कश्मीर इन दिनों फिर से चर्चा के केन्द्र में है।जिन लोगों ने 1989-90 से शुरू हुई तहरीक को देखा है वे जानते हैं आखिरकार कश्मीर में अशांति कैसे आई।वे यह भी जानते हैं कश्मीर की अशांति की जड़ें कहां हैं।कश्मीर पर बातें होती हैं तो सारी बहस आतंकवाद-पृथकतावाद और पाकिस्तान के रेगिस्तान में भटक जाती है।कोई कश्मीर की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक अर्थशास्त्र पर बातें नहीं करता। कश्मीर की समस्या की मूल जड़ है बहस के केन्द्र से अर्थव्यवस्था का गायब हो जाना।जितने लोग फेसबुक पर कश्मीर के सुनहरे अतीत और आतंकी वर्तमान पर लिख रहे हैं वे यदि गंभीरता से एक-एक लेख जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर भी लिख दिए होते तो बहुत बड़ा उपकार कर दिए होते।
कश्मीर की त्रासदी है कि उसके वास्तव मुद्दे केन्द्र में नहीं हैं। आज भी कश्मीर पर बात होती है तो आतंकवादी ही प्रमुख रूप से चर्चा के केन्द्र में रहता है,कायदे से हमें कश्मीर विमर्श का मूलाधार वहां की अर्थव्यवस्था की समस्याओं को बनाना चाहिए।वहां पर प्राकृतिक संतुलन के जो संभावित खतरे हैं उनको बनाना चाहिए।मैंने कश्मीर को बहुत करीब से देखने-जानने और समझने की कोशिश की है। मुझे यही लगा कश्मीर वह नहीं है जो मीडिया में नजर आता है।कश्मीर का आतंकी चेहरा मीडिया ने बनाया है.इसमें हिन्दुत्ववादी ताकतों की बहुत बड़ी भूमिका है।आश्चर्य की बात है मैं वर्षों से नियमित टीवी टॉक शो देखता रहा हूँ लेकिन एक भी चैनल याद नहीं पड़ता जिसने कश्मीर की अर्थव्यवस्था की समस्याओं पर कभी बातें की हों।
कश्मीर में आतंकियों की समस्या से ज्यादा बड़ी बेकारी की समस्या है,लाखों युवाओं के पास कोई काम नहीं है।मीडिया कवरेज की आज परिणति यह हुई है कि हर कश्मीरी को कश्मीर के बाहर संदेह की नजर से देखा जाता है,यदि कश्मीर के बाहर कोई कश्मीरी नौकरी कर रहा है तो लोग हरह आतंकी घटना का कारण उस कश्मीरी से पूछते हैं,जबकि सच्चाई यह है उसे वास्तविकता में मालूम ही नहीं है कोई आतंकी घटना क्यों और कैसे हुई।मसलन्,जिस व्यक्ति को अभी पुलिसबलों ने मारा वह आतंकवादी था,लेकिन पुलिसबलों की पकड़ से कई सालों से बाहर था।उसका कोई कवरेज नहीं मिलेगा,अचानक पता चला वो बहुत बड़ा आतंकवादी था।
मीडिया की सूचनाओं को हम इस कदर पवित्र मानकर चल रहे हैं कि संदेह तक नहीं करते।सारी खबरें वही हैं जो पुलिसबल या सेना बता रही है। मैनस्ट्रीम मीडिया के जरिए कोई भी रिपोर्टर जमीनी हकीकत बताने की कोशिश नहीं कर रहा ।
आतंकवाद पर मैनस्ट्रीम मीडिया अमूमन झूठ बोलता है कम से कम यह विकीलीक के दस्तावेजों को देखकर तो हमलोगों को समझ लेना चाहिए।दूर क्यों जाएं हाल ही में चिलकोट साहब ने इराक पर जो जांच रिपोर्ट पेश की है उससे सीख लें।
कहने का अर्थ है कश्मीर के बारे में बातें करें तो वहां के बुनियादी आर्थिक सवालों पर बातें करें।आम कश्मीरी अपने को आतंकियों से बहुत पहले दूर कर चुका है।मीडिया के कवरेज से राय न बनाएं। कश्मीर पर मीडिया बहुत घटिया काम कर रहा है वह प्रत्येक कश्मीरी को आतंकवाद समर्थक बता रहा है।कल एक आतंकी की शवयात्रा का कवरेज और उस पर आए बयान इस बात को पुष्ट करते हैं कि आम कश्मीरी और आतंकी के बीच में अंतर करना मीडिया,नेता और भोंपुओं ने बंद कर दिया है। आज कश्मीर की मूल समस्या आतंकवाद या पृथकतावाद नहीं है बल्कि उसके विकास की आर्थिक समस्याएं जिन पर बातें करने से वहा के राजनीतिकदल और मीडिया दोनों परहेज कर रहे हैं।कायदे से मीडिया-नेता रचित यह कश्मीर एजेण्डा बदलना चाहिए।
कश्मीर की त्रासदी है कि उसके वास्तव मुद्दे केन्द्र में नहीं हैं। आज भी कश्मीर पर बात होती है तो आतंकवादी ही प्रमुख रूप से चर्चा के केन्द्र में रहता है,कायदे से हमें कश्मीर विमर्श का मूलाधार वहां की अर्थव्यवस्था की समस्याओं को बनाना चाहिए।वहां पर प्राकृतिक संतुलन के जो संभावित खतरे हैं उनको बनाना चाहिए।मैंने कश्मीर को बहुत करीब से देखने-जानने और समझने की कोशिश की है। मुझे यही लगा कश्मीर वह नहीं है जो मीडिया में नजर आता है।कश्मीर का आतंकी चेहरा मीडिया ने बनाया है.इसमें हिन्दुत्ववादी ताकतों की बहुत बड़ी भूमिका है।आश्चर्य की बात है मैं वर्षों से नियमित टीवी टॉक शो देखता रहा हूँ लेकिन एक भी चैनल याद नहीं पड़ता जिसने कश्मीर की अर्थव्यवस्था की समस्याओं पर कभी बातें की हों।
कश्मीर में आतंकियों की समस्या से ज्यादा बड़ी बेकारी की समस्या है,लाखों युवाओं के पास कोई काम नहीं है।मीडिया कवरेज की आज परिणति यह हुई है कि हर कश्मीरी को कश्मीर के बाहर संदेह की नजर से देखा जाता है,यदि कश्मीर के बाहर कोई कश्मीरी नौकरी कर रहा है तो लोग हरह आतंकी घटना का कारण उस कश्मीरी से पूछते हैं,जबकि सच्चाई यह है उसे वास्तविकता में मालूम ही नहीं है कोई आतंकी घटना क्यों और कैसे हुई।मसलन्,जिस व्यक्ति को अभी पुलिसबलों ने मारा वह आतंकवादी था,लेकिन पुलिसबलों की पकड़ से कई सालों से बाहर था।उसका कोई कवरेज नहीं मिलेगा,अचानक पता चला वो बहुत बड़ा आतंकवादी था।
मीडिया की सूचनाओं को हम इस कदर पवित्र मानकर चल रहे हैं कि संदेह तक नहीं करते।सारी खबरें वही हैं जो पुलिसबल या सेना बता रही है। मैनस्ट्रीम मीडिया के जरिए कोई भी रिपोर्टर जमीनी हकीकत बताने की कोशिश नहीं कर रहा ।
आतंकवाद पर मैनस्ट्रीम मीडिया अमूमन झूठ बोलता है कम से कम यह विकीलीक के दस्तावेजों को देखकर तो हमलोगों को समझ लेना चाहिए।दूर क्यों जाएं हाल ही में चिलकोट साहब ने इराक पर जो जांच रिपोर्ट पेश की है उससे सीख लें।
कहने का अर्थ है कश्मीर के बारे में बातें करें तो वहां के बुनियादी आर्थिक सवालों पर बातें करें।आम कश्मीरी अपने को आतंकियों से बहुत पहले दूर कर चुका है।मीडिया के कवरेज से राय न बनाएं। कश्मीर पर मीडिया बहुत घटिया काम कर रहा है वह प्रत्येक कश्मीरी को आतंकवाद समर्थक बता रहा है।कल एक आतंकी की शवयात्रा का कवरेज और उस पर आए बयान इस बात को पुष्ट करते हैं कि आम कश्मीरी और आतंकी के बीच में अंतर करना मीडिया,नेता और भोंपुओं ने बंद कर दिया है। आज कश्मीर की मूल समस्या आतंकवाद या पृथकतावाद नहीं है बल्कि उसके विकास की आर्थिक समस्याएं जिन पर बातें करने से वहा के राजनीतिकदल और मीडिया दोनों परहेज कर रहे हैं।कायदे से मीडिया-नेता रचित यह कश्मीर एजेण्डा बदलना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें