पाक समर्थित आतंकियों की कश्मीर में भूमिका को कम करके नहीं देखना चाहिए।खासकर पीडीपी-भाजपा सरकार आने के बाद नए सिरे से आतंकियों को जनता में फैलने का मौका मिला है, इनमें से अनेक ग्रुपों ने पीडीपी-भाजपा के लिए चुनावों में काम किया है।ऐसी स्थिति में वहां सामान्य स्थिति बहाल करने में सेना को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। आतंकियों के जनाधार बनाने के नए नए तरीके सामने आ रहे हैं,उनमें से एक है साइबर मंच।साइबर मंचों के जरिए युवाओं को आतंकी विभिन्न रूपों में गोलबंद कर रहे हैं,लेकिन सरकार ने इसको रोकने के लिए कोई मैकेनिज्म विकसित नहीं किया। उल्लेखनीय है आतंकी –साम्प्रदायिक –पृथकतावादी संगठन सब समय हथियारबंद जंग ही नहीं लड़ते,वे विभिन्न छद्म रूपों में युवाओं को अपने इर्द-गिर्द गोलबंद करते हैं। यहां एक पुराना वाकया याद आ रहा।
सन् 1989-90 के बाद कश्मीर में जो आतंकी उभार आया था उसमें एक बार आतंकियों ने सारे पुरूषों को खान ड्रेस पहनने का आदेश दे दिया,उन दिनों घाटी में आतंकियो का भय इस कदर व्याप्त था कि कोई व्यक्ति उनके आदेस की अवहेलना नहीं कर सकता था।
खान ड्रेस (पठान ड्रेस) पहनने का आदेश निकलते ही देखते ही देखते एक सप्ताह में सभी पुरूषों ने पठान ड्रेस बनवाए और फिर पहनने लगे,यहां तक कि पुरूष पठान ड्रेस पहनकर ऑफिस भी जाते थे,यह सिलसिला दो महिने तक चला।एक दिन सेना ने तय किया कि पठान ड्रेस के खिलाफ मुहिम चलायी जाय। सेना को तुरंत एक्शन में जाने के आदेश दिए गए,सेना ने सड़कों-गलियों-मुहल्लों में खान ड्रेस पहने पुरूषों को पकडकर उनके चूतड़ पर कसकर आठ-दस डंडे लगाने शुरू किए,जो भी खान ड्रेस पहने दिखता उसकी खबर ली जाती,लोग घरों में जाकर अपने चूतडो की सिकाई कर रहे थे और परेशान होकर दर्द से कराह रहे थे,कुछ सप्ताह चले इस अभियान के कारण समूची घाटी में पुरूषों ने पठान ड्रेस पहननी बंद कर दी।सेना जिसे भी पठान ड्रेस पहने देखती सीधे सवाल करती ,चूतड पर डंडे लगाती और कहती कि कल से पैंट-शर्ट में दिखाई दो,इस तरह पठान ड्रेस से कश्मीर को मुक्ति मिली।जबकि आतंकियों ने दो माह तक सारे कश्मीर के पुरूषों को पठान ड्रेस बंदूक की नोंक पर पहनाकर अपना वैचारिक-सामाजिक वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश की जिसे सेना ने नाकाम कर दिया।
इस कहानी को कहने का आशय यह है कि आतंकी-साम्प्रदायिक संगठन आम जनता की जीवनशैली पर हमला बोलते हैं और अपना ड्रेसकोड थोपते हैं।इसलिए इन संगठनों से सिर्फ राजनीतिक संघर्ष ही नहीं जीवनशैली के स्तर पर भी संघर्ष करना पड़ता है।
सन् 1989-90 के बाद कश्मीर में जो आतंकी उभार आया था उसमें एक बार आतंकियों ने सारे पुरूषों को खान ड्रेस पहनने का आदेश दे दिया,उन दिनों घाटी में आतंकियो का भय इस कदर व्याप्त था कि कोई व्यक्ति उनके आदेस की अवहेलना नहीं कर सकता था।
खान ड्रेस (पठान ड्रेस) पहनने का आदेश निकलते ही देखते ही देखते एक सप्ताह में सभी पुरूषों ने पठान ड्रेस बनवाए और फिर पहनने लगे,यहां तक कि पुरूष पठान ड्रेस पहनकर ऑफिस भी जाते थे,यह सिलसिला दो महिने तक चला।एक दिन सेना ने तय किया कि पठान ड्रेस के खिलाफ मुहिम चलायी जाय। सेना को तुरंत एक्शन में जाने के आदेश दिए गए,सेना ने सड़कों-गलियों-मुहल्लों में खान ड्रेस पहने पुरूषों को पकडकर उनके चूतड़ पर कसकर आठ-दस डंडे लगाने शुरू किए,जो भी खान ड्रेस पहने दिखता उसकी खबर ली जाती,लोग घरों में जाकर अपने चूतडो की सिकाई कर रहे थे और परेशान होकर दर्द से कराह रहे थे,कुछ सप्ताह चले इस अभियान के कारण समूची घाटी में पुरूषों ने पठान ड्रेस पहननी बंद कर दी।सेना जिसे भी पठान ड्रेस पहने देखती सीधे सवाल करती ,चूतड पर डंडे लगाती और कहती कि कल से पैंट-शर्ट में दिखाई दो,इस तरह पठान ड्रेस से कश्मीर को मुक्ति मिली।जबकि आतंकियों ने दो माह तक सारे कश्मीर के पुरूषों को पठान ड्रेस बंदूक की नोंक पर पहनाकर अपना वैचारिक-सामाजिक वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश की जिसे सेना ने नाकाम कर दिया।
इस कहानी को कहने का आशय यह है कि आतंकी-साम्प्रदायिक संगठन आम जनता की जीवनशैली पर हमला बोलते हैं और अपना ड्रेसकोड थोपते हैं।इसलिए इन संगठनों से सिर्फ राजनीतिक संघर्ष ही नहीं जीवनशैली के स्तर पर भी संघर्ष करना पड़ता है।
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