछ भी करे लेकिन उसके लिखे शब्दों में शक्ति रहती है तो गलतफहमी है,लेखक के शब्दों में तब तक जान रहती है जब तक लेखक अपने शब्दों के प्रति वफादार रहता है,नामवरजी ने अपने साम्प्रदायिकता विरोधी लेखन को अपने ही हाथों ध्वस्त करके अपने ही हाथों अपना मुँह नोंचा है।यह इस दौर की त्रासद घटना है। यह भी सच है कि नामवरजी जब अपने लिखे पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं,उसे अप्रासंगिक बना रहे हैं,तो उनको कायदे से बताना चाहिए कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं।लेकिन नामवरजी पहले कह चुके हैं मैं सफाई नहीं देता।अब कर लो संवाद,जब वे अपने बदले हुए रूख पर चुप हैं तो हमलोग संवाद किससे करें.यानी आरएसएस की बगल में बैठने का मतलब है संवाद की भी विदाई।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...